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मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2008-09 के राष्ट्रीय महात्मा गांधी सम्मान की घोषणा कर दी है। राष्ट्रीय महात्मा गांधी सम्मान राशि के मामले में भारत का सबसे बड़ा सम्मान है। इसमें 10 लाख रुपए की राशि एवं सम्मान-पट्टिका प्रदान की जाती है। संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय महात्मा गांधी सम्मान उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल जिले के उफरैखाल स्थित दूधातोली लोक विकास संस्थान को दिया गया है। श्री शर्मा ने बताया कि, ‘सम्मान समारोह 2 अक्टूबर, 2011 को भोपाल में आयोजित किया जाएगा।’ राष्ट्रीय महात्मा गांधी सम्मान की घोषणा करते हुए संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी के आदर्शों, सिद्धांतों और विचारों पर कार्य करने वाली संस्था के लिए स्थापित राष्ट्रीय महात्मा गांधी सम्मान से विभूषित होने वाली संस्था दूधातोली लोक विकास संस्थान लंबे
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हरी वादियों का चितेरा
भारती जीअस्सी के दशक की शुरुआत से ही एक अकेले व्यक्ति के शांत प्रयासों ने ऐसे ग्रामीण आंदोलन की नींव रखी जिसने उत्तराखंड की बंजर पहाड़ियों को फिर से हराभरा कर दिया। सच्चिदानंद भारती की असाधारण उपलब्धियों को सामने लाने का प्रयास किया संजय दुबे ने। शायद ही कुछ ऐसा हो जो संच्चिदानंद भारती को उफरें खाल के बाकी ग्रामीणों से अलग करता हो। ये तो जब वो हमारा स्वागत गुलाब के फूल से करने के साथ हमें अपने गले लगाते हैं तब हमें एहसास होता है कि इसी असाधारण रूप से साधारण व्यक्ति के महान कृत्य हमें उफरें खाल खींच कर लाये हैं। औपचारिकताओं से निबटकर जब हम चारो तरफ फ़ैली पर्वत श्रृंखलाओं पर नज़र दौडाते है तो हमें भारती जी की अद्भुत उपलब्धियों की गुरुता का एहसास हो जाता है। दरअसल भारती ने एक समय नग्न हो चुकी उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले में स्थित दूधातोली
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जल, थल और मल
सोपान जोशी
अक्सर व्यंग में कहा जाता है और शायद आपने पढ़ा भी हो कि हमारे देश में आज संडास से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। अगर यहां हर व्यक्ति के पास मल त्यागने के लिए संडास हो तो कैसा रहे? लाखों लोग शहर और कस्बों में शौच की जगह तलाशते हैं और मल के साथ उन्हें अपनी गरिमा भी त्यागनी पड़ती है। महिलाएं जो कठिनाई झेलती हैं उसे बतलाना बहुत ही कठिन है। शर्मसार वो भी होते हैं, जिन्हें दूसरों को खुले में शौच जाते हुए देखना पड़ता है, तो कितना अच्छा हो कि हर किसी को एक संडास मिल जाए और ऐसा करने के लिए कई लोगों ने भरसक कोशिश की भी है। जैसे गुजरात में ईश्वरभाई पटेल का बनाया सफाई विद्यालय और बिंदेश्वरी पाठक के सुलभ शौचालय। लेकिन अगर हरेक के पास शौचालय हो जाए तो बहुत बुरा होगा। हमारे सारे जल स्रोत-नदियां और उनके मुहाने, छोटे-बड़े तालाब, जो पहले से ही बुरी तरह दूषित हैं- तब तो पूरी तरह तबाह हो जाएंगे। आज तो केवल एक तिहाई आबादी के पास ही शौचालय की सुविधा है। इनमें से जितना मैला पानी गटर में जाता है, उसे साफ करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। परिणाम आप किसी भी नदी में देख सकते हैं। जितना बड़ा शहर, उतने ही ज्यादा शौचालय और उतनी ही ज्यादा दूषित नदियां। दिल्ली में यमुना हो चाहे बनारस में गंगा, जो नदियां हमारी मान्यता में पवित्र हैं वो वास्तव में अब गटर बन चुकी हैं। सरकारों ने दिल्ली और बनारस जैसे शहरों में अरबों रुपए खर्च कर मैला पानी साफ करने के संयंत्र बनाए हैं। इन्हें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कहते हैं। ये संयंत्र चलते हैं और फिर भी नदियां दूषित ही बनी हुई हैं। ये सब संयंत्र दिल्ली जैसे सत्ता के अड्डे में भी गटर का पानी बिना साफ किए यमुना में उंडेल देते हैं।
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