जम्मू-कश्मीर के विषय में कांग्रेस की नीति पहले से ही अस्पष्ट थी। जम्मू-कश्मीर की गत 63 वर्षों की समस्या का कारण केवल कांग्रेस नेतृत्व की सरकारों द्वारा लिये गये निर्णय हैं। अब समय आ गया है कि देश की जनता को इन सवालों पर हर गली-मोहल्ले-चौक पर कांग्रेस के नेताओं से और विशेषकर नेहरू खानदान से निम्न सवाल करने चाहिए – 1. 1946 में जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय महाराजा को हटाने के लिये नेशनल कांफ्रेंस के तत्कालीन नेता शेख अब्दुल्ला ने "कश्मीर छोड़ो" (Quit Kashmir) आंदोलन छेड़ा। आंदोलन घाटी के कुछ लोगों में ही सक्रिय था। वह देश की आजादी का समय था, ऐसे समय किसी भी रियासत में ऐसे आंदोलन का कोई औचित्य नहीं था। शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि देश की आजादी की घोषणा से पूर्व महाराजा उन्हें सत्ता हस्तांतरित करें। उसके अनुसार मुस्लिमबहुल होने के कारण हिन्दू राजा को मुस्लिमबहुल कश्मीर पर राज्य करने का अधिकार नहीं है। महाराजा हरिसिंह ने शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया। यह प्रश्न आज तक अनुत्तरित है कि सांप्रदायिक विद्वेष एवं व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पर आधारित इस आंदोलन का समर्थन करने के लिए नेहरू जी ने जम्मू-कश्मीर आने की जिद क्यों की जबकि महाराजा हरिसिंह ने भी उनसे न आने का व्यक्तिगत अनुरोध किया, व कांग्रेस पार्टी ने भी उन्हें ऐसा करने से मना किया। नेहरू जी को कोहाला पुल पर रोक लिया गया एवं रियासत से वापिस भेज दिया गया। परिणामस्वरूप नेहरू जी हमेशा के लिए देशभक्त महाराजा हरिसिंह के विरोधी हो गये। वास्तव में 1931 की गोलमेज कॉन्फ्रेंस में महाराजा हरि सिंह की देशभक्तिपूर्ण भूमिका के कारण अंग्रेज उनसे नाराज थे। माउण्टबेटन ने कश्मीर के विलय को उलझा कर उनसे व्यक्तिगत बदला लिया जिसकी कीमत देश को आज तक चुकानी पड़ रही है। 2. महाराजा 26 अक्तूबर से पूर्व और संभवत: 15 अगस्त से पूर्व ही विलय के लिये तैयार थे, पर प्रश्न यह है कि नेहरू जी ने विलय के साथ आंतरिक शासन के लिये शेख अब्दुल्ला को सत्ता हस्तांतरण की जिद क्यों की, जबकि इसके लिये महाराजा कदापि तैयार नहीं थे.? 3. इसी विषय पर समझाने के लिये गांधी जी भी जम्मू-कश्मीर महाराजा के पास क्यों आये?
4. विलय होने के पश्चात नेहरू जी एवं उनकी सरकार ने जनमत संगह कराने की अवैधानिक, एकतरफा घोषणा क्यों की ?
5. पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों को खाली कराये बिना हम संयुक्त राष्ट्र संघ में 1 जनवरी, 1948 को क्यों गये ? भारत की सेना आगे बढ़कर पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों को वापिस लेना चाहती थी, परन्तु उसे अनुमति क्यों नहीं दी गई ? पाकिस्तान की सेना इतनी कमजोर थी कि वह प्रतिरोध भी नहीं कर सकती थी। जनवरी 1949 को युद्धविराम घोषित हुआ, भारतीय सेना को आगे बढ़ने का आदेश क्यों और किसने नहीं दिया? हमने संयुक्त राष्ट्र संघ में जनमत संग्रह का आश्वासन क्यों दिया? 6. पी.ओ.के. में 50 हजार हिन्दू-सिखों के नरसंहार का जिम्मेदार कौन है?
7. पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पी.ओ.के.) के लाखों शरणार्थी 63 वर्षों से विस्थापित कैंपों में ही रहते हैं। सरकार जबाव दे कि 63 वर्षों से पी.ओ.के. को वापिस लेने के लिये हमने क्या किया? 8. 1965 एवं 1971 में युध्द जीतने के बाद भी अपने क्षेत्र वापिस लेने के स्थान पर 1972 में शिमला समझौते में छम्ब का क्षेत्र भी हमने पाकिस्तान को क्यों दे दिया ? 9. संविधान सभा में जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व स्वाधीनता अधिनियम 1947, का उल्लंघन कर महाराजा हरिसिंह के स्थान पर शेख अब्दुल्ला की इच्छा के अनुसार नेशनल कांफ्रेंस के प्रतिनिधियों को प्रतिनिधित्व देने के लिये संविधान सभा में प्रस्ताव क्यों लाया गया ? इसी कारण से संविधान निर्माण के समय शेख अब्दुल्ला को अनुच्छेद-370 के लिये दबाव बनाने का मौका मिला। 10. स्वाधीनता अधिनियम के अनुसार आंतरिक प्रशासक शेख अब्दुल्ला को महाराजा एवं प्रधानमंत्री की देख-रेख में ही सरकार चलानी थी पर वे बार-बार महाराजा हरिसिंह और प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन का अपमान करते थे। उनको समझाने के स्थान पर अवैधानिक ढंग से पहले मेहरचंद महाजन और फिर महाराजा हरिसिंह को हटाने का कार्य केन्द्र सरकार ने क्यों किया? 11. 1949 के प्रारंभ में ही शेख अब्दुल्ला की कुत्सित महत्वाकांक्षायें स्पष्ट होने लगी थीं और उन्होंने भारत सरकार पर दवाब की नीति प्रारंभ कर दी थी। फिर भी उन्हें हटाने के स्थान पर महाराजा हरिसिंह को ही राज्य से अपमानजनक ढ़ंग से हटाने का कार्य क्यों किया गया ? 12. भारत की संविधान सभा में प्रस्ताव लाकर जम्मू-कश्मीर नाम से जम्मू को हटाकर राज्य का नाम कश्मीर रखने का असफल प्रयास पं. नेहरू और गोपालस्वामी अयंगार ने क्यों किया? 12. डा. अंबेडकर, पूरी संविधान सभा, पूरी कांग्रेस पार्टी के विरोध के बाद भी अनुच्छेद-306(ए) (बाद में अनुच्छेद-370) लाने की जिद पं. नेहरू ने क्यों की? 13. धर्म निरपेक्षता की नीति के बावजूद केवल मुस्लिमबहुल होने के कारण जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने की नीति नेहरू ने क्यों बनाई?
14. शेख अब्दुल्ला की राष्ट्रविरोधी मांगों के आगे (1947-1953 तक) नेहरू जी बार-बार क्यों झुकते रहे? 15. पूरे लद्दाख एवं जम्मू में शेख अब्दुल्ला के विरोध के बाद भी कांग्रेस ने केवल शेख को ही जम्मू-कश्मीर का नेता क्यों माना? 16. कांग्रेस ने 1953 में शेख को गिरफ्तार क्यों किया ? 1958 में उसे रिहा किया, पर कुछ महीनों बाद पुन: गिरफ्तार क्यों करना पड़ा ? ऐसी क्या मजूबरी थी कि 1975 में बिना चुनाव के कांग्रेस का पूर्ण बहुमत होते हुये भी शेख अब्दुल्ला को ही मुख्यमंत्री बना दिया? 17. 1951 में संविधान सभा के चुनाव का नाटक हुआ। विपक्षी दलों के समस्त उम्मीदवारों के आवेदन रद्द कर दिये गये। 75 में से 73 सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस के उम्मीदवार निर्विरोध चुने गये। कांग्रेस लोकतंत्र की इस हत्या पर चुप क्यों रही ? 18. कांग्रेस ने ऑटोनामी (स्वायत्तता) के नाम पर शेख अब्दुल्ला के सामने घुटने क्यों टेके, जिसके अंतर्गत 1952 में पं. नेहरू ने निम्न बातों को स्वीकार किया- • जम्मू-कश्मीर राज्य का अलग संविधान व अलग झंडा रहेगा। भारत के राष्ट्रीय ध्वज के समान ही जम्मू-कश्मीर के राज्य ध्वज को राज्य में सम्मान प्राप्त होगा। • मुख्यमंत्री, राज्यपाल के स्थान पर जम्मू कश्मीर में सदरे रियासत (राज्य अध्यक्ष), वजीरे आजम (प्रधानमंत्री) कहलाये जायेंगे। • स्थायी निवासी प्रमाण पत्र की व्यवस्था, जिसके द्वारा शेष भारत का व्यक्ति जम्मू-कश्मीर में बस नहीं सकेगा, परन्तु जम्मू-कश्मीर का व्यक्ति देश में कहीं भी जाकर बस सकता है। • सदरे रियासत का चुनाव जम्मू-कश्मीर की विधानसभा करेगी, राष्ट्रपति केन्द्र सरकार की सलाह पर सदरे रियासत अर्थात राज्यपाल को नियुक्त नहीं कर सकेगा। • सर्वोच्च न्यायालय का दखल कुछ ही क्षेत्रों में सीमित रहेगा। • भारत का चुनाव आयोग, प्रशासनिक सेवा अधिकरण (आई.ए.एस एवं आई.पी.एस.), महालेखा नियंत्रक के अधिकार क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर नहीं रहेगा। 19. सीमापार और यहां तक कि कश्मीर घाटी में भी चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों, कश्मीर में आने वाले समय में पाकिस्तान की आतंकवाद फैलाने की योजनाओं, बढ़ते मदरसे, जमायते-इस्लामी की कट्टरवाद फैलाने की गुप्तचर रिपोर्टों की राजीव गांधी सरकार ने 1984 से 1989 तक अनदेखी क्यों की? 20. जम्मू-कश्मीर में बार-बार चुनाव के नाम पर धोखाधडी होती रही, विशेषकर 1983 व 1987 के चुनाव के समय नेशनल कांफ्रेंस द्वारा की गई धांधलियों पर कांग्रेस चुप क्यों रहीं? 21. जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की भूमिका स्पष्ट होने के बाद भी राष्ट्रवादी शक्तियों को मजबूत करने के स्थान पर अलगाववादी मानसिकता की नेशनल कांफ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को बढावा क्यों दिया गया? कांग्रेस ने स्वयं अपने नेतृत्व को ही कश्मीर घाटी में कभी विकसित क्यों नहीं होने दिया ? 22. पी.वी. नरसिंहराव ने भी आजादी से कुछ कम (less than freedom, sky is the limit) जैसा आश्वासन क्यों दिया ?
