डा.दिव्या बौद्धिकता की रेत से मुंडी बाहर निकाल कर देखिये:)

गुरुवार, 31 मार्च 2011

संजय कटारनवरे --प्रोत्साहन और आलोचना के बाद "कन्नी काटने" और "पल्ला झाड़ने" के विषय पर भी लिखियेगा क्योंकि आपने अब तक निशाप्रिया भाटिया को ऐसे सुझाव नहीं दिये कि उनके विरोधी पागल होकर बाल नोचने लगें और कपड़े फाड़ लें। यदि समाज में सुधार की अपेक्षा हो तो जरूरी है कि जो कहें उसे अमल में लाएं वरना पर उपदेश कुशल बहुतेरे.... लिखना पढ़ना तो चलता ही रहेगा
डा.दिव्या--प्रिय संजय ,

आप कितने भोले हैं । पिछले दो माह से आपको ट्रेनिंग पर रखा है और आप सीख भी गए हैं 'बाल नोचना' , फिर भी पूछते हैं की बाल नोचने के सुझाव दीजिये ? मेरे प्यारे मासूम से भाई , आपने भड़ास ब्लॉग पर मेरे खिलाफ ढेरों पोस्ट लगा रही है , मुझे शुतुरमुर्ग और जंग लगा लोहा कहते हो आप । मुझे ललकारते हो आप , कि आकर आपसे संवाद करूँ । लेकिन प्रिय संजय , मैं सुझाव देने के बजाये आपको प्रक्टिकल ट्रेनिंग दे रही हूँ बाल नोचने की । आप मुझसे खफा होकर जितना ज्यादा मेरे खिलाफ भड़ास निकालोगे , समझ लेना उतने ही ज्यादा बाल नोचे आपने अपने। आशा है अब आप समझ गए होंगे की विरोधियों से बाल कैसे नुचवाये जाते हैं।

अधिक क्या कहूँ , मुस्कुरा रही हूँ , आपके भोलेपन पर ।

ये भोलापन तुम्हारा , ये शरारत और ये शोखी , ज़रुरत क्या तुम्हें तलवार की , तीरों की , खंजर की ....

