पंचवटी वाटिका और उसका महत्व
सोमवार, 6 अगस्त 2012
पीपल, बेल, वट, आंवला व अशोक ये पांचो व्रिक्ष पंच्वटी कहे गये हैं। इनकी स्थापना पांच दिशाऒं में करनी चाहिए। पीपल पूर्व दिशा में, बेल उत्तर
दिशा में, वट (बरगद) पश्चिम दिशा में, आंवला दक्षिण दिशा में तपस्या के लिए स्थापना करनी चाहिए । पांच वर्षों के पश्चात चार हाथ की सुन्दर
वेदी की स्थापना बीच मॆं करनी चाहिए । यह अनन्त फलों कॊ देने वाली व तपस्या का फल देने प्रदान करने वाली है।
यदि अधिक जगह उपलब्ध हो तो वृह्द पंचवटी की स्थापना करें । सर्व प्रथम केन्द्र के चारो ऒर 5 मी० त्रिज्या 10 मी० त्रिज्या, 20 मी० त्रिज्या,
यदि अधिक जगह उपलब्ध हो तो वृह्द पंचवटी की स्थापना करें । सर्व प्रथम केन्द्र के चारो ऒर 5 मी० त्रिज्या 10 मी० त्रिज्या, 20 मी० त्रिज्या,
25 मी० त्रिज्या, एवं 30 मी० त्रिज्या, का पांच वृत्त बनाऎ । अन्दर के प्रथम 5 मी० त्रिज्या के वृत पर चारॊ दिशाऒं में चार बेल के वृक्षॊ का
स्थापना करॆं। इसके बाद 10 मी० त्रिज्या के द्वीतीय वृत पर चारो कॊनॊं पर चार बरगद का वृक्ष स्थापित करें। 20 मी० त्रिज्या के त्रीतीय वृत की
परिधि पर समान दूरी पर ( लगभग 5 मी० ) के अन्तराल पर 25 अशॊक के वृक्ष का रोपण करें। चतुर्थ वृत जिसकी त्रिज्या 25 मी० हॆ के परिधि
पर दक्षिण दिशा के लम्ब से 5-5 मी० पर दोनों तरफ दक्षिण दिशा में आंवला के दो वृक्ष चित्रानिसार स्थापित करने का विधान है। आंवला के दो
वृक्षॊं की परस्पर दूरी 10 मी० रहेगी । पंचवे अौर अंतिम 30 मी० त्रिज्या के वृत के परधि पर चरो दिशऒं में पीपल के चर वृक्ष का रोपण करें।
इस प्रकार कुल उन्तालिस वृक्ष की स्थापना होगी । जिसमें चार वृक्ष बेल, चार बरगद, 25 वृक्ष अशोक, दो वृक्ष आंवला एवं चार वृक्ष पीपल के
होंगे।
पंचवटी का महत्व
1 औषधीय महत्व
इन पांच वृक्षों में अद्वितीय औषधीय गुण है । आंवला विटामिन "c" का सबसे सम्रध स्त्रोत ह एवं शरीर को रोग प्रतिरोधी बनाने की महऔषधि है।
पंचवटी का महत्व
1 औषधीय महत्व
इन पांच वृक्षों में अद्वितीय औषधीय गुण है । आंवला विटामिन "c" का सबसे सम्रध स्त्रोत ह एवं शरीर को रोग प्रतिरोधी बनाने की महऔषधि है।
बरगद का दूध बहुत बलदायी होता है। इसके प्रतिदिन ईस्तेमाल से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। पीपल रक्त विकार दूर करने वाला
वेदनाशामक एवं शोथहर होता है। बेल पेट सम्बन्धी बीमारियों का अचूक औषधि है तो अशोक स्त्री विकारों को दूर करने वाला औषधीय वृक्ष है।
इस वृक्ष समुह में फलों के पकने का समय इस प्रकार निर्धारित है कि किसी न किसी वृक्ष पर वर्ष भर फल विधमान रहता है। जो मौसमी रोगों के
इस वृक्ष समुह में फलों के पकने का समय इस प्रकार निर्धारित है कि किसी न किसी वृक्ष पर वर्ष भर फल विधमान रहता है। जो मौसमी रोगों के
