मेरी नानी जी डॉ.रूपेश श्रीवास्तव की माँ अल्लाह तआला के पास चली गयी
बुधवार, 3 नवंबर 2010
नानी लगभग छह माह से अस्वस्थ चल रही थीं। तकरीबन अस्सी साल के आस पास उम्र थी लेकिन पता नहीं चलता था देख कर। कैंसर, डायबिटीज़ से जूझ रहीं थीं। कैंसर की अंतिम अवस्था में आज से लगभग पाँच साल पहले जब टाटा मेमोरियल, मुंबई में उन्हें मात्र महीने डेढ़ महींने का मेहमान बता कर घर ले जाने की सलाह दी तो भगवान की इच्छा को स्वीकारते हुए मेरे धर्मपिता डॉ.रूपेश श्रीवास्तव जी ने उनका आयुर्वेद और ऑटोयूरिन थैरेपी से इलाज शुरू करा और नानी जी धीरे धीरे स्वस्थ हो गयीं। नानी के स्वभाव के अनुसार उन्होंने दोबारा यात्राएं शुरू कर दीं लेकिन छह माह पहले जब उत्तर भारत में भयानक जानलेवा गर्मी पड़ रही थी उस दौरान नानी वहाँ रहीं और वही प्रवास उनके लिये घातक सिद्ध हुआ। नानी को तपेदिक हो गया करीब सात साल पहले भी उन्हें टीबी हुआ था लेकिन उसे बीमारी से वह पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थीं। दोबारा हुए इस तपेदिक के रोग ने नानी के जिस्म को तोड़्ना शुरू कर दिया और एक स्थिति ऐसी आयी कि उनके शरीर ने दवाएं स्वीकारना ही बंद कर दिया।
5 टिप्पणियाँ:
दुनिया फानी है... आपके दुख को महसूस कर सकता हूं>..
meri samvaednaaye swikaar karey
MAA MERE BHITAR JINDA HAIN.
आप सब हमारे दुःख में शरीक हुए इसके लिये हृदय से आभार। हम सब इन मंचों के द्वारा सुख-दुःख में भागीदारी करते रहें यही इंसानियत है। मनोज भाई ने सच कहा कि माता जी हमारे भीतर हैं। मेरा उर्दू ब्लाग "लंतरानी" माताजी की ही प्रेरणा से बना था उनकी दी हुई शक्ति सदैव हमारे साथ है।
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माँ की आत्मा को शान्ति मिले। भाई रुपेश के दुःख में शामिल हूँ। भाई ने अपना दाइत्व बखूबी निभाया है। माँ दूर जाकर भी हमारे दिलों में अपनी यादों के साथ रहेंगी।
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