फ़िल्म "बिल्लू बारबर" पर नाइयों को एतराज़ था,अब "धोबी घाट" में धोबियों को होगा
रविवार, 16 जनवरी 2011
कुछ दिन पहले शाहरुख खान, इरफ़ान खान और लारा दत्ता की एक फ़िल्म आयी थी जिसके नाम को लेकर लोगों ने इतना हड़कम्प मचाया कि बेचारे निर्माता ने उसमें से बारबर(नाई) शब्द ही हटा डाला। जिसको भी जो तार्किक-कुतार्किक शिकायत थी निर्माता ने फ़िल्म के बहिष्कार के भय से समझौता कर लिया। कोई विशेष अंतर न तो पड़ना था और न ही पड़ा। बस कुछ नाइयों को लगा कि उनकी नेतागिरी चल गयी। चूतिये थे सब क्योंकि कुली में अमिताभ बच्चन ने जिस रोल को करा था वह भी जीविकोपार्जन पर आधारित कर्म से ही जुड़ा रोल था। जब तक हमारे देश में संविधान और समाज की व्यवस्थाओं में सामंजस्य नहीं होता ये नाई,बाम्हन,चमार,ठाकुर.... चलता ही रहेगा। आजीविका पर किसी की जाति को नहीं थोपा जा सकता यदि ऐसा है तो टाटा सबसे बड़ा लोहार और बाटा सबसे बड़ा चमार है। अपनी शारीरिक मानसिक योग्यता के आधार पर कोई भी नागरिक किसी भी कार्य को जीविका का साधन बना सकता है और उसे उस कर्म पर गर्व होना चाहिये न कि शर्मिन्दगी। नाइयों और धोबियों के साथ ही कहार,कुम्हार,चमार,महार आदि सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिये जैसे कि अंग्रेज बड़े गर्व से अपना नाम शूमेकर,ब्लैकस्मिथ आदि लिखा करते हैं।
अब धोबियों को आपत्ति हुई तो आमिर खान क्या फ़िल्म का नाम सिर्फ़ “घाट” रख कर काम चलाएंगे?
जय जय भड़ास
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