ललित तिवारी तुम जैसे लोग समाज में बीमारी हैं

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

अगर तुम ये लिखते कि तुम पाखंडी, मुखौटाधारी, रीढ़विहीन एक लिजलिजे से इंसान जैसे दिखने वाले साँप हो तो मैं कह सकता था कि तुम सच लिखते हो लेकिन तुम लोगों ने तो जमाने भर की धूर्तता का ठेका ले रखा है। कम्युनिस्ट हो, नास्तिक हो, बुद्धिजीवी हो, लेखक हो, ललित तिवारी हो ये तुम्हारा हलफ़ है। कम्युनिज्म के किस चूल्हे पर रोटियाँ सेंकते हो तिवारी? मार्क्सवादी हो?? लेनिनवादी हो??? या मार्क्स और लेनिन की वर्णसंकरित सोच से जन्मे मालेवादी हो????कहीं ऐसा तो नहीं कि सत्तालोलुप रक्तपिपासु नरपिशाच माओवादी हो?????तुम्हारा नास्तिक होना क्या है किसे नकारते हो?????हिंदू होना क्या है?????? तुम सिर्फ़ बहुरूपिये हो जो मुँह पर मुखौटे लगा लगा कर जननायक बनने का स्वांग करता है।तुम तो खुद को बुद्धिजीवी भी बताते हो। जीविका के उपार्जन के आधार पर दुनिया के लोगो को इन वर्गों में बाँट सकते हैं.... श्रमजीवी, बौद्धिक श्रमजीवी,श्रमिक बुद्धिजीवी,बुद्धिजीवी; लेकिन तुम इस बात को नहीं समझोगे क्योंकि तुम पैशाचिक सोच रखते हो और ये इंसानी सोच है। इनमें से तुम बुद्धिजीवी हो जिसके बारे में कहा जाता है कि बुद्धिमान की रोटी दूसरा कमाता है। तुम परिश्रम नहीं करते लेकिन श्रमिकों के घर फूँक-ताप कर उन्हें रोटी छिनाने के लिये प्रेरित करते हुए नारे देते हो कि  दुनिया के मज़दूरों एक हो जाओ। तुम जो सपने दिखाने का इंद्रजाल फैलाए हो वो मज़दूरों के मरने पर भी नहीं टूटता। मज़दूरों के हित की रक्ष-संस्कृति चलाने वाले राक्षस ही तो हो तुम जो अपनी मायावी चालाकियों से रूप बदलते रहते हो, कभी हिंदू बन जाते हो कभी लेखक बन जाते हो कभी रणधीर सिंह सुमन बन जाते हो, कभी गुफ़रान सिद्दकी बन जाते हो, कभी ललित तिवारी बन जाते हो। तुम कुछ भी बन जाओ कितने भी रूप बदलो हम तुम्हें पहचान सकते हैं अब तुम्हें कपड़े उतार कर नंगा करने से बात नहीं बनेगी तुम्हारी चमड़ी उतारनी होगी ताकि तुम बार बार रंग न बदल सको गिरगिट की तरह।
जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई

4 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

सच आपने कहा सच लिखने के लिये हार्दिक धन्यबाद !
arganikbhagyoday.blogspot.com

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

जनता बेचारी
लोकतंत्र में हारी
अबदुल्ला बुखारी
ललित तिवारी
बुरी बीमारी
यार आपने तो कविता बनवा दी लेकिन ललित तिवारी जी ने आपको जंगली जानवर से भी गया बीता लिखा था और आपने उन्हें शहरी जानवर लिख डाला। जारी रहे भड़ास-भड़ास
जय जय भड़ास

मनोज द्विवेदी ने कहा…

SANJAY KATARNAVARE....AAP JISE KAT LETE HAI WAH PANI BHI NAHI MANGATA
JAI BHADAS JAI JAI BHADAS

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

कटारनवरे जी,
जबरदस्त भड़ास निकाली है आपने मगर ये बीमारी जी अररर मतलब तिवारी जी हैं कौन ;-)

जय जय भड़ास

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