प्रकाशक, संपादक, लेखक अपने बेखबर पाठकों को क्या बताना चाहते हैं

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

एक बार ऐसी ही बंदूक लिये मैंने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का एक चित्र देखा था और तलवारें लिये तो सोनिया गांधी से लेकर शरद पवार सभी के चित्र देखे हैं। हाथों में हथियार लेकर ये लोग क्या संदेश देते हैं जनता को शायद यही जो इस चित्र में दिख रहा है?मेरे स्रोत से मैं ऐसी ही बचाव(??आक्रमण) की स्थिति में खड़े तमाम मुस्लिम युवकों की तस्वीरें आपको प्रेषित कर सकता हूँ लेकिन उनकी असलियत मैं जानता हूँ कि वह मात्र फ़िल्म "प्रश्न" का दृश्य है जिसमें कलाकार उस वेष में हथियारबंद खड़े हैं जिन्हें और उन तस्वीरों को हिन्दुओं के सामने रख कर उनके बचाव के लिये इस मुद्रा में आने का मार्ग दिया जा सकता है। पत्रिका के पाठकों को इस चित्र को दिखाने की बजाय यदि "स्रोत" ने पुलिस, राजनैतिक पार्टियों, संबंधित सुरक्षा एजेन्सीज़ को खबर दी होती तो परिणाम कुछ अलग हो सकता है। फिलहाल तो ये संदेश जा रहा है कि पाठकों(खासतौर से मुस्लिम पाठक) ये जान लीजिये कि देश में आर.एस.एस. का जूता चलता है आप इनसे डर कर रहिये या फिर इनसे बचाव के लिये आप भी हथियार उठा लीजिये। स्पष्ट करिये कि प्रकाशक, संपादक, लेखक अपने बेखबर पाठकों को क्या बताना चाहते हैं।

बात सिर्फ़ इन्टेलीजेन्स ब्यूरो की ही नींद की क्यों करी जाए क्या न्यायपालिका "सुओ मोटो" एक्शन नहीं ले सकती जरा आप इस आलेख में ये भी जोड़ दीजिये कि न्यायपालिका भी आर.एस.एस. के दबाव में है।
एक बात और ध्यान दीजिये कि इस पत्रिका के बानी वकील श्री रणधीर सिंह सुमन जी हैं
जय जय भड़ास

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