संजय कटारनवरे जी आपसे डरकर nice ही नहीं बहुत कुछ भूल गया

शुक्रवार, 11 जून 2010

आप का इन्तजार था आप सारे नकाब नोच डालें कांइयांपन को जितना आप झलका सकते हैं झलका ले। जो आप बहुत सारे अलंकार रस और छंद जिनसे आप ऊब गए हों वह मुझे देने के लिए आतुर हैं उसे आप सादर अपने पास रखिये आने वाली पीढ़ी के काम आयेंगे। अगर आप मेरे विचारों से सहमत नहीं हैं तो मत सहमत होइए खाम खा कुश्ती लड़ने पर क्यों अमादा हैं लड़ना है तो मानव जगत की तमाम सारी समस्याएं है उनके खिलाफ आवाज उठाइए आप हिन्दू मुसलमान का चश्मा जहाँ से भी लाये हों उसको उतार फेंकिये वर्षा होगी तो सबको लाभ होगा। और अगर आप वास्तव में गंभीर हैं और मेरी विचारधारा को समझना चाहते हैं तो मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है वैसे मैं समझता हूँ की आप के पास ज्ञान का असीम भण्डार है। युद्ध कौशल में निपुण हैं उसके बाद भी मेरी सलाह है कि दो-तीन किताबें जिनके नाम मैं लिख रहा हूँ अवश्य पढ़िए जिसमें मुख्य रूप से आचार्य चतुरसेन की सोना और खून, भगौती चरण वर्मा की चित्रलेखा और राहुल संकृत्यायन वोल्गा से गंगा।
मुझे अच्छा लगेगा की आप ये यह किताबें पढ़कर कोई पोस्ट लिखें और कोई सवाल उठाये तो जवाब जरूर दिया जायेगा। जिसको आप चुप्पी समझते हैं वह दिनभर के निर्धारित कार्यक्रम के कारण होती अन्यथा लीजियेगा। पहले से ही पराजित

आपका
सुमन
लो क सं घ र्ष !

2 टिप्पणियाँ:

अन्तर सोहिल ने कहा…

पहले से पराजित
बहुत सुन्दर भाव
आप अजेय हैं सुमन जी

प्रणाम स्वीकार करें

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

संजय आता तर तुम्हाला गार वाटला असेल,तुम्ही बघतात कि सुमन जी ने स्वतःला अगोदरच पराजित मान्य केला आहे। शिल्लक जी काही तुम्हाला काढ़ायचे असेल तर काढ़ुन टाका नाही तर तुमचा पोट दुखेल किंवा तुम्हाला रागातिरेकने ब्रेन हैमरेझ होइल।
जय जय भड़ास

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