सस्नेह,
आपकी शुभचिंतक ,
दिव्या
.
(ये रहा मेरा और डा.दिव्या का संवाद जो कि उनके ही ब्लाग पर हुआ है क्योंकि वे शायद भड़ास पर आने से परहेज करती हैं)
अब आगे.....
मेरे पड़ोस में एक ठेठ हिंदी भाषी परिवार रहा करता था जिसमें पिताजी मेरी देहयष्टि और बालों को देख कर कहा करते थे "मूड़ मुड़ाए तीन नफा, गर्दन मोटी सिर सफ़ा सीसा कंघी तेल बचा"
मैं बाल नोचूं इस बात की आप मुझे कितना भी प्रशिक्षण दें सब व्यर्थ ही जाने वाला है। बात तो बहन निशाप्रिया भाटिया और उनके विरोधियों की थी आप मुझे अपना विरोधी मान कर जबरन ही दो माह से प्रशिक्षण देने का श्रम कर रही हैं आखिर चुप्पी साधना भी एक स्त्री के लिये श्रमसाध्य कार्य है तब जबकि उसे गोडसे का पक्ष लेते हुए विचार को प्रकाशित करने पर पचासों-सैकड़ों टिप्पणियां मिलती हों। एक बात आपसे और कहना है कि यदि भड़ास निकालने वाले अंदाज में लिखने का अर्थ आप ये लगाती हैं कि भड़ासी अपने बाल नोच रहे हैं तो आप शायद ये मानती हैं कि आपके भाई यानि मेरे गुरूजी तो सदा गंजे ही रहते होंगे क्योंकि जैसे ही एक भी बाल सिर पर आता होगा वे दूध के बढ़ते भाव की भड़ास निकालने के चक्कर में उसे भी नोच डालते होंगे। दिव्या बहन, भड़ासी अपने बाल नहीं नोचते बल्कि दूसरों के साथ ही झोटौव्वल करते रहते हैं। रणधीर सिंह सुमन से लेकर प्रकाश गोविन्द तक की चुप्पी पर यदि मैं बाल नोचने लगूं तो आपकी मुस्कराहट पर मुझे यकीन हो चला है कि आपकी मुंडी अभी तक आपने रेत के ढेर से बाहर नहीं निकाली है। महक की दुर्गंध याद है या फिर अरविन्द मिश्रा की बदतमीजियां भूल गयीं आप? बालों का नोचना खसोटना निजी तौर पर उस स्थिति में होता है ये आप भली प्रकार देख और भुगत चुकी हैं।
मैं आपको निशाप्रिया भाटिया की स्थिति में कल्पना करता हूं कि आप नौकरी ज्वाइन करती हैं वो भी RAW जैसी प्रतिष्ठित सरकारी संस्था में ये बात दीगर है कि आपका वैवाहिक जीवन किन्ही कारणों से बिखर चुका है और आप अपनी बेटियों के साथ अकेले समाज में जीने का दुःसाहस कर रही हैं। कुछ ही दिनों में आपका वरिष्ठ अधिकारी आपके साथ अनैतिक यौन संबंधों के लिये दबाव डालना शुरू करता है जिसकी आप कार्यालय के वरिष्ठतम अधिकारी से शिकायत करती हैं तो वह आपको समायोजन की सलाह देता है कि आपको यदि रहना है तो कम्प्रोमाइज करना ही पड़ेगा। आप इसपर भी हिम्मत हारे बिना शिकायत को और आगे बढ़ा देती हैं जिसपर आप पर बददिमाग और बदतमीज़ होने के आरोप लगा दिये जाते हैं साथ ही विभागीय तौर पर ये भी कहा जाता है कि आप गर्म दिमाग,अधपगली किस्म की हैं। इस क्रम में न्यायायिक प्रक्रिया में आप सस्पेंड हो जाती हैं नौकरी चली जाती है आप जेल में रहती हैं दिनों दिन होते होते बरस दर बरस निकल जाते हैं। मीडिया का भी साहस नहीं होता कि आपसे सहानुभूति रखे क्योंकि मामला RAW और न्यायायिक सेवाओं पर सवाल उठाने का था। ऐसे में आपके भाई और मेरे गुरू जी जैसे कुछ सिरफिरे जिनमें कि बहन वंदना भदौरिया जैसे लोग भी शामिल हैं आपके साथ हो लेते हैं और आपकी बात कोर्ट के बंद कमरों से निकल कर जनता में आती है। चूंकि न्यायपालिका और ब्यूरोक्रेसी की सांठगांठ कुछ इतनी ताकतवर है और जनता इतनी गाफ़िल है कि कुछ होता ही नहीं बस जेल में आप सतायी जा रही हैं और जेल से बाहर आपकी जवान बेटियों पर क्या बीत रही है इसका तो बस अंदाज जस्टिस आनंद सिंह वाले प्रकरण से लगाया जा सकता है।
निशाप्रिया भाटिया ने गलत करा, बहुत गलत करा कि उस न्यायाधीश के सामने अंगवस्त्र उतार फेंका ऐसी लिजलिजी और भ्रष्ट प्रक्रिया के विरोध में जिस पर न्यायाधीश ने उन्हें मनोरोगी करार करके ठप्पा लगा दिया और यही तो सिस्टम चाहता था जो कि जस्टिस आनंद सिंह ने नहीं करा और वे अभी भी लड़ रहे हैं ये बात अलग है कि वे खोते ही जा रहे हैं।
डा.दिव्या श्रीवास्तव क्या करेंगी बताइये?
आप उल्टी करते मरीज से घबराती हैं कैसी चिकित्सक हैं???भड़ास पर आपके खिलाफ़ नहीं लिख रहा हूं न ही आपको ललकार रहा हूं बल्कि वो (प्रेक्टिकल)सलाह चाहता हूं जो बहन निशाप्रिया भाटिया तक पहुंचा सकूं और उनकी बेटियों को भी बता दूं ताकि उनका जीवन सही तरीके से बसर हो सके।
जय जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई

1 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

संजय भाऊ एक गोष्ट तर स्पष्ट झालेली आहे कि तुम्ही ह्या मुद्या चे मागेच लागले। छंद चांगला आहे पन जर दिव्या कड़े उत्तर नसेल तर का त्याला ब्लागिंग सोड़ावा लागणार? जे काही तिचे मनात होता लिहला हे आवश्यक नाही कि उत्तर असेल। दिव्या नु्सती ब्लागर आहे हे तुम्ही बघतात आणि ही कदाचित कमी नाही कि तिचे मनात पण देशाचे भल्या होवे सारखीच गोष्ट आहे। माझा मत आहे कि तुम्ही ही गोष्ट सोडुन द्या लिहुन द्या तिला तिचे मंतव्य आणि देउन द्या तिचे टिप्पणीकारांना त्यांचे मत...।
जय जय भड़ास

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