मृत्युदंड कितना प्रासंगिक

बुधवार, 7 सितंबर 2011

मृत्युदंड कितना प्रासंगिक–——
पंकज भूषण पाठक ,” प्रियम ”
एक बार फिर आतंकियो ने भारत के दिल यानि दिल्ली में जोरदार धमाका कर अपने नापाक मनसूबे को दिखा दिया है।उनके लिए इंसानी जिंदगी के कोई मायने नही कोई मूल्य नही है।इस ह्रदयविदारक घटना ने एकबार फिर आम लोगो को जहाँ भयभीत कर दिया है वहीँ सियासी दलों में खून से लथपथ कराहते रोते लोगो की संवेदनाये समेटने की होड़ लगी है।सरकार भी देशभर में एलर्ट घोषित कर अपना कोरम पूरा कर दिया है लेकिन बार-बार और लगातार हो रही इन आतंकी घटनाओ को रोकने का अबतक कोई मुकम्मल प्रयास क्यू नही हुआ है इसके बारे में सोचने की जरुरत शायद कोई नही समझ रहा है. बोम्बे ब्लास्ट.अक्षरधाम मंदिर ,संसद ,दिल्ली ,मुंबई ताज होटल और फिर एकबार दिल्ली हाईकोर्ट में सीरियल ब्लास्ट. आखिर ये आतंकी हमले कैसे हो जा रहे हैं? कहन है हमारी ख़ुफ़िया तंत्र ?कैसे हो जाती है चुक ?ये तमाम सवाल हर बार उठाते है और फिर हम एक बहस एक चर्चा के तौर पर इसे भूल जाते हैं.आतंकी अफजल गुरु और कसाब को फांसी दिए जाने के सवाल पर पिछले कई महीनो से बहस का दौर चल रहा है.आखिर क्यू इन्हें हम सरकारी मेहमान के तौर पर इनकी खातिरदारी में लगे है/ये ठीक है की हमारे संविधान में लोगो को जीने का हक़ दिया गया है लेकिन ऐसे लोगो के साथ इतनी नरमी क्यू जो की इंसानी जीवन का मूल्य ही नही समझते .जिनके लिए मौत महज एक धमाका है और दहशतगर्दी इनका खेल भर है.इन्हें न तो किसी संविधान में विश्वास है और न ही किसी कानून को मानते हैं.ये किसी धर्म के भी नुमैन्दे नही है मौत का खेल ही इनका सबसे बड़ा धर्म है.हमारी लचक कानून व्यवस्था ही इन्हें इतने जघन्य अपराध करने की छूट देती है.मृत्युदंड या फांसी की सजा इसलिए बनायीं गयी थी की लोगो में इसके प्रति भय हो और कोई भी अपराध करने की हिम्मत न कर सके .लेकिन जब से इन न्रिस्हंस हत्यारों को बचाने की कोशिश शुरू हुई है आतंकियो का हौसल बाधा है.ये सोचते है की ज्यादा से ज्यादा उम्र कैद की सजा मिलेगी और इस बीच उनके साथी किसी बड़े नेता का अपहरण कर लेंगे ,कोई बड़ा विमान हाइजैक कर लेंगे या फिर ऐसे धमाको की धमकी देकर उन्हें छुड़ा लेंगे. जो सैकड़ो जाने चुटकिओं में ले लेते हैं निःसंदेह उन्हें भी इस दुनिया में रहने का कोई अधिकार नही है.आखिर उन सैकड़ो हजारो निर्दोष मासूमो का क्या कसूर जो इन आतंकी हमलो के शिकार हो जाते हैं.यही न की उनके देश में दहशात्गार्दो को पुरी मेह्मंबजी के साथ जेल में रखा जाता है.पुरानो में भी अपराधियो के साथ साम,दाम और दंड के भेद का विधान है.और यही कारण है की राजतन्त्र में कोई इस तरह के जघन्य अपराध करने का दुस्साहस नही करता था क्युकि उसे मालूम था की इसकी सजा सिर्फ और सिर्फ मौत है. हम ये नही कहते की अपराधियो को सुधारने का मौका नही मिलन नही चाहिए लेकिन इसके लिए हजारो मासूम लोगो की जान खतरे में डालने की कैसी समझदारी है. जब आतंकियो को कोई सजा नही मिलती तो हमारे देश के भीतर भी छोटे अपराधियो का मनोबल बढ़ जाता है और अपराध करने में कोई दर महसूस नही करते.इतिहास गवाह है की जब-जब हमने दुश्मनों के साथ दया का भाव दिखाया है अपने पीठ पर घाव ही खाया है.जेल में बंद आतंकियो को फांसी की सजा हो जाय तो निश्चित तौर पर दूसरे आतंकी एकबार जरुर डरेंगे.पुराणों में स्वर्ग और नरक की परिकल्पना भी इसी मकसद से क्ग्यी थी और आज भी लोग नरक में जाने के भय से पाप करने से पहले एकबार जरुर भय खाते हैं.पुरानी कहावत है की भय बिनु प्रीत न होई गुसाई…….पंकज भूषण पाठक “प्रियम”

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