सभी के लिये यह रहे मेरे जवाब ( भाग-१ )

रविवार, 12 जून 2011

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@ ट)मैंने आपको आजतक कोई गाली नहीं दी है जबकि मैं देख रहा हूं कि आप इस बात का आग्रह रखे हैं कि मैं भी अनावश्यक गाली देता हूं। क्या जब कोई आपकी बहन बेटी के बारे में अपशब्द लिखे तो आपकी सोच की क्या अभिव्यक्ति रहती है?????????

मैं ऐसा कोई आग्रह नहीं रखे हूँ फिर भी यदि आपको ऐसा कहीं लगा तो मेरी ओर से हार्दिक खेद है व मैं क्षमाप्रार्थी भी हूँ... जब कोई मेरे किसी प्रिय या खुद मेरे ही खिलाफ अनर्गल लिखे, जैसा कि कुछ भड़ासी लिख भी रहे हैं और आपने उसे ब्लॉग पर बने रहने दिया है तो मुझे दुख होता है पर मैं ऐसे तत्वों को उनकी औकात से ज्यादा भाव देने के पक्ष में नहीं।

@ झ) आप भड़ास पर ई-मेल द्वारा लिखने के पक्षधर हैं या विरोध में? अमित जैन से जब कई बार आग्रह करा गया कि वो अपना माफ़ीनामा ई-मेल से प्रस्तुत करें तो आपने इस बात पर अपनी सहमति क्यों नहीं जताई जबकि आप जानते हैं कि अपने एकाउंट से भेजी हुई पोस्ट में कभी भी लेखक या संचालक कुछ भी संपादन/डिलीट कर सकता है जबकि ई-मेल से आयी पोस्ट में संचालक को पता तक नहीं चलता कि वह पोस्ट किसने भेजी है जब तक आई.पी.पता न ट्रेस करा जाए, लेखक उस पोस्ट में संपादन/डिलीट नहीं कर सकता।
आप नहीं चाहते कि आपका ई-मेल पता सार्वजनिक करा जाए या आपकी पहचान जाहिर हो तो बकौल अमित जैन आप भी मेरे द्वारा बनाए एक फ़र्जी आई.डी.ही हो सकते हैं क्या कहना चाहेंगे आप इस बारे में?????
 
जब सदस्य नहीं था तब मैंने इ-मेल के जरिये लिखा भी था, अब सदस्य होने के बाद मैं ब्लॉगर ड्राफ्ट के जरिये लिखने को ही बेहतर मानता हूँ। अमित जैन ने तुरंत खेद व्यक्त किया था और मेरी समझ से बात वहीं समाप्त हो जानी चाहिये थी, आखिर सभी सदस्यों ने देखा कि उन्होंने खेद व्यक्त किया,  ई-मेल से माफी लेने से क्या प्रयोजन सिद्ध  होगा ? अमित जैन यदि यह समझते हैं कि मैं भी एक फर्जी आई.डी. हूँ तो वह गलत हैं !  

@ ज)आपने मुनेन्द्र सोनी को अनूप मंडल का भाविक बना दिया क्या और उन्होंने आपको जैन इस विषय पर आपकी सोच की अभिव्यक्ति क्या है?????
 
भाविकों के साथ यह आम समस्या है कि यदि कोई भी उनकी धर्मविशेष से द्वेष रखती बातों का विरोध करता है तो वह उसे जैन कहने लगते हैं... खैर मित्र मुनेन्द्र ' भाविक ' द्वारा जैन कहलाने पर मुझे तो कोई समस्या नहीं है... :)
 
@ छ)अमित जैन की पत्नी के साथ उनका जो चित्र उन्होंने प्रकाशित करा था क्या आपने उसे देखा है जो आप अनूप मंडल के ये लिखने पर कि अमित गलबहियों में व्यस्त हैं आपको आपत्तिजनक लगा जबकि इस बात का संदर्भ संजय कटारनवरे की माता जी के संबंध में अमित जैन द्वारा करी गयी अनर्गल बात के संदर्भ में था????? यदि नहीं देखा है तो आप संचालक पर पक्षपात का आरोप कैसे लगा कर लिख रहे हैं क्या यही आपकी सोच है?????
 
