गो-मूत्र से घड़ी चलाई
रविवार, 27 मई 2012
पुजारी ने गो-मूत्र से घड़ी चलाई
शहर की शिवाजी कॉलोनी स्थित शिव मंदिर के पुजारी पंडित संदीप पाठक ने करीब दो साल की मेहनत के बाद यह सफलता हासिल की है। उन्होंने करीब डेढ़ लीटर गोमूत्र एकत्रित किया। उन्हें तीन अलग-अलग जग में रखा। इसके बाद उसमें जिंक व कॉपर प्लेट की मदद से सर्किट तैयार किया। इससे करीब 1.5 वाट की एनर्जी पैदा हुई, जिससे घड़ी चलने लगी। जिंक व कॉपर गोमूत्र में से इलेक्ट्रॉड निकाल लेता है।
उनके अनुसार डेढ़ लीटर गो मूत्र से करीब 40 दिन तक घड़ी चलाई जा सकती है। वैसे एक बैटरी से घड़ी आमतौर पर करीब नौ से 12 माह तक चलती है। पंडित संदीप बताते हैं कि घड़ी चलाने के बाद अगला लक्ष्य ट्रांजिस्टर चलाना है। अगर ट्रांजिस्टर में सफलता मिली तो वे बल्ब जलाने के लिए प्रयोग करेंगे। उनका मकसद लोगों को गोमूत्र की शक्ति से रूबरू कराना है। आज लोग गो माता को भूलते जा रहे हैं।
मां तीन साल तक दूध पिलाकर अपने बच्चों को बड़ा करती है, लेकिन गोमाता ताउम्र दूध पिलाती है। भैंस का कटड़ा जन्म लेता है तो वह सुस्त रहता है। जब गाय बछड़े को जन्म देती है तो वह कुछ क्षण बाद ही खड़ा हो जाता है। इससे पता चलता है कि गो माता कितनी शक्तिशाली है।पंडित संदीप बताते हैं कि पिछले साल गोपाष्टमी पर इसका प्रयोग किया था, लेकिन तब सफलता नहीं मिल पाई थी। अब तीन अक्टूबर को गोपाष्टमी पर्व था, जो कि भगवान कृष्ण से जुड़ा है।
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने बछड़ों की जगह गोमाता को चराना शुरू किया था। यह दिन काफी पवित्र है, इसलिए मेरा लक्ष्य था कि गोपाष्टमी के दिन गोमूत्र से नया आविष्कार किया जाए। पिछले करीब दो साल की मेहनत अब रंग लाई है।
एमडीयू के बायोकेमेस्ट्री डिपार्टमेंट की प्राध्यापिका डॉ. रितु पसरीजा के अनुसार वैसे हर लिक्विड में सॉल्यूशन होता है, लेकिन इस शोध में गोमूत्र से जो घड़ी चलाई है, उसमें बिजली की क्षमता, स्टोर करने और कितनी देर तक काम करने जैसे सवालों की गहराई में जाना पड़ेगा। जहां तक गो माता के दूध व गोमूत्र की बात है, वह कई मामलों में सिद्ध हो चुकी है।
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