तेजी से पनप रहे सांस्‍कृतिक साम्राज्‍यवाद व उपनिवेशवाद से सचेत रहने की है जरूरत-डॉ.जॉन एडापल्‍ली

गुरुवार, 1 सितंबर 2011


हिंदी विवि के संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र में मीडिया, धर्म और आतंकवाद पर हुआ विशेष व्‍याख्‍यान

वर्धा, 01 सितम्‍बर, 2011; अमेरिका के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों में मीडिया शिक्षण से संबद्ध डॉ.जॉन एडापल्‍ली ने महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र द्वारा मीडिया संवाद कार्यक्रम के तहत मीडिया, धर्म और आतंकवाद विषय पर आयोजित विशेष व्‍याख्‍यान में कहा कि आज विश्‍व में मीडियाशाही का प्रभाव है। इसके माध्‍यम से अमीर राष्‍ट्र, पिछड़े देशों में सांस्‍कृतिक साम्राज्‍यवाद व उपनिवेशवाद को तेजी से फैला रहे हैं, इसके प्रति हमें सचेत रहने की आवश्‍यकता है।

इस अवसर पर सुप्रसिद्ध पत्रकार व विवि के प्रो. रामशरण जोशी, संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल के. राय अंकित व दर्शना के डॉ.जार्ज कुलंगरा मंचस्‍थ थे।  

डॉ. एडापल्‍ली ने कहा कि पहले धर्म मनुष्‍य को बदलता था आज मनुष्‍य धर्म को बदल रहा है और इसमें मीडिया महत्‍वूपर्ण भूमिका निभा रहा है। धर्म को कट्टरवादी नहीं होना चाहिए, का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि इसे आतंकवाद से दूर रखा जाना चा‍हिए। धर्म की असली भूमिका समाज में सत्‍य, समानता, भ्रातृत्‍व और न्‍याय स्‍थापित करना है न कि कट्टरवाद और अंधविश्‍वास को फैलाना। उन्‍होंने ऐसे तत्‍वों की आलोचना की जो कि आतंकवाद को फैलाने के लिए धर्म और मीडिया का इस्‍तेमाल कर रहे हैं।

पिछले पांच हजार साल की संचार यात्रा और धर्म व आतंक के साथ मीडिया के सारगर्भित विश्‍लेषण में डॉ. एडापल्‍ली ने इस बात को स्‍वीकार किया कि मीडिया, धर्म और आतंकवाद के बीच यद्यपि कोई प्रत्‍यक्ष संबंध नहीं है लेकिन विगत कुछ वर्षों में इन तीनों के बीच परोक्ष रूप से संबंध स्‍थापित हुए हैं क्‍योंकि आतंकवादी जहां आत्‍मघाती मानव बमों को तैयार करने के लिए मज़हब का इस्‍तेमाल करते हैं वहीं अपनी धार्मिक कट्टरता की सत्‍ता स्‍थापित करने के लिए सूचना टेक्‍नोलॉजी का भी भरपूर इस्‍तेमाल करते हैं। ऐसी स्थितियों में बौद्धिक तबका, मीडियाकर्मी और धार्मिक लोगों को इन प्रवृतियों से सावधान रहने की आवश्‍यकता है। आज जरूरत इस बात की है कि मीडिया धर्म का इस्‍तेमाल बाजार की वस्‍तु के रूप में ना करें बल्कि इसे मानवता की सेवा के माध्‍यम के रूप में देखें। उन्‍होंने इस बात पर भी बल दिया कि भारत जैसे समाजों के लोगों को चाहिए कि वे धर्म और मीडिया के प्रति विवेचनात्‍मक दृष्टिकोण अपनाएं न कि भावुकतापूर्ण रवैया।

डॉ. एडापल्‍ली ने यह स्‍वीकार किया कि मीडिया ने समाज को नई गति दी है। धर्म को पुरोहितों की एकाधिकारवाद से मुक्‍त कराया है और इसे जन-जन तक पहुंचाया है लेकिन उन्‍होंने ये भी माना कि धर्म और बाजार की जो नकारात्‍मक शक्तियां हैं, वे धर्म और विशेष रूप से इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया अपने संकीर्ण स्‍वार्थों के लिए भी प्रयोग करते हैं, इससे आज विश्‍व में कई प्रकार की समस्‍याएं पैदा हो गई हैं। आतंकवादियों के लिए इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया सबसे अधिक उपयोगी हथियार सिद्ध हुआ है। यदि विश्‍व में शांति स्‍थापित करनी है, सांस्‍कृतिक उपनिवेशवाद को रोकना है, आतंकवाद का सामना करना है तो हमें धर्म और मीडिया को आतंकवाद से दूर रखना होगा।

संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल के.राय अंकित ने स्‍वागत वक्‍तव्‍य में कहा कि धर्म समाज को नियंत्रित करता था आज समाज धर्म को नियंत्रित करने का काम कर रहा है। आतंकवाद मीडिया को वर्तमान में गाहे-बेगाहे नियंत्रित करने की कोशिश करता है लेकिन मीडिया फिर भी अपने कामों को करने में सफल हो रहा है। प्रो.रामशरण जोशी ने अतिथि मीडिया पंडित डॉ. एडापल्‍ली के प्रति आभार व्‍यक्‍त करते हुए इस बात पर जोर दिया कि मीडिया और धर्म के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्‍यकता और आतंकवाद के प्रति सही समझदारी विकसित होनी चाहिए जिससे कि संचार के विभिन्‍न माध्‍यमों का गलत इस्‍तेमाल न हो सके। इस अवसर पर संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के अध्‍यापक, कर्मी, शोधार्थी व विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

-अमित कुमार विश्‍वास 


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