23. 1952 में नेहरू-शेख सहमति (दिल्ली प्रस्ताव), 1975 का शेख-इंदिरा समझौता, 1986 का राजीव-फारूक समझौता, नरसिंहराव की स्वायत्तता संबंधी घोषणा और अब वर्तमान सरकार की पाकिस्तान व अलगाववादियों से पिछले 5 वर्षों से चल रही गुपचुप वार्ता और भविष्य की स्वायत्तता की संभावित योजनायें क्या यह नहीं दर्शातीं कि कांग्रेस की अलगाववादियों के सामने घुटने टेकने की नीति व मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण कश्मीर को अलग दर्जे की नीति ही कश्मीर की समस्या का वास्तविक कारण है ? वास्तव में जम्मू-कश्मीर समस्या का मूल जम्मू-कश्मीर में नहीं है अपितु नई दिल्ली की केन्द्र सरकार में निहित है। इसलिये इसका समाधान भी जम्मू-कश्मीर को नहीं पूरे भारत को मिलकर खोजना है। समय आ गया है कि 63 वर्षों की कांग्रेस की नेहरूवादी सोच के स्थान पर भारतीय संविधान की मूल भावना एकजन-एकराष्ट्र को स्थापित किया जाय तथा अलग संविधान, अलग झंडा, अनुच्छेद-370 जैसी अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देने वाली व्यवस्थाओं को समाप्त किया जाये। अन्य राज्यों की तरह पूर्ण एकात्म जम्मू-कश्मीर इस अलगाववादी मानसिकता को समाप्त करेगा एवं जम्मू-कश्मीर वासियों की पिछले 63 वर्षों की पीड़ा को दूर कर सकेगा। यह आजाद भारत की सबसे बड़ी असफलता है कि 63 वर्षों में लाखों करोड़ रूपये खर्च कर, हजारों सैनिकों के बलिदान के पश्चात भी जम्मू-कश्मीर की देश के साथ मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एकात्मता उत्पन्न नहीं की जा सकी। अनुच्छेद-370 के कारण वहां हमेशा एक एहसास रहता है कि हमारी एक अलग राष्ट्रीयता है, हम शेष भारत से अलग हैं। यहां का मीडिया एवं नेता हर समय इसे भारत के कब्जे वाला कश्मीर (India occupied Kashmir) ही संबोधित करते हैं। भारत हर वर्ष अनुदान बढ़ाता रहता है। पिछले 20 वषों में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की केन्द्रीय सहायता-अनुदान कश्मीर को दिये गये। इससे अधिक विशेष बजटीय प्रावधान किये गये। यह परंपरा बन गयी कि प्रधानमंत्री के प्रत्येक दौरे में हजारों करोड़ के विशेष पैकेज की घोषणा की जाय। परन्तु फिर भी अलगाववाद बढ़ता ही जा रहा है। क्योंकि अलगाववादी भाषा से अलगाववाद को समाप्त नहीं किया जा सकता। आज कश्मीर घाटी का प्रत्येक दल और शेष देश से वहां जाने वाले अधिकांश नेता एक ही भाषा बोलते हैं जिसके कारण कश्मीर घाटी में अलगाव कम होने के स्थान पर जड़ जमा गया है। आवश्यकता है घाटी तथा देश की सभी शक्तियों को बताने की कि अनुच्छेद-370 की समाप्ति, अलग संविधान और अलग निशान की समाप्ति ही अलगाववाद की समाप्ति का एकमात्र उपाय है और यह कार्य तुरन्त होना चाहिये ताकि उमर, महबूबा, गिलानी, मीरवायज एवं शेष देश के मुस्लिम वोट के भूखे, स्वार्थी, सत्तालोलुप नेता कोई नयी दुविधाजनक, राष्ट्रघाती परिस्थिति देश के सामने उत्पन्न न कर सकें विजय सोनी वॉया फेसबुक
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