लोकसंघर्ष के नाम पर सुअरलोटन करने वाले लाल सलाम कर रहे हैं रामदेव को

मंगलवार, 7 जून 2011


सच बात है कि नाम कुछ भी हो लोग बस प्रवृत्तियों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। अब हम चाहें तो इसमें डॉ.दिव्या श्रीवास्तव की उस जंग लगी शख्सियत को ले लें जो स्वयंभू "आयरन लेडी" बनी बैठी हैं, अमित जैन और प्रवीण शाह जैसे स्वयंभू आधुनिक, तार्किक, वैज्ञानिक सोच रखने का पाखंड करने वाले महागधे हों, गुफ़रान सिद्दिकी जैसे धर्मांध हों जो अभी भी मानव सभ्यता में तलवारों से फैसले करने के युग में दिमागी तौर पर जिये जाने की वकालत करते हैं या फिर रणधीर सिंह सुमन जैसे मक्कार जो कि निजी लाभों को ऐसे जता-बता कर मूर्ख जनता के दिमाग में ठूंसते हैं कि वे ही सबका भला चाहते हैं और पूरी दुनिया में इनसे ज्यादा बड़ा शरीफ़ कोई नहीं है, ये मुखौटाधारी, nice का जाप करने वाला उस अंग्रेजी कुटिलता का प्रतिनिधि है जो कि साहब बहादुर या सर जैसी उपाधियाँ देकर लोगों को मूर्ख बनाती थी और उनकी ही जनता के दमन के लिये उन्हें इस्तेमाल करती थी।
नेता रामदेव यादव को लाल सलाम करने रामदेव पर व्यंग करने वाले ये लोग क्या कर रहे हैं बस इतना ही तो कि ये अपनी लाल और दूसरों की काली बता सकें। कितना अच्छा लगता है खूनी लाल सलाम जिसमें व्यंग हो इस बात का कि रामदेव ने दुस्साहस क्यों करा सिस्टम से टकराने का। रामदेव को इनकी तरह करना चाहिये बैठ कर "दास कैपिटल" पर बहस-मुबाहिसा या फिर हथियार उठा कर निर्दोंषों पर गोलियाँ चलाना पैसों के लिये उद्योगपतियों से धन उगाही करना।
मैं एक बात दावे के साथ कह सकता हूँ कि जैनों का विरोध करने वाला रणधीर सिंह सुमन कहीं न कहीं खुद भी उन्हीं के जैसा है। लो तर्क भी रख देता हूँ प्रवीण शाह को पचाने में आसानी होगी। श्रम से उपजी श्रमण परम्परा को मानने वाले जैन हैं जो कि ज्ञान/ब्रह्म की बातों को थोथा और खोखला मानते हैं तो सिद्ध हुआ न कि सभी कम्युनिस्ट विचारधाराएं जैनियों के अलग-अलग सम्प्रदाय हैं जो कि समाज में मुखौटा लगा कर रह रहे हैं। श्रमण परम्परा का सामाजिक पक्ष कितना खूंख्वार और आतंक से लबालब है ये तो आप समझ गये होंगे कि श्रमण परम्परा की बात करने वाले किस हद तक पैशाचिक सोच रखते हैं। एक सीधा सा सामाजिक समीकरण प्रस्तुत कर रहा हूँ प्रवीण शाह के लिये जो अनूप मंडल को जैनों के बारे में विकीपीडिया और रफ़्तार आदि जगहों से उठा कर बता रहे थे.... दो परम्पराएं = ब्राह्मण + श्रमण ब्राह्मण = शोषक और कुटिल जताए गये श्रमण = शोषित और दलित लेकिन विद्वान बताए गए ब्राहमण = सिर्फ़ हिंदुओं में पाए जाते हैं श्रमण = सिर्फ़ जैनियों में पाए जाते हैं श्रम = कम्युनिस्ट विचारधारा में महत्त्वपूर्ण घटक है ज्ञान = इस पर मनुवाद,तनुवाद,धनुवाद न जाने किन-किन आवरणों के पीछे धकेल दिया गया है।
इस तडकते हुए तर्क से प्रवीण शाह किस नतीजे पर आएगा ये हमें उसकी चुप्पी से पता चलेगा या अपनी लाल और दूसरों की काली बताने वाले सलाम से।
जय जय भड़ास

3 टिप्पणियाँ:

प्रवीण ने कहा…

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प्रिय संजय,

मैं महा-महा-गधा ही सही, पहले ही कह चुका हूँ कि मुझे तुम जैसे महा-विद्वान से गधा कहलाने में कोई बुरा नहीं लगता... पर यह तो बता दो मेरे यार कि इतना लंबा चौड़ा जो छाप दिये हो यहाँ पर... लेकिन कहना क्या चाहते हो... क्या जैनों को कम्युनिस्ट बता रहे हो ?... यह भी बताओ कि तुम्हारी नजर में जैन क्या हैं ?



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मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

pahle tum batao ki tumhari najaron mein JAIN kya hain?
Tumhari najar mein main to anup mandal ka bhavik hoon is nateeje par pahunch gaye the to jab tumse savaal hota hai to chuppi maar jate ho lekin jaise hi jaino ki baat nikalti hai tum bachaav ki mudra mein aa jate ho ;)
ho na jain vaise hi jaise main anup mandal ka bhavik :)
jay jay bhadas

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

प्रवीण शाह जी इतनी जल्दी परास्त मान लिया खुद को?ये तो जरूर किसी नीति का हिस्सा है न तो इस बार कोई बेनामी गाली-गलोज हुई न ही अमित जैन विषय में कूदे।
आप भले ही इस इंतजार में रहते हों कि भड़ास के निष्पक्ष संचालन पर आप पक्षपात का आरोप लगा कर बैठ जाएं लेकिन हम कैसे इस विषय को छोड़ दें। अमित जैन द्वारा भी मेरे ऊपर ये सीधा आरोप लगाया कि मैं ही फ़र्ज़ी आई.डी.बना कर लिख रहा हूं तो आप चुप्पी साध गये क्या बात है सिर्फ़ जैनों की बात निकलने पर ही आवाज़ खुलती है या कोई और मामला है???
जय जय भड़ास

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