आओ ताजमहल देखे एक बंद हो चुकी खिडकी से -भाग १

रविवार, 12 दिसंबर 2010


6 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

अमित भाई उर्दू तो मैं भी जानता-समझता हूं लेकिन एक बात बड़ी स्पष्टता से जानना चाहता हूं कि क्या आप इतिहासकार श्री पी.एन.ओक जी का संदर्भ लेकर ताजमहल की बात करने की भूमिका बना रहे हैं?
इन पन्नों की विश्वसनीयता क्या है?इन्हें आपने किस जगह से प्राप्त करा है?उर्दू तो ऐसी लिपि में लिखी जाती है कि यदि मात्र एक बिन्दु का भी अंतर आ जाए तो खुदा से जुदा हो जाने की बात हो जाती है इस बात की पुष्टि उर्दू जानने वाले अन्य भड़ासी या भाई डा.अनवर जमाल साहब कर देंगे। कुल मिला कर मैं तो इस दस्तावेज से कुछ खास समझ ही न पाया क्योंकि यह खासा अस्पष्ट है। दूसरी बात कि इन पन्नों में पर्शियन के भी शब्दों का समावेश है लिपि भले ही आपको उर्दू लग रही हो।
जय जय भड़ास

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

अमित भाई सचमुच में ये आलेख पठनीय नहीं है कोई विद्वान यदि इसे पढ़ कर बता सके तो मेहरबानी होगी। आपने इस दस्तावेज को किधर से प्राप्त करा है?
जय जय भड़ास

dr amit jain ने कहा…

डॉ साहब मै विसेंट स्मिथ , पीटर मंडे,डे लीत, जोन अल्बर्ट जैसे इतिहासकार को पढ़ने के बाद ही ये बात लिख रहा हू , अब आप कहेगे की इन की विश्वशनीयता क्या है , तो मै आप को बता दू की ये सभी शाहजहांके और उस से पहले के इतिहासकार है , मुझे ये लिपि पढनी नहीं आती है , इसलिए मैंने आप के सामने ये दस्तावेज रखे है

अनोप मंडल ने कहा…

अमित जैन ने अंग्रेज़ इतिहासकारों की वकालत तो ऐसे करी है जैसे कि भारत में इतिहास लिखने की परंपरा ही नहीं थी। देश के भ्रामक और भ्रष्ट इतिहास के लिये ऐसे ही लोग जिम्मेदार हैं। तनखैय्या किस्म के इतिहासकारों ने चापलूसी के चलते और पश्चिम की चकाचौंध से अंधे हुए कई भारतीय इतिहासकारों ने भी ऐसी कहानियाँ गढ़ कर उनकी माला जपी है कि लोग उनके प्रलाप को इतिहास का सत्य मानने लगे हैं। तुम राक्षसों का तो काम ही यही है कि दस्तावेजों में हेराफेरी करते रहो। डॉ.साहब ने तुमसे ये जानना चाहा कि तुमने ये पत्र किधर से पाया तो तुम उत्तर दे रहे हो कि विसेंट स्मिथ , पीटर मंडे,डे लीत, जोन अल्बर्ट जैसे इतिहासकार को पढ़ने के बाद ही ये बात लिख रहा हू, अरे धूर्तता छोड़ो और सीधे-सीधे बताओ कि जब लिपि नहीं पढ़ पाते तो भड़ास पर क्या जताना चाह रहे हो?इससे पहले भी तुम कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद के बारे में लिख चुके हो। तुम जैन नहीं चाहते कि लोग पुराने जख्म भूल सकें इसलिये जब समय उन्हें भरने लगता है तुम दोबारा उन्हें कुरेद देते हो और फिर दस्तावेजों में हेराफेरियाँ करके इतना भ्रम पैदा कर देते हो कि लोग आपस में लड़ते रहते हैं। अब तुम्हारा सीधा सामना अनूप मंडल से है तुम्हारा मायाजाल खत्म हो रहा है इसलिये तुम इस तरह की हरकतें कर रहे हो कि हिंदू-मुस्लिमों में विद्वेष फैल जाए और उनका ध्यान तुम जैनियों से हट जाए
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

क्या औरंगजेब और शाहजहां को उर्दू आती थी ?

दीनबन्धु ने कहा…

ये क्या नया शोशा है यार??
जय जय भड़ास

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