दिलजलों को धमकी देने का इरादा बदल देना ही बेहतर होता है
सोमवार, 25 जुलाई 2011
मैंने देखा कि भाईसाहब ने डॉ.रेहान अन्सारी की हरकत पर भड़ास निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अब चूँकि डॉ.रेहान अन्सारी बड़े वाले हैं तो चोरी करने के साथ सीनाजोरी करने का जन्मसिद्ध अधिकार भी उन्हीं के पास है। पता चला कि हमारे भाईसाहब को इससे-उससे फोन करवा कर दबाव में लेने की कोशिश कर रहे हैं। जो दोस्त हैं वो अच्छी तरह जानते हैं कि डॉ.रूपेश श्रीवास्तव पर दबाव डाला जा सकता है तो सिर्फ़ प्यार से जिसमें वो जान तक देने को तैयार रहते हैं लेकिन यदि कोई ये कहे कि तुर्रम खाँ है तो भइया उससे दब जाएंगे और अपनी भड़ासी जीवन शैली को बदल देंगे तो असंभव है। सही को सही और गलत को गलत कहने में उन्हें कोई डर नहीं है ये तो हम सब जानते हैं। जो नहीं जानते हैं कि डॉ.रूपेश श्रीवास्तव कौन है उनके लिये है ये बात कि जान लें कि भाई अपने कॉलेज टाइम में आर.एस.एस. से लेकर प्रतिबंधित नक्सलवादी संगठनों तक से अपने विचारों को लेकर सीधा टकरा चुके हैं। ऐसे आदमी को यदि मार भी डाला जाए तो क्या वो खत्म हो सकता है? हरगिज़ नहीं बल्कि और विराट रूप में सामने आ जाएगा, वो व्यक्ति नहीं विचार हैं और विचार मरते नहीं हैं। डॉ.रेहान अन्सारी ने गलती करी और उसे स्वीकारने का बड़प्पन नहीं दिखाया बल्कि जो ओछापन उन्होंने दोस्तों के बीच करा है वो चर्चा का विषय बन गया है, उनसे ये उम्मीद नहीं थी। डॉ.रूपेश श्रीवास्तव की आज तक मैंने किसी से निजी दुश्मनी नहीं पायी जो भी है सिर्फ़ वैचारिक विरोध है। यहाँ तक कि जब लोगों को लग रहा था कि यशवंत सिंह और इनके बीच तलवारें खिंच चुकी हैं तभी एक सेमिनार में दोनो जब आमने सामने आए तो भाईसाहब ने यशवंत सिंह को गले से लगा कर परिवार का हालचाल पूछा और साथ में भोजन भी करा। जो मुफ़्त का तमाशा देखना चाहते थे वे निराश हो कर बैठ गये। वैचारिक विरोध के चलते जिस बन्दे से जोरदार झगड़ा हो गया था उसे बीमार होने पर अपने घर उठा लाए और पूरे महीने भर तीमारदारी करते रहे। जबकि कई बार लोगों ने कहा कि भाई कल यही आदमी आपकी पीठ में छुरा घोंप देगा लेकिन भाई अपनी बात पर अडिग हैं कि विरोध वैचारिक है दुश्मनी नहीं। डॉ.रेहान अन्सारी और उनके वकील एक बार विचार करें कि हरपल मृत्यु को उत्सव की तरह जीने वाला इन्सान कहाँ धमकाने से डरेगा। इसीलिये मैं तो बस इतना ही कहूंगी कि दिलजलों को धमकी नहीं देनी चाहिये।
जय जय भड़ास
1 टिप्पणियाँ:
अक्का आप भी बस्स्स...
इतने दिनों बाद आयीं भी तो इस चिरकुटही सी बात को लेकर कुछ और लिखा होता। ये लोग कभी तो साथ बैठेंगे तो जरूर विचार बदलेंगे। ये लोग यशवंत सिंह से थोड़े से अलग हैं वो ज्यादा ज़िद्दी और उपद्रवी है।
जय जय भड़ास
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