कुकुरकुत्तों की तरह बनते ब्लॉगर एसोसिएशन और इनके पुरोधा रणधीर सिंह सुमन, गुफ़रान सिद्दकी, सलीम खान और न जाने कितने...

गुरुवार, 9 सितंबर 2010



जैसे थोड़ी सी भी नमी रही तो फंगस का संक्रमण होने की संभावना हो जाती है ठीक उसी तरह अब हिंदी ब्लॉगिंग में भी पैसे और ताकत की थोड़ी सी नमी का एहसास जब से लोगों को होने लगा है मौकापरस्त ब्लॉगर बने लोग झुंड बना कर सियारों की तरह हुआ-हुआ करने लगे हैं। एसोसिएशन बना कर ये लोग अपने मन की "अध्यक्ष" और "सचिव" होने की ललक को पूरा करे ले रहे हैं भले ही पिछवाड़ा धोने तक की अक्ल न हो। आप सबको याद होगा कि एक हुआ करते हैं सलीम खान, ये भी उसी श्रेणी के मुखौटाधारी शरीफ़ आदमी हैं जिसमें कि लोकसंघर्ष चलाने वाले वकील सुमन महाशय हुआ करते हैं या कट्टरपंथी मुस्लिम होने की दुहाई देने वाले अवध पीपुल्स फोरम वाले गुफ़रान सिद्दकी। इन लोगों को भीड़तंत्र का मंत्र पता है इसलिये ये कोशिश करते हैं कि कुछ ऐसा करा जाए कि आसपास पच्चीस पचास लोगों का झुंड दिखने लगे ताकि बाकी लोगों को इस भीड़ को दिखा कर प्रभावित करा जाए कि देखो मैं नेता हूँ इसलिये मेरे साथ इतने लोग हैं। भेड़चाल जिन्दगी जीने वाले लोग जब इस पचास की भीड़ को देखते हैं तो पचास से पचास हजार होने में समय नहीं लगता पिछलग्गू लोग इस भीड़ में जुड़ कर भीड़ को और बढ़ा लेते हैं। पिछलग्गुओं को दर असल भीड़ में सुरक्षा महसूस होती है और उनकी पहचान बताने के लिये वे बताते हैं कि मैं अमुक भीड़ का हिस्सा हूँ जो बहुत बड़ी है। आप सबको याद होगा कि सलीम खान को जब भड़ास पर दौड़ाया गया और उसका मुखौटा नोचा गया था तो उसने उसकी जुटाई भीड़ "लखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशन" के ब्लॉग पर ये अपील करी थी कि भड़ासियों के विरुद्ध लिखा जाए लेकिन पिछलग्गू तो पिछलग्गू ही होते हैं नेता की फटते ही भाग जाते हैं। इस लखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशन के किसी ने भड़ासियों की सच बात के विरोध में कुछ नहीं लिखा जिस पर भी इसे रगेदा गया था। ये मकरी सोचते हैं कि समय गुजरने के साथ भूल जाने की बीमारी से भड़ासी भी ग्रस्त हैं तो ये जड़बुद्धि है। न तो मैं वकील रणधीर सिंह सुमन का भागना भूला हूँ कि किस धूर्तता से वो भड़ास से मुझे ताकीद करते हुए मुँह काला करके भाग गया ठीक इसी तरह मजहबी कट्टरता की बात करने वाले गुफ़रान सिद्दकी ने भी भड़ास की तरफ मुँह करना बंद कर दिया यदि साहस होता तो विमर्श में आगे बढ़ते और मुझे गलत सिद्ध करते। इसी कतार में सलीम खान भी शामिल है जो कि अपनी अक्लमंदी जताने और डॉ.अनवर जमाल को मर्द बताने के लिये एक लेख के बीच में टिप्पणी लेकर कूदा था और बाद में अपना मुँह चुरा कर चुप्पी मार गया। इस तरह के लोगों ने जो झुंड बनाने का ब्लॉगिंग में काम शुरू करा है उसे सबके सामने ला रहा हूँ देखिये क्या होता है।
जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई

5 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

अरे बपई रे... ई का भाई एक ठो और एसोसिएशन?? अब ई सभै का हमका सतइहैं औ निगरानी-निगरानी खेलिहैं??? नान नान बेटवा अब कौन तरा के खेल खेलै लागें हैं
जय जय भड़ास

شمس शम्स Shams ने कहा…

संजय कटारनवरे भाई आपने जो मुहिम शुरू करा है उसने रंग दिखाया और कई रंगे सियार भड़ास के मंच से खुद ही अपनी पूंछ को टाँगों के बीच दबा कर भाग लिये। जारी रखिए ऐसे मक्कारों के खिलाफ़ जंग।
जय जय भड़ास

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

वाह बहुत खूब,
वैसे एक बात बता दूं की ये ब्लॉग के मोडरेटर की कारिस्तानी ज्यादा रहती है और कुच्छ नामों के सहारे अपना चकला चलने के लिए वो इस तरह के कार्य करता है. यशवंत सिंह से बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है जिस ब्लॉग के संरक्षक, प्रधान मोडरेटर, मुख्या प्रवक्ता और कई नामचीन पत्रकारों के सहारे
भड़ास संगठन बना डाला और जब मीडिया के दलाली की अपनी दूकान खोली तो भड़ास के संरक्षक प्रधान मोडरेटर और म्मुख्या प्रवक्ता को तो जाने दीजिये सभी नदारद. दलाली का अड्डा बना कर ये दलाल भडवागिरी के लिए इस तरह की दुकान बनाते हैं जैसे यशवंत ने बनाया अविनाश ने बनाया एक और सही ;-)
जय जय भड़ास

Unknown ने कहा…

लगभग हर कमेन्ट में यशवंत का नाम घसीटा जा रहा है ? इसका क्या मतलब निकाला काये?????? पुरानी दुश्मनी या शह-मात का खेल ?

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

@upasana
आप कौन हैं ये का आपमें साहस है??आप तो उन बेनामियों से भी गए बीते/गई बीती हैं कि किसी का नाम रख कर भी लुका छिपी कर रही/रहे हैं। मर्द हैं या नामर्द ये ही नहीं पता चल रहा कि स्त्री हैं कि जनखा???आपसे वार्ता कैसे कायम हो कि आपकी हर लघुशंका का निराकरण करा जाए कि यशवंत का नाम क्यों है। फिर भी थोड़ा सामान्य ज्ञान बढ़ा लीजिये कि यशवंत सिंह से कोई निजी बैर विरोध नहीं है कि वे शराब पीते हैं या उन पर बलात्कार के आरोप हैं या उनकी हरकतों के कारण उन्हें किन किन संस्थानों से लतिया कर भगा दिया गया आदि आदि....। दूसरी बात कि हम दोनो एक दूसरे को परिवार की गहराई तक जानते हैं लेकिन कभी मैंने परिवार को बीच में नहीं लाया क्योंकि यशवंत की पत्नी को मैंने बहन कहा है उस बहन से भांजे आयुष के नाम से मेरे ब्लॉग का नाम "आयुषवेद" रखा था जो कि अभी भी अस्तित्त्व में है। हमारे बीच बस आदर्शों और सिद्धाँतों का अंतर है। हम मानते हैं कि यदि हमें हमारी बात कहनी है तो सफ़ेद के साथ काले का उल्लेख करना होगा(नाम घसीटा नहीं जा रहा उल्लेख करा जा रहा है, भड़ास पर जब घसीटा जाता है तो आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते/सकती) तभी पूर्ण अभिव्यक्ति होगी। आप शायद हम सब से अपरिचित हैं तभी इस पुरानी दुश्मनी या शह-मात का खेल समझती/समझते है। मुझे भी संदेह है कि आप यशवंत ही हैं क्योकि आप लिंग परिवर्तन में माहिर हैं इससे पहले भी आप "गंदी लड़की" बन कर इसी नाम का ब्लॉग चला चुके हैं।
जय जय भड़ास

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