निदान हेतु सरलता से उपलब्ध होता है। गर्मी में जब पाचन सम्बन्धी विकारों की प्रबलता होती है तो बेल है। वर्षाकाल में चर्म रोगों की अधिकता
एवं रक्त विकारों में अशॊक परिपक्व होता है। शीत ऋतु में शरीर के ताप एवं उर्जा की आवश्यकता को आंवला पूरा करता है
2 पार्यावरणीय महत्व
बरगद शीतल छाया प्र्दान करने वाला एक विशाल वृक्ष है। गर्मी के दिनों में अपरान्ह में जब सुर्य की प्रचन्ड किरणें असह्य गर्मी प्रदान करत हैं एवं
2 पार्यावरणीय महत्व
बरगद शीतल छाया प्र्दान करने वाला एक विशाल वृक्ष है। गर्मी के दिनों में अपरान्ह में जब सुर्य की प्रचन्ड किरणें असह्य गर्मी प्रदान करत हैं एवं
तेज लू चलता है तो पचवटी में पश्चिम के तरफ़ स्थित वट वृक्ष सघन छाया उत्पन्न कर पंचवटी को ठ्न्डा करत है।
पीपल प्रदुषण शोषण करने वाला एवं प्राण वायु उत्पन्न करन वाला सर्वोतम वृक्ष है
पीपल प्रदुषण शोषण करने वाला एवं प्राण वायु उत्पन्न करन वाला सर्वोतम वृक्ष है
अशोक सदाबहार वृक्ष है यह कभी पर्ण रहित नहीं रहता एवं सदॆव छाया प्रदान करत है।
बेल की पत्तियों, काष्ठ एवं फल में तेल ग्रन्थियां होती है जो वातावरण को सुगन्धित रखती हैं।
पछुवा एवं पुरवा दोनों की तेज हवाऒं से वातावरण में धूल की मात्रा बढती है जिसकॊ पूर्व व पश्चिम में स्थित पीपल व बरगद के
विशाल पेड अवशोषित कर वातावरण को शुद्ध रखते हैं।
3 धार्मिक महत्व
बेल पर भगवान शंकर का निवास माना गया है तो पीपल पर विष्णु एवं वट वृक्ष पर ब्रह्मा का। इस प्रकार प्रमुख त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश का
3 धार्मिक महत्व
बेल पर भगवान शंकर का निवास माना गया है तो पीपल पर विष्णु एवं वट वृक्ष पर ब्रह्मा का। इस प्रकार प्रमुख त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश का
पंचवटी में निवास है एवं एक ही स्थल पर तीनो के पूजन का लाभ मेलता है।
4 जैव विविधता संरक्षण
पंचवटी में निरन्तर फल उपलब्ध होने से पक्षियों एवं अन्य जीव जन्तुऒं के लिए सदैव भोजन उपलब्ध रहता है एवं वे इस पर स्थाई निवास करते
4 जैव विविधता संरक्षण
पंचवटी में निरन्तर फल उपलब्ध होने से पक्षियों एवं अन्य जीव जन्तुऒं के लिए सदैव भोजन उपलब्ध रहता है एवं वे इस पर स्थाई निवास करते
हैं। पीपल व बरगद कोमल काष्टीय वृक्ष है जो पक्षियॊं के घोसला बनाने के उपयुक्त है ।
ऐसी सुव्यस्था और पारस्थिकीय ज्ञान केवल सनातन धर्म में ही है. इसी कारण भारतीय संस्कृति सर्वोपरि है. पश्चिमी सभ्यता प्रकृति के यथाशक्ति दोहन अथवा शोषण पर आधारित है पर भारतीय वैदिक व्यस्था उचित दोहन के साथ साथ समुचित रख रखाव पर भी ध्यान देती है.
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें