भाई डॉ.अनवर जमाल की नन्ही बेटी अनम की मृत्यु पर भड़ास परिवार उनके दुःख में उनके साथ है

गुरुवार, 22 जुलाई 2010


अभी हाल ही में पता चला कि भाई डॉ.अनवर जमाल जी की बिटिया अनम को दैवेच्छा से ईश्वर ने अपने पास बुला लिया है। भड़ास परिवार स्वर्गीय बिटिया अनम की पार्थिव विदा पर नम आँखों से परिवार के साथ हैं। ईश्वर बच्ची को प्रसन्न व चिरशान्त रखे व माँ व अन्य परिवारी जनों को इस विदा के दुःख को सहने की शक्ति दे।

13 टिप्पणियाँ:

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

बन्दा ख़ुदा से राज़ी हो तो कोई ग़म उसके बन्दे पर हावी नहीं होता .
अल्लाह आपको अच्छा बदला दे .

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भड़ास परिवार इस दुःख में भाई डॉ.अनवर जमाल के साथ है, ईश्वर बिटिया को चिरशान्ति प्रदान करें
आमीन

बेनामी ने कहा…

हम सब द्रवित हैं, और भाई के साथ हैं.
इश्वर हमारी बेटी को जन्नत दे.
आमीन

Sharif Khan ने कहा…

’’ हर चीज़ जो इस ज़मीन पर है फ़ना (ख़त्म) हो जाने वाली है। और केवल तेरे रब की आला (उँची) और करम करने वाली हस्ती ही बाक़ी रहने वाली है। ’’
जो पैदा हुआ है उसे मरना अवश्य है। मौत कब आनी है, और कैसे आनी है, यह भी पहले से निश्चित किया हुआ है। इस प्रकार से जो बात हमारे वश के बाहर है उस पर हम कुछ नहीं कर सकते।
अक्सर लोग कुछ मौतों को देखकर कहते हैं कि बहुत बुरा हुआ या ऐसा नहीं होना चाहिए था। आदि आदि ! जबकि हमको यह बात सोचते हुए सन्तोष कर लेना चाहिए कि अल्लाह, जिसने सम्पूर्ण सृष्टि रची है, का कोई भी कार्य ग़लत नहीं हो सकता।
उदाहरणार्थ ऐसे समझिये कि एक बग़ीचे का माली है। उसे मालूम है कि कौन से पौधे को कब और कहां से उखाड़ना है और किस पौधे को कब और कितना छांटना है। आस पास के पौधे चाहे यह देखकर और सोचकर दुखी हों कि यह तो इस माली ने बहुत बुरा किया परन्तु माली को तो पूरे बग़ीचे के हित को ध्यान में रखते हुए काट छांट करनी होती है जिसे कम से कम उस बग़ीचे के पौधे तो समझ नहीं पाएंगे। इसी प्रकार सृष्टि के रचियता के कार्यों को समझना हमारी समझ से बाहर की बात है।
मौत की आलोचना करने के बजाय इससे हमको सबक़ हासिल करना चाहिए। एक तो यह कि मौत कभी भी आ सकती है इसलिए हम को सदैव इसके लिये तैयार रहना चाहिए। तैयार ऐसे कि हम यह सोचें कि यदि अभी मर गए तो क्या हम किसी का कुछ बुरा तो नहीं चाह रहे है। किसी को हमसे कोइ्र्र कष्ट तो नहीं पहुंचा है, हमने किसी का दिल तो नहीं दुखाया है, आदि। इस प्रकार हमें सदैव अल्लाह को याद करते रहना चाहिए। ध्यान रहे अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलना ही अल्लाह को याद करना है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि, अल्लाह अल्लाह करते रहे और ऐसे कार्य भी करते रहें जिनसे अल्लाह नाराज़ होता हो, यह अल्लाह को याद करना कदापि नहीं हो सकता।
अल्लाह नें बच्ची के रूप में जो अमानत उसके माता-पिता को, उसके लालन-पालन के लिये, सौंपी थी वह वापस ले ली। संतोष करने में यह बात सहायक तो हो सकती है परन्तु इतने दिन साथ रहने, इस बच्ची के पालन-पोषण से जो लगाव, प्यार और और ममता के भाव उत्पन्न होते हैं, उनकी भरपाई तब तक सम्भव नहीं है जब तक अल्लाह इस बच्ची के माता-पिता, बहन, भाई आदि सम्बन्धित सभी लोगों को सब्र और सन्तोष न दे।
आइए हम अल्लाह से दुआ करें कि वह अनम के परिवार वालों को सब्र दे। आमीन!

