जजे’स एकाउंटबिलिटी बिल और साम्प्रदायिक हिंसा वाले विधेयक से अण्णा हजारे को कुछ लेना देना नहीं है

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

भड़ासियों को न तो ठंड लग रही है मुंबई में और न ही उनमें से किसी को बुखार है और हाज़मा खराब होने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता है। हम सारे लोग अधिकतर तो डॉ.साहब की महाभड़ासी प्रयोगात्मक फ़िल्म "प्रश्न" देखने के बाद कुछ समय तक सन्न थे और अब रहा नहीं गया तो अण्णा हजारे के बंदरपन और सुअरविन्द केजरीवाल के मदारीपन पर लिखने का मन करा है। जनता चूतिया है ये तो सब जानते हैं तभी तो इन कमबख्त नौटंकीबाजों के चक्कर में आ जाती है। जो साला मरने से नहीं डरता और भूखे मरने का नाटक कर अनशन करके सरकार से लोकपाल बिल लाने की बात करता है उसकी सरदी बुखार से इतनी कस कर फट जाती है कि एक दिन में अनशन फ़ुस्स्स हो गया । ये हरामखोर लोग जनता का ध्यान लोकपाल-लोकपाल की आड़ में दूसरे ऐसे बिलों से हटाना चाहते हैं जिनकी अंग्रेजियत कांग्रेस की नस नस में समाई है। एक है साम्प्रदायिक हिंसा से संबंधित विधेयक जिससे अण्णा हजारे को कोई लेना देना नहीं है और दूसरा है जजों के उत्तरदायित्त्व से संबंधित विधेयक जिस पर बोलने की दम किसी में है नहीं। ये सारा का सारा नाटक कांग्रेस के पाले बंदर हजारे और तनखैय्या मदारी सुअरविन्द केजरीवाल के द्वारा चलाया जा रहा है ताकि लोकपाल की नौटंकी की आड़ में ये दोनो कानून कब लागू हो जाएं किसी को खबर भी न हो और रही बात मीडिया की तो वो तो सिर्फ़ वही बोलता है जो उसके आका फरमाते हैं। जनता एक बार फिर से मूर्ख बन रही है।
जय जय भड़ास

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