चुनाव आयोग से सूचना अधिकार कानून के जरिए जानकारी मांगी थी कि सोनिया गांधी को कब मतदाता पहचान पत्र इशू किया गया था

रविवार, 29 जनवरी 2012

आनंद मिश्र॥ मुंबई 
सोनिया गांधी का मामला सिर्फ कांग्रेस पार्टी के लिए ही नहीं , देश की चुनावी मशीनरी को हैंडल करने वाले इलेक्शन कमिशन के लिए भी बहुत मायने रखता है। तभी तो जब सोनिया गांधी को इशू किए गए मतदाता पहचान पत्र का डिटेल आरटीआई के जरिए मांगा गया तो चुनाव आयोग में हड़कंप मच गया और फटाफट आवेदन की फाइल दूसरे डिपार्टमेंट को ट्रांसफर की जाने लगी। यहां तक कि मामला 9 विभाग को ट्रांसफर किया गया , मगर नतीजा सिफर ही है अब तक।

दरअसल , जुहू के आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय ने 12 दिसंबर 2011 को चुनाव आयोग से सूचना अधिकार कानून के जरिए जानकारी मांगी थी कि सोनिया गांधी को कब मतदाता पहचान पत्र इशू किया गया था और श्रीमती गांधी ने यह मतदाता पत्र को पाने के लिए कौन से डॉक्युमेंट सबमिट किए थे। इसके अलावा सबमिट किए गए डॉक्युमेंट्स की भी कॉपी मांगी गई थी , और यह भी पूछा गया था कि अगर आपके ( चुनाव आयोग के ) पास यह जानकारी नहीं है तो इसे संबंधित विभाग में ट्रांसफर कर दिया जाए। चूंकि मामला सोनिया गांधी जैसी बड़ी हस्ती से जुड़ा था , सो चुनाव आयोग ने इस आवेदन को 19 दिसंबर को चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर ( रजिस्ट्रेशन ) को ट्रांसफर कर दिया और कहा कि वह चुनाव आयोग को बताए बिना पूरी जानकारी आवेदक को दे सकता है।

आरटीआई के इस मामले का मजाक तो तब बना जब 22 दिसंबर को चीफ इलेक्टोरल ऑफिस ने चुनाव आयोग से मिले लेटर को अपने 9 दफ्तरों में भेज दिया और कहा कि 7 दिनों में आवेदक को इन्फर्मेशन दिया जाए। मगर 7 दिन की मुद्दत के बदले 1 महीने और 7 दिन बीत गए हैं , मगर अब तक कोई जवाब नहीं आया है। आवेदक मनोरंजन रॉय का कहना है कि चुनाव आयोग इस मामले को दबाना चाहता है , क्योंकि जो जानकारी सीधे चुनाव आयोग से मिलनी चाहिए , उसे 9 विभागों में ट्रांसफर करने का क्या मतलब ? क्या मुझे 9 जगह एक ही जवाब पाने के लिए अपील करनी होगी , जो कि असंवैधानिक है। उनकी मांग है कि इस मामले में लीपापोती करने वाले अधिकारियों पर 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना वसूला जाना चाहिए। 

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