प्रवीण शाह और अमित जैन के साथ अनूप मंडल भी ध्यान दें(प्रकाश गोविन्द तो अंधकार में खो गये)

सोमवार, 21 मार्च 2011

यदि ये बात कोई सड़कछाप करता तो अवश्य संदेह करा जा सकता था लेकिन डा.रूपेश श्रीवास्तव स्वयं एक अत्यंत भारी भरकम डिग्री धारक डाक्टर हैं ये बात क्या आपके लिये कोई मायने नहीं रखती??डा.साहब किसी धार्मिक आस्था पर नहीं चलते ये आप जानते हैं या नहीं इसलिये वे आस्था के आधार पर तो प्रभावित नहीं कहे जा सकते। ध्यान दीजिये कि वे कैमरा लेकर उस प्रकरण का वीडियो बना रहे हैं यानि कि वे शुरू से ही संदेह कर रहे हैं(आप में से कोई भी इस बात पर ध्यान नहीं दे रहा या फिर जबरन नजर अंदाज कर रहा है)
अमित जी निःसंदेह मुझे न तो जैनों और अनूप मंडल के विवाद से कोई लेना देना है न ही इस बात से कि कौन किस धार्मिक आस्था को मानता है। यहां पर फिलहाल जो विचार चल रहा था वह था तंत्र-मंत्र(काले जादू से संबंधित)के अस्तित्व में होने या न होने का,मैं स्वयं डा.अब्राहम कोवूर की दुनिया भर को दी गयी चुनौतियों को जानता हूं लेकिन आप एक बात ध्यान दें कि डा.रूपेश श्रीवास्तव ने साइंस की उन शाखाओं की तरफ भी बात करी थी जिन्हें उन्होंने मेटाफ़िजिक्स व पैरासाइक्लोजी बताया था। किसी भी जानकारी का सिद्धान्त से होकर अमल में आने तक की यात्रा को हम साइंस कहते हैं लेकिन आप और प्रवीण शाह जी ने अनर्गल/प्रलाप/अपमान जनक शब्दों में विमर्श को पीछे धकेल लिया यदि प्रकाश गोविन्द के नीचे के बालों के बारे में मुनेन्द्र ने कुछ लिखा तो उसकी शुरूआत क्या मुनेन्द्र ने करी थी,प्रकाश गोविन्द तो चुप्पी साध गए अपने बाल भेजने के वीडियो के बारे में और आप लोग परेशान हो गए। अमित जी से उनकी गलती के बारे में लिखा था जो कि वे शायद अब तक न तलाश सके जो इतनी बचकानी गलतियां कर रहा हो वह साइंस और शोध की बात करे तो विचित्र लगता है। धार्मिक मंत्रों का मंडन करना अमित जी को क्यों मजबूर कर रहा है। मंत्र यदि सचमुच प्रभाव रखते हैं तो फिर उसी शक्ति को गलत प्रयोग में भी लाया जा सकता है आपको पानी जैसी निर्दोष चीज से भी मारा जा सकता है जो कि जीवनदायी है आप क्यों मंत्रों के दुरुपयोग को नकार रहे हैं या ये क्यों दुराग्रह रखे हैं कि आपके पास सत्यमापन के जो तरीके हैं वे आदर्श हैं?साइंटिस्टों में भी आपस में मतभेद होता है जो कि विकास का आधार बनता है एक समय था जब कि परमाणु का माडल बनाने वाले साइंटिस्ट को नोबल पुरस्कार दिया गया बाद में बीस साल बाद वही माडल नए शोध के बाद नकार दिया गया और नए माडल को स्वीकारा गया रदरफ़ोर्ड से लेकर चैडविक तक सभी तो साइंटिस्ट थे और अपने दौर के सम्मानित लोग रहे क्या आप उन्हें अब बेवकूफ़ कह सकते हैं? मंत्र ध्वनि पर आधारित होते हैं तो ध्वनि के प्रभाव/दुष्प्रभाव को आप सिरे से खारिज नहीं कर सकते। बीमारियां फैलाने और प्राण लेने के लिये करे गए मारण कर्म संभव है कि मौजूदा साइंस से अधिक उन्नत साइंस के प्रयोग हों जिसे आप लोग मात्र छू-छक्का या अंधविश्वास कह कर विमर्श नहीं कर रहे। रही बात भाषा की तो शब्दों की बजाए भाव पर ध्यान दीजिये बेहतर रहेगा बस आप संयत रहें जिसे जैसे लिखना है वो लिखे बदनामी तो उसी की होगी कि एक आदमी सरल स्वभाव है दूसरा दुष्ट है गालियां दे रहा है लेकिन इसमें विमर्श रुक जाए तो हानि ही होगी क्योंकि विषय गम्भीर है।
अमित जी तीसरी-चौथी क्लास की बचकानी बातों को ही साइंस मानते हैं तो ये दुःख की बात है कि प्याज या नींबू के रस से कागज पर लिख दिया और वीडियो बना दिया। भाई मैं तो ये भी लिख चुका हूं कि डा.रूपेश श्रीवास्तव का बनाया वीडियो भी संदेहास्पद हो सकता है ट्रिकी हो सकता है मार्फ़्ड हो सकता है लेकिन विषय और प्रकरण पर ध्यान दें तो भला होगा।
जय जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई

