मुंबई के महामक्कार मुसलमान
गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
अभी हाल ही में इसी सप्ताह देश भर में (जिन्हें याद रहा उन्होंने) भारत की आज़ादी के लिये हँस कर मौत को गले लगा लेने वाले काकोरी लूट काण्ड के शहीदों का शहीदी दिवस मनाया गया। भारत की साझी विरासत और कौमी एकजयती की बाते करने वाले सिर्फ़ दिल्ली में ही नहीं मुंबई में भी हैं। रहमत फ़ाउंडेशन नाम की एक संस्था जो कि संस्कृति का राग अलापते हुए किसी तरह राजनेताओं से अपनी जान-पहचान बना रही है उसने शहीद अशफ़ाक उल्ला खान की याद में एक मुशायरा मुम्बई के उपनगर माहिम में रखा और कई नामचीन लोग आए भी। लाख लाख लानत है इस तरह के धूर्त आयोजकों पर जो कि बात तो साझी विरासत की बात करते हैं लेकिन मुसलमानों के लिये करे गए इस मुशायरे में सिर्फ़ शहीद अशफ़ाक उल्ला ही याद आए, जिंदगी भर उर्दू में लिखने वाले शहीद राम प्रसाद "बिस्मिल" और शहीद रोशन सिंह इन मक्कारों को याद न आए उस मंच पर जबकि उसी दिन एक ही काण्ड के लिये इन तीनों की शहादत हुई थी। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है..... लिखने वाले बिस्मिल इन धूर्तों ने भुला दिये। थू है थू है इन मक्कार नाम भर के मुसलमानों पर
जय जय भड
3 टिप्पणियाँ:
अरे थू थू तो तेरे जैसी सोच पर होनी चाहिये ,
क्या सिर्फ मुसलमानों ही शहीद हुए थे स्वतन्त्रता संग्राम में ,बस लगी गाने मुस्लमान मुस्लमान
प्यारे से गधे किस्म के डरपोक प्राणी जो ताऊ के नाम से लिख रहे हो लेकिन भड़ासियों में शामिल हो गये हो तुम्हारे नाम एक संदेश कि तुम बिना पढ़े ही कमेंट कर रहे हो दूसरी बात कि तुम इतने बड़े काने हो कि कमेंट करने के चक्कर में तुम्हारा "जेंडर" गड़बड़ा गया है और तुम शम्स को लगी हो लिख रहे हो....
मजा आ गया प्यारी ताई जी
हा हा हा
जय जय भड़ास
आदरणीय डॉ.साहब ये ताऊ नाम से वो ही राक्षस लिख रहा है जो कि भड़ास में घुस गया है इसे पहचान कर रखना आवश्यक है लेकिन हम जानते हैं कि आप पूर्ण चैतन्य हैं आपको भ्रमित नहीं करा जा सकता।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
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