मच्छड़ का फिर क्या करें

शनिवार, 31 मार्च 2012

मैंने पूछा साँप से दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।।

कुत्ता रोया फूटकर यह कैसा जंजाल।

सेवा नमकहराम की करता नमकहलाल।।

जीव मारना पाप है कहते हैं सब लोग।

मच्छड़ का फिर क्या करें फैलाता जो रोग।।

दुखित गधे ने एक दिन छोड़ दिया सब काम।

गलती करता आदमी लेता मेरा नाम।।

बीन बजाये नेवला साँप भला क्यों आय।

जगी न अब तक चेतना भैंस लगी पगुराय।।

नहीं मिलेगी चाकरी नहीं मिलेगा काम।

न पंछी बन पाओगे होगा अजगर नाम।।

गया रेल में बैठकर शौचालय के पास।

जनसाधारण के लिये यही व्यवस्था खास।।

रचना छपने के लिये भेजे पत्र अनेक।

सम्पादक ने फाड़कर दिखला दिया विवेक।।

0 टिप्पणियाँ:

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP