कल तो हद ही हो गई, कल १४ फ़रवरी था और पूरा भारत ही नहीं अपितु पुरी दुनिया प्रेम रस में सराबोर था, इस रस का एसा नशा है जो वाकई में लोगों को अँधा बहरा गुंगा ही नहीं बल्कि मंद बुद्धि भी बना देता है. ये मैं नहीं कह रहा बल्कि कल का लोगों का कृत्य इस बात की गवाही दे रहा है.
जी हाँ कल अचानक से प्रेम दिवस पर जिस एक मोबाइल सन्देश ने सबसे ज्यादा सन्देश लोगों तक पहुँचाया वो था वीर भगत सिंह, वीर शुख्देव, वीर राज गुरु का शहादत दिवस. भारत के इन तीन सपूतों को अंग्रेजों ने सरे आमफंसी दे दी थी और वो दिन हमारे इतिहास के पन्ने से कभी ना मिटने वाला दिन बन कर हमारे दिलों में, रगों में सांसों में अमर हो गया.
अर्ररर मगर ये क्या हिन्दुस्तान के पढ़े लिखे ( माफ़ करें इन चूतियों को जाहिल कहें तो बेहतर ) लोगों ने अमर शहीद के शहादत से भरा सन्देश अपने मोबाइल में पाया (नि:संदेह ये किसी खुराफात के शैतानी दिमाग की ही उपज होगी) और बिना जाने समझे और सोचे उसको अधिकाधिक फॉरवर्ड करने में लग गए.
हमारा युवा और हमारा पढ़ा लिखा समाज कहाँ जा रहा है, कहने को हमारा युवा देश का कर्णधार और देश का पूंजी है मगर ये कैसा पूंजी है जो अपने तिरंगे के अर्थ को नहीं जानता, अपना अतीत नहीं जानता और पाश्चात्य की अंधी दौड़ में अपने पुरखों के साथ इसी घिनोनी हरकत करता है तो हमारे भविष्य पर बिना सोचे संदेह होता है.
कल का एक सन्देश ने हमारी भारतीयता को मोमबत्ती संस्कृति बनने की राह का असलियत खोल कर रख दिया कि हम और हमारी भारतीयता किस दिशा में हैं.
1 टिप्पणियाँ:
रजनीश भाई आप जिन लोगों के बारे में राय कायम करके उन्हें चूतिया जैसे विराट शब्द से नवाज़ रहे हैं ये गलत बात है ये उस लायक भी नहीं हैं। जो ढक्कन प्रेम को एक दिन उत्सव के तौर पर मनाते हैं उन्हें कैसे याद रहेगा कि चौदह फरवरी या तेइस मार्च, क्या फ़र्क पड़ता है। भविष्य की मां की आंख है ये तो समझा समझाया है भाई
जय जय भड़ास
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