डॉ.दिव्या श्रीवास्तव ने हिंदी ब्लॉगिंग करके हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान की जो सेवा करी है वह तो उनके गूगल प्रदत्त फ़ॉलोवर्स के गैजेट पर इकट्ठा लोगों को देख कर पता चल जाता है। इन फ़ॉलोवर्स के रेवड़ में उनके स्त्री होने के प्रभाव का निःसंदेह कोई योगदान नहीं है। चूंकि भड़ास के संचालक बड़े भाई समान गुरूदेव डॉ.रूपेश श्रीवास्तव जी इन्हें बहन मानते हैं और इनके ब्लॉग "ज़ील" को भी भड़ासियों के दोस्तों के नाम में कड़ीबद्ध कर रखा है कि जब भी इनमें से कोई कुछ लिखे वह अविलम्ब भड़ास के पन्ने पर दिख जाता है अपनी एक झलक के साथ तो कई बार हम भी इन्हें देख लेते हैं ये सीखने के लिये कि हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान की सेवा ब्लॉगिंग करके कैसे करी जाए।
इस आलेख में बेचारी इस्लाम की दरिंदगी से त्रस्त दिख रही हैं शायद इसी को हिंदू जागरण(इसमें ब्राह्मण-बनिया-ठाकुर-भंगी सभी अपना समावेश मानें) कहा जाता है। इन्होंने इतिहास को समझा है या नहीं लेकिन ये चर्चा व्यर्थ है क्योंकि ये अपने लिखे को ही अंतिम यथार्थ मानती हैं और इन्हें अधिकार है कि ये अपने सपनों में जीवित रहें(जब ये किसी वैश्विक मंच पर आ जाती हैं तो इनका ये अधिकार समाप्त हो जाता है) इन्हें सिर्फ़ गाय काटकर खाने पर आपत्ति है कई बार ये भारतीय मुसलमानों की पीठ पर भी हाथ फेरती दिखती हैं जैसे भारतीय मुसलमानों का इस्लाम कुछ अलग हो। दिव्या जी मुगलों के आने से बहुत पहले जब इस्लाम ने भारत में प्रवेश कर लिया था तब से आज तक हिंदू हैं और हमेशा रहेंगे भले आपकी इच्छित सरकार हो न हो। कांग्रेस की जल्लाद सरकार को गिराने के लिये ब्लॉगिंग करने या दुर्गाबाई के अवतरित होने से भर काम नहीं चलेगा। जमीनी काम करना होगा लोगों को निजी संपर्क से शिक्षित करना होगा मात्र अरविन्द केजरीवाल जैसे प्रपंचियों की कलाबाजियों से प्रभावित होकर लिखना पर्याप्त नहीं है।
समाज में यदि राजनैतिक परिपक्वता लाने की ही इच्छा है तो चर्चा और विचार विमर्श में भाग लीजिये सिर्फ़ अपने ब्लॉग पर लिख कर मत सोचिये कि आपके बच्चों को अच्छा समाज मिल जाएगा। कुछ नहीं तो कम से कम अपने भाई डॉ.रूपेश श्रीवास्तव जी से ही "लोकतंत्र" को समझने में सहायता लीजिये जो कि परस्पर विरोधी विचारधाराओं को भी एक मंच पर आने के लिये रास्ता बनाए हुए हैं।
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
मुनेन्द्र भाई इतने दिनों बाद लिखा भी तो इतना अम्लीय...
खैर दिव्या बहन की अपनी सोच है उन्हें अधिकार है कि वो जो चाहें लिखें अब आप से मंत्रणा करके तो लिखने से रहीं
जय जय भड़ास
आप यह बाताएं कि डॉ. दिव्या श्रीवास्तव को ब्लॉग से हटकर जमीनी स्तर पर कुछ करने की सलाह देने वाले आपने क्या किया? आज अचानक यह बवासीर कैसे फूट रही है? क्या कलम चलाना जमीनी काम नहीं? क्या लेखक स्वर्ग में बैठे अप्सराओं के आगोश में बैठ कर लेखन करते हैं? मार्ग कोई सा भी हो, कारगर होना चाहिए। उन्होंने अपने लेखन द्वारा इस मार्ग को कारगर बनाया।
आपका यह लेख लिखने का क्या उद्देश्य है, यह साफ़ जाहिर हो जाता है इस बात से कि एक स्त्री जो राष्ट्रवाद पर अपनी लेखनी चला रही है, कमेन्ट मॉडरेशन भी अब बंद है। किसी को कोई तकलीफ नहीं दे रही, किसी से कोई शिकायत नहीं कर रही, फिर भी सबके पेट में मरोड़ उठ रहे हैं। मतलब साफ़ है कि उनकी हस्ती को लोग पचा नहीं पा रहे। दिव्या के नाम पर सबने टी आर पी कमाई। चैन से जीने मत देना कोई उन्हें।
शायद इसी को मर्दानगी कहते होंगे आप।
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