शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

म्रत्यु पर किसका बस चलता !!

सखे! म्रत्यु पर किसका बस चलता!!

है राजा भी मरता यहाँ है रंक भी मरता!!

सखे! म्रत्यु पर किसका बस चलता!!

म्रत्यु के है कितने द्वार कोई नहीं जानता!!

जीवन युद्घ इसी ने पाई विजय तू क्यों नहीं मानता!!

म्रत्यु पर किसका बस चलता !!

सखे! म्रत्यु पर किसका बस चलता!!

है राजा भी मरता यहाँ है रंक भी मरता!!

सखे! म्रत्यु पर किसका बस चलता!!

ना तुम करो विलाप!! ये जीवन अंत नहीं!!

है कारण आवागमन म्रत्यु!!क्या ये सत्य नहीं!!

म्रत्यु पर किसका बस चलता !!

सखे! म्रत्यु पर किसका बस चलता!!

है राजा भी मरता यहाँ है रंक भी मरता!!

सखे! म्रत्यु पर किसका बस चलता!!


दिनेश कुमार "कुमार"

3 टिप्पणियाँ:

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति .

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

लो हम तो ससुरे भूल ही गये थे कि मौत भी आनी है। धन्यवाद जो कविता के द्वारा याद दिला दिया वरना लगे थे सतत चूतियापे में....
अब कुछ देर तक अवसादग्रस्त रहेंगे और फिर दोबारा आक्रामक पागल बन जाएंगे।
जय जय भड़ास

ZEAL ने कहा…

पल-पल मरकर बहुत बार मौत को करीब से देखा है। अब डर किस बात का ?

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