जो हिंदू हैं कृपया इसे न पढ़े क्योंकि उन्हें नष्ट होने का दुःख होगा
शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011
हाल ही में देश की जनगणना गयी जिसमें धर्म हिंदू,मुसलमान,ईसाई,बौद्ध और जैन प्रमुखता से नामांकित करे गए थे। जैनों ने खुद को हिंदुओं से अलग जता-बता दिया अब इस आधार पर राजनैतिक समीकरण तय होंगे। जैन अल्पसंख्यकों में बताए गए। बिल्कुल साफ़ है कि ये हिंदू नहीं हैं ये अल्पसंख्यकों को भारत सरकार द्वारा दिये जाने वाले सारे फ़ायदों को चुपचाप चूसते हैं लेकिन जब कहीं कोई इस तरह की परेशानी आती है कि इनकी अकूत सम्पत्ति पर जांच आदि करने की बात हो तो ये हिंदू बन जाते हैं और हिंदुओं को लड़ा देते हैं भोले हिंदू इन राक्षसों की लड़ाई लड़ने लगते हैं। "नवभारत टाइम्स" मुंबई में प्रकाशित इस खबर को देखिए..........
महानगर पालिका ने आदेश करे और जैनों ने हिंदुओं को भरमा दिया। ये राक्षस अपनी अकूत संपत्ति को बैंको में अधिकतर जमा नहीं करते इनका सारा लेनदेन इनके मंदिरों में छोटी-छोटी पर्चियों के माध्यम से होता है कदाचित ये बात किसी समझदार अधिकारी की नजर में आ गयी होगी लेकिन अब उसे झुकना पड़ेगा क्योंकि इन राक्षसों ने अपनी लड़ाई के लिये हिंदुओं की बलि चढ़ाने का माहौल बना दिया है।
हिंदू यदि अभी भी इन राक्षसों से सावधान न हुए तो एक दिन ये "जयति जिन शासनम" का नारा लगाने वाले, जिनों, नंगों के उपासक पूरी धरती के अर्थतंत्र पर काबिज होकर अपना राक्षसी शासन कायम कर लेंगे। ये ही हैं वे राक्षस जो कि मुस्लिमों में भी घुसे हुए हैं आप देख सकते हैं मुसलिमों में एक खास फ़िरके को जो कि सिर्फ़ व्यापार करता है और हर मुस्लिम जानता है कि वे कितने बेमुरव्वत होते हैं। अभी भी जाग जाओ हिंदुओ-मुसलमानों वरना आपस में लड़ कर खत्म हो जाओगे।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
बहुत दुख की बात |
MARKAND DAVE
कौन राक्षस है और कौन देवता ये तो दुनिया बनाने वाला ही जाने लेकिन आपने नवभारत टाइम्स की जिस खबर का हवाला दिया है वह सत्य है। मेरी भी समझ से बाहर है कि जब जैन हिंदू नहीं हैं तो फिर ऐसा क्यों कर रहे हैं वे यदि धर्मस्थलों में आने वाले दान आदि के विषय में चाहते तो मस्जिदों और बौद्ध मठों को भी साथ ले सकते थे सिर्फ़ हिंदू ही क्यों??? कृपया अब इस बात पर अमित जैन और प्रवीण शाह जी से बयान मत लेने लगियेगा :)
जय जय भड़ास
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हिन्दू धर्म और हिन्दुओं को आंच पहुंचाने वाले बहुतेरे राक्षस आये और आकर चले गए , कुछ बिगाड़ नहीं सके । अब इन चींटियों के भी पर निकल आये हैं , ऐसा लगता है। गीदड़ों की जब मौत आती है तो वे जंगल की तरफ भागते हैं।
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