"क्या अन्ना गांधीवादी हैं?"
सोमवार, 28 नवंबर 2011
अभी तक तो बाबा रामदेव ही कहते थे, बीड़ी, सिगरेट, शराब, तम्बाकू बन्द करो. अब अन्ना जी भी इसी श्रेणी में आ गए, और फंस गए. मीडिया और नेता हाथ धोकर उनके पीछे पड़ गए.
जो भी शराब, सिगरेट, वेश्यावृत्ति, गोमाता की हत्या, गंगा का प्रदूषण, प्राकृतिक भू-सम्पदा का दोहन, भ्रष्टाचार, कालाधन का मुद्दा उठाएगा, और इन सामाजिक बुराइयों से लड़ने की बात करेगा, वह गाँधीवादी नहीं रह जाएगा. सत्ता रुपी शराब के नशे में डूबे लोग गांधीवाद का मतलब अपने अनुसार से निकालते हैं. ये सब के सब विदेशी हाथों में बिके हुए है. जैसे ही इनके विदेशी आकाओं का हित प्रभावित होता है, ये चीखने चिल्लाने, हाय तौबा मचाने लगते हैं. आखिर इन्होने ही तो शराबखाने, लौटरी और ना जाने क्या क्या क्या धंधे खोल रखे हैं. मीडिया भी इनके साथ हाँ में हाँ मिलाकर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका में आकर अपना निर्णय सुनाने लगती है. आखिर मीडिया की कमाई भी तो इन्हीं विदेशी कंपनियों के घटिया सामान के झूठे विज्ञापन और खोखली सरकारी योजनाओं के झूठे विज्ञापन से आती है.
मैं इन सब शराब के प्रेमियों से एक ही सवाल पूछता हूँ, मुझे शराब पीने के एक-दो फायदे ही बता दें, मैं जानकर धन्य हो जाऊँगा.
अब रहा "क्या अन्ना गांधीवादी हैं?" जैसे सवाल उठाने वाली मीडिया का. क्या कभी मीडिया ने निहत्थे लोगों पर गोली, लाठी, आंसू गैस चलवाने वाली सरकारों से पूछा, "क्या तुम गांधीवादी हो?" क्या मीडिया ने शराब के लाइसेंस बाँटनेवाली सरकारों से पूछा, "क्या तुम गांधीवादी हो?" क्या मीडिया ने विदेशों में पैसे रखनेवालों का नाम जाननेवाली, पर बहाने बना बना कर उसे नहीं बतानेवाली सरकारों से पूछा, "क्या तुम गांधीवादी हो?" ऐसे सैकड़ों नहीं हजारों प्रश्न उठाये जा सकते हैं, और उन सब का एक ही उत्तर मिलेगा "नहीं". तो फिर अन्ना के पीछे हाथ धोकर पड़ने का कारण क्या है?
अभी तो अन्ना ने केवल शराबियों का यह हाल करने को कहा है. अगर आन्दोलन और अनुनय विनय पर सत्ता रुपी शराब का सेवन कर इसके नशे में धुत्त होना इन राजनीतिज्ञों ने बन्द नहीं किया तो इनका भी हाल जनता वैसा ही न करे, जैसा अन्ना ने बताया है.
जब भी भ्रष्ट और झूठे राजनीतिज्ञ वोट मांगने आयें, जनता उनको कान पकड़ कर उठक बैठक करने को कहे, मेढक कूद करने को कहे, और भी ना मानें तो मंदिर/मस्जिद के खम्भे में बांधकर खाना पीना बन्द कर दे. और अंत में, फिर भी ना मानें तो गधे पर बिठाकर, सर मुंडवा कर गाँव गाँव, शहर शहर घुमाए. भारत में ऐसी ही सजा का प्रावधान हैं अंग्रेजों के मानस पुत्रों.परन्तु जैसा कि हर गांधीवादी कहता है, मैं भी कहूँगा, मार पीट और हिंसा मत करो भाइयों, चाहे वे हमारा कुछ भी कर डालें.
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धन्यवाद एवं हार्दिक शुभेच्छा,
राकेश चन्द्र
1 टिप्पणियाँ:
अब तो मुझे संदेह है .
जय जय भड़ास
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