लो जी एक गाव कि भी सुन ही लो

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

एक बै जाट और तेली नै आहमी-साहमी (आमने-सामने) दुकान खोल ली - जाट नै गुड़ की अर तेली नै तेल की ।
एक दिन दोफाहरे ताहीं उनकी किस्सै की बिक्री ना हुई, तै दोनूंआं नै यो फैसला करया अक बारी-बारी एक दूसरे की दुकान पै जा-कै एक दूसरे की बोहणी करवा देवैंगे ।
तै पहल्यां तेली गया जाट की दुकान पै, अर बोल्या - "भाई, एक बोतल गुड़ दिये" । जाट बोल्या - "अरै बावळी-बूच, गुड़ बोतल के हिसाब तैं नहीं, किलो के हिसाब तैं मिल्या करै - जा फिर दुबारा आ ।"
तो तेली फिर आया और बोल्या - "भाई, एक किलो गुड़ दिये बोतल में"
जाट फिर बोल्या - "ना भाई, तेरै तै कोनी समझ आई, तू न्यूं कर अक तू बैठ मेरी दुकान पै - अर मैं गुड़ लेण आऊंगा" ।
तेली जाट की दुकान पै बैठ-ग्या अर जाट आया गाहक बन कै ।
जाट बोल्या - भाई, एक किलो गुड़ दिये ।
तेली सुनते ही बोल्या - "बोतल ल्याया सै" ?

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