गड़बड़झाला, खूब घोटाला.
सोमवार, 6 जून 2011
गड़बड़झाला, खूब घोटाला...
लोकतंत्र का बज गया बाजा...
मुंह खोला तो खैर नहीं है...
अंधेर नगरी, चौपट राजा।
कौन नहीं है भ्रष्ट तंत्र में!
निकल रहा सब ओर दिवाला।
किस-किस की गर्दन पकड़ोगे...
उजली खादी, पीछे काला।
बाबाजी न करो सियासत...
जिसका काम, उसी को साजा।
अनशन से अब होगा न कुछ...
करो क्रांति, थामो भाला।
अमिताभ बुधौलिया
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