आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा था वैसे भी जहाँ दिल्ली के दलाल पत्रकार कि संलिप्तता हो वहां बिना दलाली के कोई भी काम को परवान नहीं चढ़ाया जाता है. बदनाम मोहल्ला का कलुआ अविनाश और समरेन्द्र सरीखे पत्रकारिते के निठल्ले ने भोजपुरी के नाम पर उगाही के लिए महोत्सव का तो आयोजन करवाया मगर इस कार्यक्रम के तहत भोजपुरी से सिर्फ उगाही नहीं बल्कि भोजपुरी को चौराहे पर खड़ा कर जलील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
"हे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ईबो" यानी की भोजपुरी सिनेमा का एक पारस जिसने वाकई में भोजपुरी को एक पहचान और आयाम दिया. आज भी जिस सिनेमा को भोजपुरी सिनेमा जगत में पूज्य दर्जा प्राप्त है के नाम पर आयोजकों ने ना सिर्फ भोजपुरी को लज्जित किया अपितु बाकायदा इस सिनेमा के निर्माता और निर्देशक और भोजपुरी सिनेमा के महापिता " विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी" को भी बाजार के हाशिये पर रख दिया.
जी हाँ इस फिल्म के बिना भोजपुरी सिनेमा अधुरा ही नहीं अपितु अपूर्ण रहेगा, सिनेमा का प्रदर्शन करने के लिए आयोजकों ने स्वर्गीय शाहाबादी जी के पुत्र राजकुमार शाहाबादी से बात कि और राजकुमार जी को कार्यक्रम में बुलाना तो दूर आमंत्रण तक नहीं दिया गया. उल्टा आयोजकों ने जिनमे आयोजक कम दलाल लोग ज्यादा थे ने राजकुमार जी पर आरोप मढ़ दिया कि राजकुमार जी पैसे की मांग कर रहे थे.
राजकुमार जी ने बताया कि भोजपुरी के नाम पर आयोजन करने वाले इन लोगों का बिहार और भोजपुर के साथ भोजपुरी से कोई लेना देना नहीं है, व्यवसायिक नजरिये वाले इन लोगों ने बाजार में भोजपुरी सिनेमा को बलिदान कर दिया है.
आने वाले 22 मार्च से बिहार सरकार भी भोजपुरी फिल्म महोत्सव का आयोजन करने वाली है. क्या सरकारी महकमा भोजपुरी कि पवित्रता बरकरार रखेगा जिसे दिल्ली के दलाल आयोजकों ने धूमिल कर दिया.
3 टिप्पणियाँ:
बिल्कुल सही लिखा है रजनीश भाई आजकल पत्रकारिता का हर जगह कमोबेश यही हाल है।
बिल्कुल सही लिखा आपने पत्रकारिता भ्रमित है या लोगों को भ्रमित कर रही है।
पत्रकारिता बन कई है सहुकारिता, जहा हो फायदा वो अब पत्रकारिता का कायदा
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