अंग्रेज़ी से कडी टक्कर:भाग दो

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

अंग्रेज़ी से कडी टक्कर:भाग दो



http://www.pravakta.com/stiff-competition-from-english-part-two
डॉ. मधुसूदन उवाच
==>शासकीय मानक शब्दावली
==>मेडिकल टर्मिनॉलॉजी (शब्दावली )
==>संस्कृत छन्द का विशेष गुण,
==>शब्द रचना शास्त्र की झलक
==>दो सौ वर्षों का ग्रहण
अनुरोध: विशेष क्षेत्र से परिचित पाठक टिप्पणी अवश्य करें.
सूचना:तीनों सूचनाए महत्त्वपूर्ण है.
(१) यह आलेख गहराई से, बहुत विचार-मनन-मन्थन-चिन्तन-चर्चा इत्यादि करने के पश्चात ही लिखा गया है. पाठकों से भी वैसी ही अपेक्षा है. ऐसा किए बिना, सांगोपांग समझने में कठिन लग सकता है. आपके समझ में यदि आ जाए, तो मित्रों को भी आमन्त्रित कीजिए. तर्क ही हमें काम आएगा.जितनी जानकारी फैलेगी, जागृति आएगी.
(२)आलेख पर खुलकर प्रश्नों का भी अनुरोध है. यह कुछ विशेषज्ञों के क्षेत्र से संबद्धित भी है. कई दूरभाष (फोन) पर पूछें गये प्रश्नों के उत्तर है.
(३) निरूपित विषय राष्ट्र-भाषा, भाषा-भारती, राज-भाषा, हिन्दी, या प्रादेशिक भाषाएं, सभी को लागू होता है. इसी लिए शीर्षक "अंग्रेज़ी से (कडी) टक्कर" दो, रखा है. यह लेख हिन्दी सहित सभी भाषाओं के लिए लागू होता है.
एक : एक प्रश्न
एक प्रश्न बार बार दूरभाष (फोन) पर आता रहा है. प्रश्न है, मेडिकल टर्मिनॉलॉजी (शब्दावली ) कहां से लाओगे? और पहले पाठ्य पुस्तकें तो होनी चाहिए ना ?
शब्द रचना शास्त्र, एक स्वतन्त्र पुस्तक की क्षमता रखता है, इस लिए कुछ ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं. कुछ अनुमान हो सके, इस लिए, एक झलक ही दिखाई जा सकती है. पाठ्य पुस्तकों की चर्चा आगे के अलग लेखों में की जाएगी.
दो : शासकीय मानक शब्दावली पहले परिचित होने के कारण, सहज समझ में आए ऐसी, शासकीय और संविधान एवं समाचार पत्रों में भी प्रयोजी जाती शब्दावली के उदाहरणों से श्री गणेश करते हैं।
आप जानते ही होंगे, कि
Constitution= संविधान
Law =विधान
Legislation= विधापन
Bill =विधेयक
Illegal =अवैध
Legal= वैध, इत्यादि शब्द अंग्रेजों के साथ ही भारत पहुंचे.
नोट कीजिए, कि, ये सारे अंग्रेजी शब्द एक दूसरे से स्वतंत्र है. Law का अर्थ जानने से Constitution, Legislation, Bill, Illegal, Legal इत्यादि शब्दों का अर्थ जाना नहीं जाता. ये सारे शब्द स्वतंत्र रूप से सीखने पडते हैं, डिक्षनरी  शब्द कोश में देखने पडते हैं. प्रत्येक का स्पेलिंग  - शब्द रचना और अर्थ रटना पडता है.
किन्तु संस्कृत / हिन्दी पर्याय एक "धा'' धातु पर "उपसर्ग'' और "प्रत्यय'' लगाकर नियमबद्ध रीति से गढे गये हैं. जिसे संस्कृत शब्द सिद्धि की प्रक्रिया की जानकारी है, उसे ये शब्द आप ही आप समझ में आते हैं. यह शब्दावली प्रायः समस्त भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त होती है, कोई अपवाद नहीं जानता. यदि आज किसी को, ऐसे शब्द समझ में नहीं आते, तो यह हमारी संस्कृत के प्रति उपेक्षा का ही परिणाम है.