3 टिप्पणियाँ:

प्रवीण ने कहा…

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प्रिय संजय कटारनवरे जी,

मंत्र यदि सचमुच प्रभाव रखते हैं तो फिर उसी शक्ति को गलत प्रयोग में भी लाया जा सकता है आपको पानी जैसी निर्दोष चीज से भी मारा जा सकता है जो कि जीवनदायी है आप क्यों मंत्रों के दुरुपयोग को नकार रहे हैं या ये क्यों दुराग्रह रखे हैं कि आपके पास सत्यमापन के जो तरीके हैं वे आदर्श हैं?साइंटिस्टों में भी आपस में मतभेद होता है जो कि विकास का आधार बनता है एक समय था जब कि परमाणु का माडल बनाने वाले साइंटिस्ट को नोबल पुरस्कार दिया गया बाद में बीस साल बाद वही माडल नए शोध के बाद नकार दिया गया और नए माडल को स्वीकारा गया रदरफ़ोर्ड से लेकर चैडविक तक सभी तो साइंटिस्ट थे और अपने दौर के सम्मानित लोग रहे क्या आप उन्हें अब बेवकूफ़ कह सकते हैं? मंत्र ध्वनि पर आधारित होते हैं तो ध्वनि के प्रभाव/दुष्प्रभाव को आप सिरे से खारिज नहीं कर सकते। बीमारियां फैलाने और प्राण लेने के लिये करे गए मारण कर्म संभव है कि मौजूदा साइंस से अधिक उन्नत साइंस के प्रयोग हों जिसे आप लोग मात्र छू-छक्का या अंधविश्वास कह कर विमर्श नहीं कर रहे।

