कोई भी जैन आखिर अनूप मंडल के खिलाफ़ कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं करता????

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

एक बात जो चर्चा का विषय हो सकती है वो ये है कि हमारे देश में भी तो एक ऐसा कानून मौजूद है यानि कि कुछ-कुछ ईशनिंदा की विषयवस्तु जैसा यानि कि धारा 295-ए , इसके तहत किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाऒं के विरुद्ध आचरण करने वाले को दोषी माना जाता है जैसे कि आप मस्जिद के सामने सुअर काटने की दुकान नहीं लगा सकते या मंदिर के सामने गोमाँस विक्रय के लिये नहीं रख सकते(मालेगाँव में तीस रुपए किलो बड़ी आसानी से मिल जाता है मालेगाँव और पुणे में दो गोकुशा मस्जिद ही हैं) यार आप लोग कानून-कानून खेलो भाई ताकि हमारी न्यायपालिका को भी एहसास हो को संविधान की समीक्षा की आवश्यकता है।
अब बात है अनूप मंडल, शर्मा महाशय(भंडाफोड़ू ब्लॉग चलाने वाले) और उन तमाम अलग-अलग मजहबी ब्लॉगरों जैसे कैरानवी, सलीम खान आदि आदि इत्यादि पर आप लोग आपस में बहस करने और एक दूसरे के ब्लॉग पर जाकर बेनामी कमेंट करके गालियाँ देने से तो बेहतर है कि आप लोग कानून कानून खेलिये।
या फिर सीधे शब्दों में लिख कर दीजिये कि आपको भारत की संवैधानिक व्यवस्था पर यकीन नहीं है ये महज लॉलीपॉप चुसवाती है।
मैं जानता हूँ कि इस आलेख पर एक भी ब्लॉगर अपना वक्तव्य नहीं देगा(शायद भाई सुरेश चिपलूणकर आ जाएंगे)
जय जय भड़ास

4 टिप्पणियाँ:

प्रवीण ने कहा…

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प्रिय डा.रूपेश श्रीवास्तव साहब,

मेरी समझ से तो यह ब्लॉगर जो कुछ भी लिख रहे हैं वह समाज के एक तबके (चाहे बहुत छोटा ही हो यह तबका) के दिमाग में चल रहे विचारों की अभिव्यक्ति ही है... और जो उनके ब्लॉगों पर जाकर नाम से या बेनामी भी बहस कर रहे हैं या गाली दे रहे हैं वे भी अपने विचारों को ही अभिव्यक्त कर रहे हैं... कानून-कानून खेलने से हो सकता है कि इनमें से कुछ लिखना छोड़ दें... परंतु यह अनर्गल विचार तो फिर भी चलते ही रहेंगे उन दिमागों में...

तकनीक ने और अंतर्जाल के खुले पन ने यह अवसर दिया है हम सबको कि हम हर प्रकार के विचारों को जान भी सकें और अपना मत भी उन पर दे सकें... यह engagement जरूरी है भी...

और वैसे भी हमारे न्याय में अपशब्द कहने की सजा क्या है... मुचलके पर पाबंद करना ही तो...


...

बेनामी ने कहा…

अनूप मंडल पर वर्षो पहले कार्यवाही हो चुकी है, और उसका साहित्य बेन है।
क्या किजियेगा यहां ब्लॉग-जगत में कोई भी नामी बेनामी कुछ भी दुर्भावनाएँ फैला सकता है।
रूपेश जी, आप भी पता नहीं क्यों ऐसे दुर्भावना वालो प्रशय दिये हुए है।
इनके नाम पते प्रकाशित हो तो कुछ किया जा सकता है।
जैन समाज मुख्यतः शान्त समाज है, वह प्रतिकार करके भी इन तत्वो को प्रोत्साहित नहीं करना चाहता।

Unknown ने कहा…

सबसे पहले तो आपकी माताजी के स्वर्गवास पर मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि…
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मुझे इस बात का शुक्र मनाना चाहिये कि "धर्मान्ध ब्लॉगरों" की भीड़ में आपने मेरा नाम नहीं लिखा… :) :)

अन्त में आपने लिखा कि शायद चिपलूनकर आ जायें…
मुझ पर इतनी नज़रे-इनायत किस वजह से? :) :) :)

(समयाभाव की वजह से इधर कभी-कभार ही आना होता है…)

फ़िर भी कभीकभार तो आकर देख ही लेता हूँ, किस तरह से जय-जय भड़ास पर कभी सलीम को, कभी अनवर को, कभी सुमन को रगेदा जा रहा है… :) :)

सभी भड़ासियों को समस्त शुभकामनाओं सहित…

आजकल मृणाल पाण्डे जी, ब्लॉगिंग की भाषा को लेकर बहुत चिन्तित हैं… बड़ी लेखिका हैं ना इसलिये… एकाध बार उधर भी देख लीजिये… :) :) :)

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

@Suresh Chiplunkar जी
आपने मेरी माताजी के लिये जो श्रद्धांजलि के शब्द लिखे और आप मेरे दुःख में भागीदार हो पाए इसके लिये आभार।
आपकी मुस्कराहट रुक नहीं रही है क्या वजह हो सकती है अनुमान भी नहीं लगा पा रहा हूं। निजी तौर पर कह सकता हूं कि आप धर्मान्ध तो हरगिज नहीं हैं आप जो लिखते हैं तथ्य और तर्क के आधार पर लिखते हैं। "छद्म-सेक्युलरिज्म" की आपने जिस तरह धज्जियां उड़ा दी हैं वह साधुवाद के योग्य है। किन्हीं विषयों पर मेरी और आपकी सोच भिन्न हो सकती है लेकिन कदाचित हम दोनो किन्ही विषयों पर एक जैसे भी तो हैं जैसे कि बहन डा.दिव्या श्रीवास्तव के बारे में याद दिलाऊं। मृणाल बाई भाषा के बारे में चिंतित हैं ये भड़ासियों के लिये नहीं बल्कि बाई के लिये सिरदर्द और रक्तचाप वृद्धि का कारण हो सकता है। वे सिर्फ़ ब्लागिंग की भाषा के प्रति चिंतित हैं ये सोच की बात है;)
हृदय से प्रेम
जय जय भड़ास

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