अण्णा हजारे, काश जब केजरीवाल को जूता पड़ा था तब भी पूछा होता कि कितने पड़े...
शुक्रवार, 25 नवंबर 2011
अण्णा हजारे को बिके हुए मीडिया ने अब तक गाँधीवादी सामाजिक नेता ही कह रखा है जबकि दुनिया देख रही है कि बुढ़ऊ में गाँधी जैसी बातें तो हैं ही नहीं। मोहनदास करमचंद गाँधी ने जैसा जीवन जिया उसमें और इसमें बिलकुल समानता नहीं है। गाँधी को बुढ़ापे में करे गए उसके बृह्मचर्य के प्रयोगों के चलते तमामोतमाम लोगों ने कहा है कि वो एक महाठरकी आदमी था लेकिन हजारे तो ठरकी नहीं जान पड़ता यह तो रालेगण सिद्धि गाँव की बुड्ढी औरतें बता सकती हैं कि इसने उन्हें कभी छेड़ा था या नहीं। जब ये शराबियों को पेड़ से बाँध कर पीट रहा था तो औरतों के साथ इसका व्यवहार कितना शरीफ़ाना था ये तो वे बेचारियाँ ही बता सकती हैं। हजारे को लगता है कि टोपी लगा लेने से ये गाँधी बन जाएगा लेकिन इसकी इस तरह की छवि बनाने के लिये मीडिया मैनेजरों ने कितना पैसा खर्च करा ये कोई नहीं जानता है।
अभी हाल में जब एक असरदार सरदार ने कृषिमंत्री शरद पवार के कान के नीचे एक जोरदार झापड़ रसीद करा तो इस हजारे खूसट ने तुरंत कहा कि कितने थप्पड़ पड़े... बस एक । इस घड़ी घड़ी बयान बदलने वाले मक्कार खूसट से किसी पत्रकार ने ये नहीं पूछा कि बुढ़ऊ जब तुम्हारे मदारी केजरीवाल को किसी ने जूता जमा दिया था तब तुमने क्यों नहीं पूछा कि कितने पड़े... बस एक ????
जय जय भड़ास
6 टिप्पणियाँ:
अपने बुरे के चश्मे को उतार फैको ,तब तुम्हे दिखाई देगा ,यहाँ भड़ास पर तुम्हे दुनिया का हर बंदा गलत नजर आता है सिर्फ तुम्हे या तुम्हारी विचारधारा को छोड कर ...........अपनी आदत सुधारों या यु ही इस भड़ास का नाम पागलखाना रख दो रप्पू
अबे भड़ासी होने का मुखौटा लगाए कीड़े ! मुझे कौन बुरा या अच्छा दिखता है इससे तुझे बड़ी परेशानी हो रही है क्या बात है?भड़ास पर क्या होना चाहिये ये तुम जैसे ढक्कन हमें बताएंगे क्या?एक सलाह तुम जैसे चिरकुट घूंघट वाले के लिये मेरे पास भी है कि तुम पागलखाना नाम का एक कम्युनिटी ब्लॉग बना लो और अपनी मुखौटा डाल कर रेंगने की आदत सुधार लो। भड़ास का नाम क्या होगा ये निर्णय अब तुम जैसे चिरकुटों से सलाह लेकर नहीं बल्कि मैं और भाई रजनीश झा जी निर्धारित करते हैं। तुम ऐसे ही रेंगते रहो।
जय जय भड़ास
सबसे बड़े ढक्कन रप्पू ,तू सिर्फ नाम का ही नहीं काम का भी ढक्कन है ,बस किसी भी बड़ी हस्ती का नाम ले कर २ ४ गाली लिख कर ,अपने को बड़ा तीस मारखा समझ रहे हो , तुम उन लोगो मे से हो की जो किसी बड़े आदमी का गु भी उठा कर खा लो और बाद मे जोर जोर से चिल्ल चिल्ला कर सब को बताओ की इसमें से बदबू आ रही है , ये कैसा गु किया है इसने ,कम से कम महक तो आणि चाहिये ,
इस से तुम्हारी और तुम्हारे चेले चपतो की कुछ पहचान बन जायेगी ,जब तुम लोगो को भडास blog से पिछवाड़े पर लात मार कर भगाया गया था ,जब भी तुम इसी तरह से बोले थे चिरकुट रूपेश उर्फ रप्पू ...:)
हिन्दी को जिस खास गलत अन्दाज़ में लिखने वाले यशवंत सिंह की शान में कसीदे पढ़ने वाले तुम चारण जो कि भड़ास में मुखौटा लगा कर घुस आए थे तुम्हें आज पता चल रहा है कि कि भड़ासी क्या हैं? भड़ास का नाम उस धूर्त को "भड़ास BLOG" क्यों करना पड़ा ये तुम जैसे लोग नहीं जानना भी नहीं चाहते। मैं बताती हूँ कि जब उसने भड़ास की लोकप्रियता और भड़ासियों के कार्य को बेच कर भड़ास फॉर मीडिया नाम की दलाली की दुकान खोली तब जिन लोगों ने इसका विरोध करा आज तुम उन्हीं के मंच पर रह कर उन्हें बुरा कह रहे हो। भड़ास फॉर मीडिया का काम वैसा ही है जैसे ऑयल फॉर मसाज ; भड़ास की इस तरह कर दी गयी हत्या के बाद उसकी आत्मा को डॉ.रूपेश जी ने लाकर हम सबके साथ नये प्रयत्न से दोबारा भड़ास को जन्म दिया जिसमें भाई रजनीश झा हमेशा शामिल रहे। तुम जैसे लोग सिर्फ़ जिस जगह तुम्हें लाभ की संभावना दिखती है उधर चापलूसी करने पहुंच जाते हैं। तुमसे किसने कहा कि तुम भड़ास के सदस्य बने रहो यदि तुम्हें ये एक बुरा मंच लगता है तो हट जाओ। जब अमित जैन और अनूप मंडल का विवाद है तो भी दोनो लोग एक दूसरे को गलत ठहराते मौजूद हैं ये सिर्फ़ इसलिये कि इस उठापटक को सम्हाल पाने की ताकत इसी मंच और इनके संचालकों में है वरना दूसरा मंच होता तो कबका टूट गया होता। तुम डॉ.रूपेश जी का विरोध करके भी यहाँ मौजूद हो ये सिद्ध करता है कि भड़ास छोड़ कर जाने के बाद तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है।
जय जय भड़ास
ये चुतिया यशवंत है, गुमनामी में एक बार फिर भडासी का सहारा चाहता है, इग्नोर करो इसे.
रुप्पू महाचूतिया मुर्दाबाद
अन्ना हजारे एण्ड रजनीश झा जिंदाबाद
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