काश मैं तुम्हारा वध कर सकती
बुधवार, 4 मई 2011
आज से लगभग डेढ़ साल पहले अपने भाई डा.रूपेश जी के मुंह से एक पत्रकार के लिये बड़े कड़े शब्द सुने तो अजीब लगा कि भाई जैसा संयत व्यक्ति गुस्से में क्यों है। मुंबई से प्रकाशित होने वाले एक बड़े मराठी अखबार का एक धूर्त पत्रकार नाना करंजुले ने हमारी एक परिचित डा.साधना के खिलाफ़ एक रिपोर्ट लिखी थी जबकि उनके केन्द्र पर गए बिना ही उन्हें इतना ब
दनाम कर दिया था कि बेचारी को हार्ट अटैक आ गया, पैंसठ साल की अकेली रहने वाली डा.साधना के साथ क्या गुजरा ये भाई ने देखा तो बस फिर क्या था भड़ासी की भड़ास इंटरनेट से निकल कर अखबार के कार्यालय में पहुंच गयी और उस पत्रकार को लतिया डाला।
आप सब को पता होगा कि पनवेल में हाल ही में मतिमंद लड़कियों के एक आवासीय केन्द्र में लगातार हो रहे बलात्कार के सिलसिले में काफ़ी जोर लगाने के बाद पुलिसिया कार्यवाही हुई। मुझे आज "मुंबई मिरर" अंग्रेजी अखबार में देखने को मिला वही हरामखोर नाना करंजुले पत्रकार जो कि उन बच्चियों के साथ लगातार बलात्कार और उन्हें लोगों को परोसने का आरोपी है। काश ऐसा हो सकता कि मैं इन नीच का वध कर सकती। पत्रकारिता के नाम पर कलंक इस नीच ने मीडिया की ताकत का इस्तेमाल कर काफ़ी रसूख पा लिया था लेकिन अब कानून के फंदे में है और कैमरे से मुंह छिपा रहा है।
जय जय भड़ास

4 टिप्पणियाँ:
मै आप के साथ हू बहन
मनीषा दीदी अमित जैन आपके साथ है नाना करंजुले का वध करने में :)
जैन हिंसक हो उठा है अब धरती की खैर नहीं;)
वध करने की हिंसा में सहमति दे रहा है कि अच्छा है मार डालो मैं आपके साथ हूं;)
शायद मेरा विरोध करने में संजय भूल गए की यदि वो उन बच्चियो को अपनी बहन या बेटी की नजर से देखेगे तो उस का खून भी मनीषा बहन या मेरी तरह खोल उठेगा
परन्तु संजय की नजर तो वही है न, की दूसरे की बहन बेटी तो संजय की हवस को मोका मिलते ही पूरा कर देगी
तो संजय क्यों गुस्सा आएगा
ये बात तो उसे हास परिहास की ही लगे गी जभी तो मुस्कुरा रहा है [ .....:) ]
सुरेश वर्मा आप कैसे वर्म(worm)+आ हैं जो कि भड़ास के सदस्य न होते हुए भी टिप्पणी बिना संचालक की अनुमति के कर पा रहे हैं। संजय कटारनवरे ही क्या मैंने या अन्य बहुत सारे भड़ासियों ने इस विषय पर सहमति की टिप्पणी नहीं दी इसका अर्थ ये नहीं कि हम सब असहमत हैं और बच्चियो पर हवस भरी नज़र रखते हैं। मुझे आप और शालू जैन की शख्सियत संदिग्ध लग रही है। आपको आश्चर्य होगा कि पहले पहल तो इस आश्रयप्रकरण में पुलिस ने नाना करंजुले के दबाव के चलते कोई कार्यवाही ही नहीं करी थी। नाना करंजुले एक बहुत बड़े मीडिया हाउस का पत्रकार रहा है तो पुलिस और स्थानीय प्रशासन में उसकी गहरी पकड़ और प्रभाव रहा है लेकिन मेरी उससे सीधी भिड़ंत मेरी एक बहन डा.साधना फाटरपेकर के मामले में हो चुकी थी। मैं उसके कुत्सित कारनामों से परिचित था इसलिये इस मामले में आफ़लाइन सड़क पर आकर हंगामा करा बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से स्थानीय लोगों और गैरसरकारी संगठनों के साथ जिसका प्रतिफल सामने है कि सब के सब कानून की ज़द में हैं।
हम भड़ासियों के निशाने पर हमेशा ऐसे लोग रहे हैं। आपको नैतिक तौर पर संजय कटारनवरे से क्षमा मांगना चाहिये लेकिन आपके अनर्गल आरोप से संजय की सेहत पर क्या फ़र्क पड़ने वाला है क्या उसने कभी आपकी मां बहन पत्नी या बहन को हवस भरी नजर से देखा है जो कि आपको पता हो गया कि वो क्या और कैसे देखता है?
जय जय भड़ास
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