हमें शोलो को लफ़्ज़ों में पिरोने का हुनर आता है- गुफरान सिद्दीकी
बुधवार, 21 जुलाई 2010
दीनबंधू जी शायद किसी गलत फहमी के शिकार हो गए हैं यहाँ कुछ भी गुल नहीं होता जल्द ही आप सभी की शंकाओं का निराकरण हो जायेगा और रही बात बत्ती गुल होने की तो वो किसकी गुल हुयी देख रहा हूँ
आपके लिए -
'ये हमारी ख़ामोशी कमजोरी नहीं बेसबब
हमें शोलो को लफ़्ज़ों में पिरोने का हुनर आता है'
आपका हमवतन भाई गुफरान सिद्दीकी
(अवध पीपुल्स फोरम अयोध्या फैजाबाद)
5 टिप्पणियाँ:
बाबू आपसे जो सवाल करा गया था आपको लगा कि लोग भूल गये होंगे तो अब शेर-शायरी की महफ़िल सजाने लगे लेकिन आप ही तो कहते हैं कि ये भड़ास का मंच है..... अभी तो शोलों,चिन्गारियों और बुझे हुए कंडों को लफ़्ज़ों में पिरोने की बजाए जवाब को पिरो लीजिये बस इतना काफ़ी है शोले वगैरह बाद में पिरो लेना। अभी तो आपका एक ही हुनर दिखा है अदृश्य हो जाना मुद्दा छोड़ कर
जय जय भड़ास
और क्या क्या आता है ये मजहबी कट्टरता के दायरे में आता है या नहीं ये भी बताते चलना वरना ढेर सारे सवाल अनुत्तरित छोड़ कर फिर गायब हो जाओगे
जय जय भड़ास
लफ़्जों का धागा है जलेगा नहीं पिरोया जा सकता है पूरा का पूरा ज्वालामुखी दो चार शोले और जय-वीरू तो वैसे ही लटक जाएंगे:)
जय जय भड़ास
भाई गुफरान,
दिल की भड़ास को शोलों का रूप ले लेने दो,
अंगार बन जाने दो क्यूंकि ये अंगार भी हमारे कौम केलिए ही जलेगा.
लगे रहिये
जय जय भड़ास
ये हमारी ख़ामोशी कमजोरी नहीं बेसबब
हमें शोलो को लफ़्ज़ों में पिरोने का हुनर आता है'
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