अयोध्या की विवादित जमीन न हिन्दुओं की और न ही मुसलमानों की। बौद्धों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका

रविवार, 6 मई 2012

गौतम बुद्ध हम आएंगे , बुद्धा विहार वहीं बनायेंगे !
नमो बुद्धाय ! जय भीम !! जय भारत !!!
अयोध्या की विवादित जमीन न हिन्दुओं की और न ही मुसलमानों की। बौद्धों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके अपना दावा किया नई दिल्ली, 7 जनवरी, 2011. डॉ0 उदित राज, रा0 चेयरमैन - बुद्धा एजुकेशन फाउंडेशन एवं अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, ने कहा कि स्पेशल लीव पेटीशन (एसएलपी) नं. डीसी 466/2011 सुप्रीम कोर्ट में, इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ का आयोध्या में विवादित मुद्दे से संबंधित फैसले के विरूद्ध, दखिल की गयी है। हमारी याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस आधार पर 2003 में खारिज कर दिया था कि हमने विवाद से संबंधित पैरोंकारों के खिलाफ कोई राहत नहीं मांगी है। तब तो हम कुछ न कर सके लेकिन अब हमें फिर से ऐतिहासिक मौका मिला है कि 30.9.2010 का फैसला आया है तो उसे चुनौती दी जाए। यह देश के सभी अम्बेडकरवादी एवं बौद्धों की भावना का प्रश्न बन गया है। हमारे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रो. रवि वर्मा कुमार, जूनियर अधिवक्ता नितिन मेश्राम एवं एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड ई.सी. विद्यासागर हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं एडवोकेट - संघप्रिय गौतम इस मामले में हमारा पूरा सहयोग कर रहे हैं। बाबरी मस्जिद बनने के पहले यह स्थान बौद्धों का था। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने अपने निर्णय (पृष्ठ संख्या 4690, वैल्यूम 19) में कहा है कि विवादित ढांचे के कसौटी पिलर बनारस के बौद्ध विहार से मेल खाते हैं। इसी तरह से जस्टिस एस.यू. खान ने कहा कि कारनेगी ने भी लिखा है कि बाबरी मस्जिद के निर्माण में जो कसौटी पिलर हैं, वे बनारस के बौद्ध विहारों से मिलते हैं। इस तरह से यह संभव है कि यह बौद्ध विहार के खंडहर या उसके ढांचे पर इस मस्जिद का निर्माण हुआ (पृष्ठ संख्या 246)। यह उल्लेख करना जरूरी है कि पी. कारनेगी अंग्रेजी हुकूमत के समय फैजाबाद जिले के कमिश्नर थे और साथ-साथ पुरातत्वविद् भी। उन्होंने यह रिपोर्ट 1870 में सौंपी थी। डॉ0 उदित राज ने आगे कहा कि बौद्ध इस मामले के जरूरी पक्ष हैं और स्वाभाविक है कि जहां इनका इतिहास एवं संस्कृति के अवशेष हों वहां ऐसा होना भी बहुत स्वाभाविक है। महान चीनी यात्री व्हेन सांग ने 20 बौद्ध विहार एवं 3000 से अधिक भिक्षुओं को 7वीं शताब्दी में यहां पर होना पाया है। फाह्यान जो दूसरे महान चीनी यात्री थे, ने चीनी भाषा में लिखा है कि यहां पर प्रसेनजीत नामक राजा कोशल प्रांत (अयोध्या इसी के अंतर्गत आता है) में राज्य करते थे, जो बौद्ध धर्म के कट्टर अनुयायी थे। इससे भी प्रमाणित होता है कि अयोध्या बौद्धों का था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) ने 2003 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कहा गया है विवादित स्थल के नीचे एक वृत्ताकार डोंम या गुम्बद है। इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि अभी और तथ्य जुटाने की आवश्यकता है लेकिन अभी तक ऐसा किया न जा सका। यह बहुत संभव है कि यह बौद्ध विहार का ही गुम्बद हो। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जो 50 खंभे हैं, उनको देखने से प्रतीत होता है कि वे उत्तरी भारत के मंदिरों के हैं। मंदिर किसी भी धर्म के हो सकते हैं, चाहे हिन्दू, जैन अथवा बौद्ध धर्म के। सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि जो अरबी भाषा में है उसे नागरी में बताया गया। इसी से पता लगता है कि पुरातत्व विभाग ने बहुत ही हल्के में मामले को लिया है। उन्होंने कहा कि यह 11वीं शताब्दी का नहीं बल्कि 7वीं से 12वीं सदी के बीच का होना माना जाना चाहिए और यह भी कहा कि यह पाली भाषा में बौद्धों का हो सकता है, जो हिन्दू मंदिर होने का निषेध करता है। इस पूरे विवाद में हिन्दुओं ने अपने पक्ष में यह नहीं सिद्ध कर पाए कि भगवान राम कब पैदा हुए थे? ज्यादा से ज्यादा उनके पास यही प्रमाण है कि 22 और 23 दिसंबर, 1949 में छुपाकर राम की मूर्ति यहां पर रखी हुई पायी गयी थी। जब राम का जन्म अनिश्चित काल माना जाता है या लाखों वर्ष पूर्व तो ऐसे में कैसे यह प्रमाणित किया जाए कि उनका जन्म यहीं हुआ था। इस तरह से न तो इनके पक्ष में पुरातत्व का समर्थन है और न ही इतिहास का। उसी तरह से मुसलमान भी यह नहीं सिद्ध कर पाए कि बाबर या मीरबकी अथवा किस संस्था एवं व्यक्ति ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया? मात्र यह कि यहां पर मुसलमानों द्वारा नमाज पढ़ी जाती है, उसके आधार पर मालिकाना हक का दावा नहीं किया जा सकता। बाबरी मस्जिद का ढांचा देश की अन्य मस्जिदों से मेल नहीं खाता और यहां तक कि बाबर द्वारा बनवायी गई अन्य मस्जिदों से भी। इस बाबरी मस्जिद में वजू एवं मिनरेट्स नहीं हैं, जो कि सभी मस्जिदों में होते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस विवादित जमीन को हिन्दुओं, मुसलमानों एवं निर्मोही अखाड़ा को दे दिया। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर इस जमीन पर देश के बौद्धों एवं अम्बेडकरवादियों का अधिकार होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय में एस.एल.पी. फाइल करके मांग की गई है कि मामले का निस्तारण संविधान एवं कानून के आधार पर किया जाए न कि आस्था पर। यदि ऐसा होता है तो इस विवाद का समाधान हमेशा के लिए हो जाएगा।

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