पिछवाड़े किसी ने पेट्रोल डाल दिया क्या?
गुरुवार, 24 नवंबर 2011
बस ये ही तुम १० -१२ चूतिये ,छक्के मिल कर गाते रहो ,और कोई अगर इस से अलग बोले तो उस को गरियाओ ,बस यही भड़ास रह गई है ,अब इस भड़ास को अपने पीछे घुसा कर यहाँ ब्लॉग पर कुत्तों की तरह भोकते रहो ,भागते तुम रहे हो ,जहा भड़ास ब्लॉग पर 1700 से ज्यादा मेम्बर है ,और यहाँ बस तेरे जैसे ९० चूतिया और छक्के, अब इस भड़ास को अपने पिछवाड़े मे डाल लो.
हम १०-१२ चूतिये और छक्के मिलकर आपकी ऐसी-तैसी करने की जुर्रत रखते हैं ये तो आपने अपने कमेन्ट से जाहिर कर दिया. ठीक है आपके तथाकथित सम्माननीय ब्लॉग पर १७०० मेम्बर हैं और आगे १७००० हो जाये तो भी हैरत नहीं. लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आती की आप जैसों की हमारे जैसे ९० चूतियों और छक्को से इतनी फटती क्यों हैं? हमने तो कभी उंगुली या डंडा भी नहीं किया. खुद ही अपनी फाड़े जा रहे हैं और दर्द होता है तो गुरूजी रुपेश श्रीवास्तव का नाम लेकर चिल्लाने लगते हैं. अब गुरूजी ठहरे चिकित्सक प्राणी लेकिन आखिर वे इलाज करें तो किसका? किसी फर्जी आई डी वाले का? हिम्मत है तो सामने आकर खुलकर अपनी फटी दिखाओ तो शायद आपकी शल्य चिकित्सा हो सके. सभी भड़ासियों को गरियाने से कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि इस असर से हम बे असर हैं लेकिन जब कोई कुछ देता है तो उसे ब्याज सहित हम वापस जरुर करते हैं चाहे वह गलियां ही क्यों न हो.
5 टिप्पणियाँ:
मनोज भाई कोई प्रसिद्धि का भूखा है जो बेचारा सोचता है कि भड़ासियों से उलझ कर थोड़ा पहचान कमा लेगा लेकिन जब मैंने "हस्तपाद भंजन संस्कार" के संबंध में बताया कि भड़ासी इस संस्कार को इन जैसों के लिये ही करते हैं तो सामने आने में भी हवा तंग है। यही कारण है कि यशवंत सिंह का गुणगान करके अपना काम चला रहा है। कीड़ा है कोई जाने दीजिये बेचारे को रेंग लेने दीजिये हम सब तो मजे ले ही रहे हैं इसकी ही फटी पड़ी है
जय जय भड़ास
हा हा हा एक दूसरे को पुचकारते रहो ,और एक दूसरे की सहलाते रहो ,डंडा हो गाया है तुम्हे और उस का असर भी दिख रहा है ,किस किस को असर हुआ है ये भी पता चल रहा है ,अब फडफडाते रहो ...:)
मुखौटाधारी कीड़े तुम कितना बिलबिला रहे हो ये हम सब भड़ासी देख रहे हैं कि सामने आकर कमेंट करने का साहस ही नहीं जुटा पा रहे वरना जानते हो कि तुम्हारा क्या करा जाएगा। मनोज भाई आपने इसकी कस कर ले ली तो बेचारा घूंघट में ही फड़फड़ा गया/गयी
जय जय भड़ास
हा हा हा एक कीड़ा दुसरे को पुचकार रह है , पुचकारते रहो , ...:)
ये जयचंद वंसज यशवंत है,
लेखनी में शिफर दल्लों का दलाल फिर से कूँ कूँ करने यहाँ क्यूँ पहुंचा ???
वैसे १७०० नहीं इस भडवे के लिए १७००० भी कम होंगे, शराब में ये भड़ास के जिन १७०० लोगों कि आत्मा बेच चुका उनमें से अधिकतर इस चूतिये के पास से भाग चुके अब अपने दल्लों की टीम के सहारे भड़ास ब्लॉग का संडास और भड़ास के मीडिया का दलाली यहाँ कैसे करने आ गया.
ताज्जुब है ?
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