रुग्ण चिकित्सक साम्यवादी रणधीर सिंह सुमन ने फिर बांटी बुखार की nice टैबलेट
शनिवार, 19 मार्च 2011
बीमार मानसिकता के चलते कुछ लोग अत्यंत बेशर्म हो जाते हैं यही मानसिकता इंसानों को सियारात्मक जीवन जीने पर बाध्य कर देती है। एक हैं रणधीर सिंह सुमन इस से जब भी ये पूछा जाए कि देश की जनगणना वाले फार्म पर अपनी जाति और धर्म क्या लिखवाया या फिर अधूरे फार्म पर ही हस्ताक्षर कर दिये? इस जैसे सभी स्वयंभू कम्युनिस्टों ने इस फार्म के धर्म के खाने में क्या लिखाया है ये जानना चाहा था।
इसे लगता है कि ये हमें इस तरह से nice की टैबलेट देकर चिढ़ा रहा है और हम लोग चिढ़ कर प्रतिक्रिया करते हैं। ये पहले जब बुखार की दवा सारे ब्लागरों को बांटा करता था तो कुछ लोगों ने इसे कस कर रगेदा था जिस पर इसने अपनी तबियत का रोना शुरू कर दिया था। निर्लज्जता के मानवीय(?) इस प्रतीक को मैं इसकी भड़ासियों को दी हुई बुखार की दवा लौटा रहा हूं। जो खुद बुखार से ग्रस्त है वह दूसरों को दवा दे रहा है, ऐसे लोग किनका संघर्ष करेंगे और किनका भला करेंगे ये तो सब समझ पा रहे हैं।
रणधीर सिंह सुमन ने कहा....... nice
इसी में डा.दिव्या जी से निवेदन है कि यदि वे बहन निशाप्रिया भाटिया को प्रताड़ित करने वालों को इस स्थिति तक पहुंचाने के उपाय बताएं वे लोग अपने कपड़े फाड़ कर बाल नोचने लगें। बुद्धिजीवियों का मौन भड़ास पर उनके कुटिल स्वभाव का परिचय माना जाता है क्योंकि वे किसी विषय को उसके सत्परिणाम तक पहुचाए जाने की परेशानी से लड़ने का साहस नहीं रखते। किसमें इतना माद्दा है कि जो डा.रूपेश श्रीवास्तव की तरह सिर फ़ुटौव्वल करे?
जय जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई
2 टिप्पणियाँ:
Nice
nice
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अब मेरी तबियत ठीक हो गयी है जितनी बुखार की दवा चाहो दे सकता हूं
अरे यार ये अब किसने खुराफ़ात करी है? वकील बाबू को खुद आने दो यार नाइस की टैबलेट लेकर....
डा.दिव्या ने अपने ब्लाग पर मौन-मौन और संवाद-संवाद खेला है लेकिन इधर आकर उत्तर देने का साहस नहीं जुटा सकीं। होली की शुभकामनाएं कुछ दिन तक स्वीकारेंगी फिर इस भ्रम में रहेंगी कि भड़ासी इस बात को भूल जाएंगे कि वे ब्लागिंग से समाज में सुधारात्मक बदलाव की बात करती हैं। एक शाह हांफता-कांपता भाग लिया...
जय जय भड़ास
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