मंगलवार, 8 मई 2012

देवियों और  सज्जनों : "डाकू बाल्मीकि" को "रामायण" और "पत्नी देह-प्रेमी तुलसीदास" को "श्रीरामचरित  मानस"  लिखने का कोई अधिकार  नहीं था या उन्होंने ये लिखा कर कोई गुनाह किया ? यदि हाँ तो फिर इन ग्रंथों के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले लाखों लोग गुनाहगार क्यूँ नहीं हैं ? हम सब की समस्या ही है कि हमारा ध्यान कर्म के प्रति कम और कर्ता  के  प्रति कुछ ज्यादा ही केन्द्रित हो जाता है। मेरा उद्देश्य आमिर के अपनी पहली पत्नी और दो
बच्चों को त्याग कर पुनर्विवाह कर लेने को कहीं से जायज ठहराना नही है, परन्तु उनके इस कृत्य के बिना पर सामाजिक मुद्दों पर आधारित बेहद संवेदनशील कार्यक्रम "सत्यमेव जयते" की महत्ता क्या कम  हो जाती है ? क्या हमारा ये पूर्वाग्रह नहीं होगा यदि हम उस कार्यक्रम की आलोचना सिर्फ इस लिए करें कि यह कार्यक्रम आमिर खान के द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है ? आज आवश्यकता इस बात की नहीं की हम आमिर के चरित्र का विश्लेषण करे, अपितु इस बात की है कि हम इस कार्यक्रम के जरिये उठाये गए मुद्दों का विश्लेषण करें और इसमें जिस किसी भी रूप में सहभागी बन सके, 
बनने की कोशिस करें...... 

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