Sharif Khan ने कहा…

’’ हर चीज़ जो इस ज़मीन पर है फ़ना (ख़त्म) हो जाने वाली है। और केवल तेरे रब की आला (उँची) और करम करने वाली हस्ती ही बाक़ी रहने वाली है। ’’
जो पैदा हुआ है उसे मरना अवश्य है। मौत कब आनी है, और कैसे आनी है, यह भी पहले से निश्चित किया हुआ है। इस प्रकार से जो बात हमारे वश के बाहर है उस पर हम कुछ नहीं कर सकते।
अक्सर लोग कुछ मौतों को देखकर कहते हैं कि बहुत बुरा हुआ या ऐसा नहीं होना चाहिए था। आदि आदि ! जबकि हमको यह बात सोचते हुए सन्तोष कर लेना चाहिए कि अल्लाह, जिसने सम्पूर्ण सृष्टि रची है, का कोई भी कार्य ग़लत नहीं हो सकता।
उदाहरणार्थ ऐसे समझिये कि एक बग़ीचे का माली है। उसे मालूम है कि कौन से पौधे को कब और कहां से उखाड़ना है और किस पौधे को कब और कितना छांटना है। आस पास के पौधे चाहे यह देखकर और सोचकर दुखी हों कि यह तो इस माली ने बहुत बुरा किया परन्तु माली को तो पूरे बग़ीचे के हित को ध्यान में रखते हुए काट छांट करनी होती है जिसे कम से कम उस बग़ीचे के पौधे तो समझ नहीं पाएंगे। इसी प्रकार सृष्टि के रचियता के कार्यों को समझना हमारी समझ से बाहर की बात है।
मौत की आलोचना करने के बजाय इससे हमको सबक़ हासिल करना चाहिए। एक तो यह कि मौत कभी भी आ सकती है इसलिए हम को सदैव इसके लिये तैयार रहना चाहिए। तैयार ऐसे कि हम यह सोचें कि यदि अभी मर गए तो क्या हम किसी का कुछ बुरा तो नहीं चाह रहे है। किसी को हमसे कोइ्र्र कष्ट तो नहीं पहुंचा है, हमने किसी का दिल तो नहीं दुखाया है, आदि। इस प्रकार हमें सदैव अल्लाह को याद करते रहना चाहिए। ध्यान रहे अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलना ही अल्लाह को याद करना है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि, अल्लाह अल्लाह करते रहे और ऐसे कार्य भी करते रहें जिनसे अल्लाह नाराज़ होता हो, यह अल्लाह को याद करना कदापि नहीं हो सकता।
अल्लाह नें बच्ची के रूप में जो अमानत उसके माता-पिता को, उसके लालन-पालन के लिये, सौंपी थी वह वापस ले ली। संतोष करने में यह बात सहायक तो हो सकती है परन्तु इतने दिन साथ रहने, इस बच्ची के पालन-पोषण से जो लगाव, प्यार और और ममता के भाव उत्पन्न होते हैं, उनकी भरपाई तब तक सम्भव नहीं है जब तक अल्लाह इस बच्ची के माता-पिता, बहन, भाई आदि सम्बन्धित सभी लोगों को सब्र और सन्तोष न दे।
आइए हम अल्लाह से दुआ करें कि वह अनम के परिवार वालों को सब्र दे। आमीन!

मनोज द्विवेदी ने कहा…

is dukh ki ghadi me ishwar apko shakti de..

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

भाई अनवर जमाल के दुःख और अल्लाह की मर्ज़ी में हम साझेदार हैं। मुझे मेरा स्वर्गीय बेटा अब्दुल माजिद याद आ गया जो कि सात माह में हमारे पास आ गया था और ढाई माह हमारे साथ रह कर वापिस अल्लाह के पास चला गया।
अल्लाह स्वर्गीय बेटी अनम को शान्ति प्रदान करे। माँ को धैर्य बना रहे
आमीन

अजय मोहन ने कहा…

ईश्वर बिटिया की आत्मा को शान्ति दे

अन्तर सोहिल ने कहा…

इस दुखद घडी में अल्लाह/ईश्वर इनके परिवार को सम्बल प्रदान करें।

Saleem Khan ने कहा…

inna lillahi wa inna ilaihi rajioon

Shah Nawaz ने कहा…

अल्लाह ता`आला अनम को जन्नत की क्यारियों में खिलाए, और उसके वालिदैन को सब्र दे.

Shah Nawaz ने कहा…

अंतर सोहिल भाई, ईश्वर कहो या अल्लाह एक ही बात है, "अल्लाह" भी ईश्वर का ही तो नाम है.

dr amit jain ने कहा…

ईश्वर बिटिया की आत्मा को शान्ति दे

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