क्रान्तिधर्मी दर्शन के पत्रकार साजिद रशीद को सादर श्रद्धांजलि
मंगलवार, 12 जुलाई 2011
बाग़ी तेवरों और निष्पक्ष पत्रकारिता की पहचान भाई साजिद रशीद दैहिक तौर पर अब हमारे बीच नहीं रहे। चार दिन पहले हृदय की शल्यक्रिया के लिये मुंबई में प्रिन्स अली अस्पताल में खुद भाई कासिम इमाम के साथ हंसते मुसकराते गये लेकिन क्या पता था कि अब वे वापिस नहीं आएंगे। कल शाम जब विख्यात नाटककार श्री इक़बाल नियाज़ी जी ने फोन पर सूचना दी कि भाई साजिद रशीद नहीं रहे तो ऐसा लगा जैसे जिस्म को काठ मार गया हो क्योंकि अभी घंटों पहले ही तो उनके बेटे शादाब से बात करी थी कि अब्बा की तबियत कैसी है जल्द ठीक हो जाएंगे उसने बताया कि आपा, बी.पी. सुबह से कुछ गिरा हुआ है बस दुआ करिये कि सब ठीक हो जाए। हम सब यही सोच रहे थे कि भाई साजिद जैसा मज़बूत इन्सान जिस पर उनके विरोधी कितने हमले कर चुके हैं आसानी से झेल गए तो ये आपरेशन भला क्या है वे जल्द ही अपने तेवरों के साथ वापिस आ जाएंगे। लेकिन ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था। हमारा दबंग भाई जिसकी निष्पक्ष पत्रकारिता का लोहा सब मानते थे हमारे बीच से खामोशी से हम सबको छोड़ गया। हम भाई साजिद रशीद के विचारों के सदा जीवित बने रहने की कामना करते हैं। ईश्वर इस दुःख भरी घड़ी में परिवार को बल दे कि वे इस खालीपन को सह सकें। न जाने क्या क्या लिखना चाह रही हूँ लेकिन शब्द ही नहीं जुट रहे हैं।
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
अफ़सोस हुआ भाई के जाने का...
जय जय भड़ास
भाई के कट्टरपन्थी विरोधियों की अब तक उनसे हवा तंग है ये तो तमाम प्रतिक्रियाओं को देखने से साफ़ पता चल रहा है। विरोधियों को साजिद रशीद रातों में सपनों में अपने दबंग विचारों से डराते रहेंगे।
साजिद रशीद अमर हैं उन्हें भड़ास परिवार का सलाम
जय जय भड़ास
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