ध्वनि आधारित मंत्रों के शुभ या मारक प्रभाव होते हैं या नहीं यह विषय आस्था का है क्योंकि इन प्रभावों को क्वान्टीफाई नहीं किया जा सकता... यहाँ प्रसंग यह है कि एक महिला (डॉ० साहब की माताजी) बीमार हैं व बीमारी का निदान नहीं हो पा रहा, एक तान्त्रिक की सेवायें ली जाती हैं, वह कुछ पूजा के उपरान्त तीन तथाकथित रूप से बिना कटे पपीतों के साथ अपने घर में कुछ पूजा करता है व महिला के घर जाकर उन पपीतों के अंदर से बहुत सा सामान (जो प्राकृतिक तौर पर पपीतों के अंदर नहीं होता) निकाल दिखाता है इसी आधार पर कहता है कि यह तंत्र का मारक प्रयोग है जिसकी काट नहीं है... यानी बिना कटे पपीतों से सामान निकलता दिखा वह अपनी मान्यता को स्थापित कर रहा है... यहाँ सवाल यह है कि क्या तंत्र-मंत्र, दैवीय या पैशाचिक शक्ति द्वारा किसी बिना कटे फल के अंदर कोई चीज भौतिकी के तमाम नियमों को दरकिनार करते हुऐ पहुंचाई जा सकती है... क्या दोबारा से वही या कोई दूसरा तान्त्रिक एक ऐसे पपीते से, जिसे उसे छूने न दिया जाये, तीन चार गज दूर से मंत्रोच्चारण व पूजा आदि वह कर सकता है, फिर वही या कुछ अन्य चीजें प्रगट कर सकता है... निश्चित तौर पर नहीं !

कई अन्य भी दैवीय शक्तियों व मंत्र प्रभाव से हवा में से चीजें पैदा करने का दावा करते हैं जैसे पुट्टापुर्थी के सत्य सांई बाबा... परंतु वह भी कभी अपने इस दावे के वैज्ञानिक परीक्षण के लिये तैयार नहीं हुऐ हैं...


...

dr amit jain ने कहा…

@ लेकिन आप और प्रवीण शाह जी ने अनर्गल/प्रलाप/अपमान जनक शब्दों में विमर्श को पीछे धकेल लिया


किर्पया अनर्गल/प्रलाप/अपमान जनक शब्दों को बताये ,ये कोन से है और कहा लिखे है , क्या सिर्फ अमित जैन और परवीन साह ने ये लिखे है या आप बाकि सब की तरफ से आख बंद कर के उन का कोई कर्ज उतर रहे है

dr amit jain ने कहा…

लगता है संजय जी आप को अपनी qualification पर काफी गर्व है जो आप मेरी बातों को ३- ४ class की बात बता रहे है , क्या कोई well qulified व्यक्ति कभी गलत नहीं हो सकता ?, क्या उस के द्वाला लिए गये निर्णय सभी पर थोपे जाने चाहिये?, हमे कोई शक नहीं है की डॉ साहब PhDनहीं है , फिर आप उन की डिग्री का फायदा ले कर हमे विचार विमर्श मे गलत क्यों दिखाना चाहते है ?, अगर आप इस सब पर विश्वाश करते है तो करते रहे , आप ने इस को शोध का विषय बनाया है ,तो शोध कीजिए ना की शोध के बहाने गली गलौच ,जिस तरह से मुनेन्द्र सोनी ,सभी जैनो को राक्षश लिख रहे है ,साथ मे जैन मुनियों को नंगे कह कर अपमानित कर रहे है , जब आप की जबान पर ताला लग जाता है ,मै मंत्रो का मंडन कर रहा हू ,कहा लिखा है ?
,क्या आप नास्तिक है ?विश्वाश और अन्धविश्वाश मे बस जरा सा फर्क है , आप कोरे अन्धविश्वाश को हवा दे रहे है ?अगर आप को लगता है की ये शोध का विषय है तो उस की रुप्रेका परस्तुत करे की आप ने इसे इस तरह से शोध के लिए तैयार किया है ,न की सोनीजैसे पागलो को आगे कर के सभी को गली दे , उस पर तुरा ये की हम तो इससे ही भडाश निकलते है , अगर कोई तुम्हे कुछ कहे तो बौद्धिक हो जाओ ,उसे तीसरी -चौथी क्लास की बाते बताओ अरे आप उस जैसी कितनी जरा सी ट्रिक को जानते है , मेरे कहने का मतलब ये था की इस तरह से किसी का भी बेवकूफ बनाया जा सकता है , अन्धविश्वाश से बचने का एक उपाय सिर्फ जानकारी बढ़ाना है

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