कामनवेल्थ खेलों से उजड़ रहा बचपन
बुधवार, 4 अगस्त 2010
दिल्ली/ भारत में बाल अधिकारों के लिए सक्रिय संस्था क्राई ने कहा है कि कामनवेल्थ गेम्स के निर्माण स्थलों पर रहने वाले मजदूर परिवारों के बच्चे कई बुनियादी अधिकारों जैसे आवास, स्वच्छता, गुणवत्तापूर्ण भोजन, स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य और स्कूली शिक्षा से बेदखल हो गए हैं। क्राई ने अपने अवलोकन में पाया है कि निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूर परिवारों के बच्चों को कई गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
यह अवलोकन ध्यानचंद्र नेशनल स्टेडियम, आरके खन्ना स्टेडियम, तालकटोरा स्टेडियम, निजामुद्दीन नाला, नेहरू रोड, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम का दौरा करके क्राई द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट और सिरी फोर्ट निर्माण स्थल से किये गए एक सेम्पल सर्वे के आधार पर किया गया है। क्राई की डायरेक्टर योगिता वर्मा कहती है कि ‘‘निर्माण कार्यो में लगे मजदूरों के बच्चे जिन अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं, वहां हमने पाया कि उनके लिए न तो अच्छा भोजन है, न पीने का साफ पानी, न साफ-सफाई, न बारिश या धूप से बचने की सहूलियत, और न ही स्कूली शिक्षा या स्वास्थ्य जैसी बुनियादी अधिकार ही हैं।’’ उन्होंने आगे बताया कि ‘‘गरीबी के चलते बहुत सारे मजदूर परिवारों को अपनी-अपनी जगहों से पलायन करके दिल्ली के निर्माण स्थलों तक आना पड़ा है, नतीजन बड़ी संख्या में उनके बच्चे स्कूलों से ड्राप आउट हो गए हैं।’’
हाइकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका के अनुसार, राष्ट्रमंडल खेलों के अलग-अलग निर्माण स्थलों में लगभग 4.15 लाख दिहाड़ी मजदूर काम कर रहे हैं। यहां मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी दी जा रही है। कुलमिलाकर, ऐसी तमाम गंभीर स्थितियों का सबसे ज्यादा खामियाजा मजदूरों के बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
योगिता वर्मा के मुताबिक ‘‘बच्चों की तरफ हमारे कई संवैधानिक दायित्व हैं, कामनवेल्थ गेम्स को विश्वस्तरीय बनाने की कोशिश में इन संवैधानिक दायित्वों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।’’
दिल्ली में जो कामनवेल्थ गेम्स की तैयारी चल रही है, उसमें भारत सरकार अपने देश के बच्चों के लिए संवैधानिक दायित्व और अंतराष्ट्रीय मानवीय अधिकार वचनबद्धताओं को सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान बनाएं।
निर्माण कार्यो से जुड़े मजदूरों और उनके बच्चों के लिए आवास, स्वच्छता, गुणवत्तापूर्ण भोजन, स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य और स्कूली शिक्षा जैसे बुनियादी अधिकार बहाल किये जाए।
शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने को लेकर सरकार अगर वाकई गंभीर है तो उसे स्कूल से होने वाली ड्राप-आउट की इस समस्या को रोकने की पहल करनी होगी। आंगनबाड़ी और मिड डे मिल जैसी योजनाओं को तत्काल प्रभाव में लाया जाए।
दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश (11 फरवरी, 2010) अनुसार, सभी परिवारों का पुनर्वास नागरिक सुविधाओं के साथ किया जाए।
सिरी फोर्ट निर्माण स्थल से सेम्पल स्टडी के निष्कर्ष :
इस निर्माण स्थल के बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। (भारत में 6 से 14 साल तक के 80,43,889 बच्चे स्कूल से बाहर हैं।)
इस निर्माण स्थल में या इसके आसपास चाईल्डकेयर यानी बच्चे की देखभाल जैसे आंगनबाड़ी वगैरह की कोई सुविधा नहीं है।
यहां आवास की स्थितियां बहुत खराब हैं। आवासीय सामग्री के तौर पर टीन और प्लास्टिक की चादरों को उपयोग में लाया जा रहा है, जो कि सुरक्षा के लिहाज से कतई ठीक नहीं कही जा सकती हैं। आश्रय के नाम पर मजदूर परिवारों के हिस्से में 7X7 फीट की टीन की चादरों का घेरा है। परिवार में चाहे कितने भी लोग हों, उनके हिस्से में एक ही सकरा घेरा है।
यहां प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं है। शौचालय की सेवा भी लगभग न के बराबर हैं, कुछ जगहों पर मोबाइल शौचालय जरूर देखें गए हैं, जो कि साफ-सुथरे नहीं हैं।
यहां 96% मजदूर गरीबी रेखा से नीचे हैं। 36% मजदूरो को अपनी-अपनी जगहों से खेती की विफलताओं के चलते दिल्ली की ओर पलायन करना पड़ा है।
यहां 84% मजदूरों को 203 रूपए/प्रति दिन की न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी दी जा रही है।
निर्माण कार्यों से जुड़े यह मजदूर बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाके से दिल्ली आए हुए हैं। इनमें से ज्यादातर भूमिहीन मजदूर और सीमांत किसान हैं। कृषि क्षेत्र में आए संकट के चलते जिन परिवारों को पलायन करना पड़ा है, उनमें से ज्यादातर अनाज पैदा करने के लिए अप्रत्याशित वर्षा पर निर्भर रहते हैं। कई सालों से अपेक्षित वर्षा न होने से इनके सामने आजीविका का संकट गहराया है। निर्माण कार्यों से जुड़े यह मजदूर जिन गांवों से आए हैं, उनके उन गांवों के मुकाबले दिल्ली के निर्माण स्थलों में काम करने और रहने की स्थितियां बेहद खराब हैं। यहां कानूनी सुरक्षा से लेकर मजदूरों और उनके बच्चों के अधिकारों तक का उल्लंघन खुलेआम चल रहा है।
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Shirish Khare
C/0- Child Rights and You
189/A, Anand Estate
Sane Guruji Marg
(Near Chinchpokli Station)
Mumbai-400011
www.crykedost.blogspot.com
I believe that every Indian child must be guaranteed equal rights to survival, protection, development and participation.
As a part of CRY, I dedicate myself to mobilising all sections of society to ensure justice for children
2 टिप्पणियाँ:
सही कहा है,
इस खेल से देश ही लुटेरों का अड्डा बन गया है तो लुतेर्रों को बचपन या बुढ़ापा और देश से क्या सरोकार बस इस नामुराद खेल के मान पर अंग्रेजों की तरह पुरे देश को खसोट लो.
जय जय भड़ास
YE DESHI ANGREJ HAI..VIDESHI ANGREJO SE BHI BURE, CHOR. YAHI CHORI KARENGE AUR YAHI SINAJORI
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