लोग ईश्वर को परम दयालु और करुणावान मानते हैं कहते हैं कि वह सबका पिता है तो ये पिता इतना निष्ठुर कैसे है?
शुक्रवार, 23 जुलाई 2010
ईश्वर ने बिटिया को अपने पास बुला लिया उसकी मर्ज़ी थी। गुस्सा दुःख और नासमझी का प्रभाव ही है कि मैं ये कह सकता हूं कि ईश्वर यदि किसी को दुनिया में भेजता है तो उसकी अपेक्षा रहती है कि उसके बन्दे उसके सन्देशों को जानें और उसकी उपासना करें लेकिन ऐसे बच्चे जो जन्म के बाद बहुत छोटी उम्र में ही कालकवलित हो जाते हैं क्या उन्हें ईश्वर, अल्लाह या गॉड जो भी हो गलती से भेज देता है या खेल करता रहता है हम लाचार और बेबस मनुष्यों के साथ?? क्यों एक माँ को नौ माह तक इस उम्मीद में रखता है कि वह बाँझ नहीं है जब उसकी गोद में बच्चा आ जाता है तो वह ईश्वर को धन्यवाद करती है और जब बच्चा उसके सामने ही कुछ दिनों में मर जाए तो वह क्या करे बस कुरान की आयतें और वेदों के श्लोक पढ़ कर मन को तसल्ली दे ले कि ये तो ईश्वर की इच्छा थी। कोई उस ईश्वर से पूछे कि महाराज तुम्हारी इतनी क्रूर इच्छा कैसे हो जाती है कि तुम एक माँ की गोद सूनी कर देते हो अगर गोद सूनी ही रखनी थी तो बच्चा देकर खेल क्यों करते हो??
जो लोग ईश्वर को परम दयालु और करुणावान मानते हैं कहते हैं कि वह सबका पिता है तो ये पिता इतना निष्ठुर कैसे है? मैं मानता हूं कि वो जो भी शक्ति है जिसे सब भगवान कहते हैं वह मानवीय भावनाओं से परे है यानि उसे हमारे सुख और दुःख से कोई फर्क नहीं पड़ता है। रचे हुए ग्रन्थ जिसकी करुणा का गुणगान कर रहे हैं वह एक वीडियो गेम खेलते बच्चे की तरह है जिसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कम्प्यूटर स्क्रीन के अंदर कितना भीषण संहार हो रहा है कितने लोग मर रहे हैं घायल हो रहे हैं, परिवार उजड़ रहे हैं वो बच्चा तो बस निर्विकार भाव से खेलता रहता है और जब मन करता है तो ऊब कर खेल बंद कर देता है फिर जब मन करता है तो रिस्टार्ट कर देता है। वीडियो गेम के अंदर मौजूद पात्रों का अपना ज्ञान, बुद्धि और विवेक होता है जिसके आधार पर वे अपनी रक्षा करते हैं, हमला करते हैं, अपने राज्य का विस्तार करते हैं और खेल चलता रहता है। क्या खेल के अंदर के किसी पात्र के साथ बच्चे की कोई सहानुभूति जुड़ पाती है??? बच्चा अपने वीडियो गेम का भगवान, अल्लाह और गॉड होता है उस गेम का हर पात्र उसकी मर्जी से उसके मनोरंजन के लिये जीता और मरता रहता है। मैं आज तक ईश्वर को किताबों के आधार पर न जान पाया इसलिये खुद को समझने का प्रयास करा और इस नतीजे पर पहुंचा कि मानव जीवन महज इलैक्ट्रो-कैमिकल घटना से अधिक कुछ नहीं है। जिस प्रकार एक सामान्य बैटरी में न तो ताँबे की छड़ में विद्युत धारा है, न जस्ते की ड़ में विद्युत धारा है और न ही काँच के पात्र में भरे नमक के तेज़ाब(HCL) में कहीं विद्युत धारा का अस्तित्त्व है लेकिन जैसे ही ये सारी चीजें एक निश्चित परिपथ में जुड़ती हैं करेंट (विद्युत धारा) का उद्भव हो जाता है अब आप इससे बल्ब जलाइये,पंखा चलाइये,रेडियो सुनिये या टीवी देखिये.... सैकड़ों काम हो सकते हैं। ठीक वैसे ही मेरी जड़ बुद्धि मान रही है कि जैसे ही शुक्राणु और अण्डाणु का मेल होता है इस तरह का विद्युत रासायनिक प्रक्रिया का जन्म हो जाता है कि हम कह पाते हैं कि चेतना का आविर्भाव हो गया है जिस तरह कुछ समय बैटरी की आयु होती है उसी तरह से मानव देह की आयु होती है फिर उसके बाद फुस्स्स...। न आत्मा न विद्युत धारा सब खल्लास...। कोई बैटरी लाँग लाइफ़ और कोई शार्ट सर्किट बस इतना ही समझ आया। अब किताबें क्या कह रही हैं वो तो टार्जन के गले से कभी नीचे ही न उतर पाया। शायद भगवान बुलाओ अभियान चलाने वाले भी कुछ ऐसी ही सोच रखते होंगे तभी तो भगवान को सीधे बुला रहे हैं कि यदि हो तो आओ लेकिन आजकल तो वो आता नहीं हाँ कई हजार सालों तक पहले आता रहा आजकल बंद कर दिया है।
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
जय जय भड़ास
यकीन मानिये की ८०% लोगों की समझ में ही न आयी होगी आपकी इतनी ऊंची बात :)
जय जय भड़ास
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भाई ,
बहुत सुन्दर लेख लिखा है आपने। पूरी तरह सहमत हूँ आपके विचारों से। शोर्ट और लौंग लाइफ वाली बात उपयुक्त लगती है।
बहिन दिव्या
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