जी नहीं मैंने चित्र नहीं देखा कभी भी और न ही देखना चाहता हूँ पर यह बताइये कि यदि कोई सदस्य अपने किसी अंतरंग क्षण के दौरान लिये चित्र को प्रकाशित कर देता है तो क्या भड़ास के दर्शन के अनुसार अनूप मंडल या कोई अन्य आपत्तिजनक शब्द प्रयोग कर सकता है व किसी को एतराज नहीं करना चाहिये ? मेरे विचार से सभी के लिये एक से मानक लागू होने चाहिये... उदाहरण के लिये  दीनबंधु जी की मेरे प्रति की गई टिप्पणी " आयशा वाली सारी गालियां इसे एक बार दोबारा... फनीका है ये ही जो भड़ास में मुखौटा लगा कर घुसा है।" क्या आपको जायज लगती है ? 
 
 
जवाब आगे जारी रहेगा...
 
 
 
आभार सभी का...





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1 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

@ट)क्या आपको नहीं लगता है कि अंतर्विरोधों के चलते ब्लाग की सदस्यता से बेदखल कर देना अलोकतान्त्रिक है?
@झ)आप जानते हैं कि ई-मेल से भेजी गयी पोस्ट को लेखक बाद में संपादित नहीं कर सकता न ही डिलीट कर सकता है,यदि जैसे ही मुख्य पन्ने से पोस्ट पीछे जाने पर उन्होंने कुछ भी कलाकारी(जैसा कि आपने भी खूब जीभर के करने की कोशिश करी है चाहे वो कमेंट से संबंधित हो या पोस्ट के गायब होने की बातें)करी तो क्या प्रमाण रहेगा इस विषय पर आपने नहीं सोचा या अमित जैन के प्रति मुलायम कोना होने के चलते आप ऐसा सोच ही नहीं रहे। जरा अमित से पूछ लेते एक बार कि उन्हें ई-मेल से माफ़ीनामा भेजने में क्या कष्ट था क्या आपने ई-मेल से पोस्ट्स नहीं भेजी हैं तो फिर ऐसा दुराग्रह किस वजह से था ये आपने समझना नहीं चाहा?आप प्रयोजन समझ गए होंगे।
@ज)और क्या आप स्वयं आत्मविश्लेषण करें तो ये नहीं पाते कि यदि कोई इस विषय पर चर्चा करे तो आपको कथित तौर पर भाविक लगने लगता है मुनेन्द्र भाविक द्वारा आपको दिया नया नाम प्रवीण जैन अच्छा लगा या सिर्फ़ धर्म की बात है नाम पर आपत्ति है?
@छ)भड़ास के दर्शन के अनुसार यदि अमित जैन अपनी पत्नी के साथ संभोग करते हुए चित्र को प्रकाशित करते तो उसे हटा दिया जाता लेकिन चूंकि उन्होंने अपनी पत्नी के गले में बांहें डाल कर तस्वीर प्रकाशित करी थी वो भी भड़ास पर नहीं बल्कि वो उनकी प्रोफ़ाइल तस्वीर थी जिस पर यदि अनूप मंडल ने लिखा कि गलबहियां तो ये बात आपको संजय कटारनवरे की माताजी का इंटरव्यू लेने के लिये कि संजय किस की पैदाइश हैं ये आपको उसके समकक्ष जान पड़ता है तो आप तुरंत लिख पड़ते हैंसही जगह सही समय सही चोट...? आपका तर्कशास्त्र किस प्रकार का है कि आप बिना तस्वीर देखे ही किसी के पक्ष या विपक्ष में खडे होने का निर्णय ले लेते हैं?दीनबन्धु ने सिर्फ़ उसी तरह अपने विचार व्यक्त करे हैं जिस तरह आप करते हैं अनूप मंडल की बातों को अदालत में न ले जा कर बल्कि समाज में एक विचार की तरह चलते रहने देना चाहिये, मेरी सहमति या असहमति अथवा जायज़-नाजायज़ ठहराने के प्रभाव का आंकलन आप किस प्रकार करेंगे?

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