वैसे बहुसंख्य भारतीय अंग्रेज़ी भी नहीं जानते, यह सच्चाई है, और सदा के लिए रहेगी ही. आप बहुसंख्य भारत को अंग्रेज़ी पढने-पढाने का कानून नहीं बना सकते, न उन को चिरकाल तक अंधेरे में रहने के लिए बाध्य कर सकते हैं. आप की भाँति वे भी स्वतंत्र हुए हैं. यह अन्याय नहीं किया जा सकता. उन्हें परतंत्रता में कब तक रहना चाहिए?
पर उपरि निर्देशित शब्दों के प्रति-शब्द रचने की, संस्कृत की आश्चर्यकारक क्षमता यदि जान जाएं, तो संस्कृत जैसी भाषा का हमारा गौरव बढे बिना नहीं रहेगा.
निम्न शब्द समूह देखिये, और उन शब्दों का ध्यान से, निरिक्षण कीजिए. कुछ प्राथमिक संस्कृत की जानकारी ना भी हो, तो बहुतेरे हिंदी के शब्द, संस्कृत के "धा" धातु पर व्याकरणिक प्रक्रिया से रचे गए हैं. कम से कम ५ आलेखों के बिना इस व्याकरणिक प्रक्रिया को समझाया नहीं जा सकता. पर ध्यान से देखने पर आप जानेंगे कि ये शब्द आपस में अर्थ समझने में भी अवश्य सहायता करते हैं.
जैसे "धा" के आगे, वि+धा=विधा, फिर उसी से विधान, फिर विधान+सभा=विधान सभा, विधापन, विधायी,विधेय ….. इत्यादि इत्यादि।
शब्दावली ( अर्थ सहित)
यह शब्दावली प्रत्येक भारतीय भाषाओं में, आवश्यकता पडने पर, बनाई गयी थी, जो आज चलन में है. ऐसी संस्कृत जन्य शब्दावली भारत की सभी प्रादेशिक भाषाओं में चल पाती है, यह इसकी विशेषता है.
(१) Lawful, विधिवत,——–(२)Legislation, विधापन,
(३) Legislative,विधायी,——-(४) Legislatable,विधेय
(५) Illegislatable, अविधेय——(६) Lawlessness,विधिहीनता,
(७) Constituition, संविधान,—–(८) Parliament, लोक सभा
(९) Code,संहिता —————-(१०) Law, विधि,
(११) Bill, विधेयक ———–(१२) Lawful, विधिवत,
(१३) Lawless, विधिहीन,——-(१४) Legislative Assembly,विधान सभा
(१५)Act, ——————-(१६)
इसी प्रकार किसी अन्य विशेष क्षेत्र में भी, ऐसी अर्थ सूचक, और सुसंवादी शब्द रचना, ऐसे "धातुओं" के आधार पर रची जा सकती है.
नोट कीजिए, कि, अंग्रेज़ी शब्द एक दूसरे से प्रायः स्वतंत्र है. उन के अर्थ आप को डिक्षनरी में देखने पडेंगे हैं. उलटे हिन्दी शब्दावली आप को परस्पर संबद्धित प्रतीत होगी.
यह संस्कृत के शब्द रचना शास्त्र की किमया है. केवल शब्द रचना शास्त्र पर ही कभी विस्तार सहित आलेख डालूंगा. कुछ बिलकुल प्राथमिक जानकारी इस आलेख में उचित अनुक्रम में सम्मिलित की है, देखने-पढने का अनुरोध करता हूँ।
(तीन) मेडिकल अर्थात चिकित्सा संज्ञाएं
अर्थ सूचक शब्द रचना।
चिकित्सा विषयक शब्द वास्तव में संस्कृत में, अंग्रेज़ी में प्रयुक्त होने वाले शब्दों की अपेक्षा, किसी भी निकषपर कसे जाएं, तो, अत्युत्तम और सरलातिसरल ही है. कुछ मात्रा में ही सरल नहीं बहुत बहुत सरल हैं. कुछ ही उदाहरण देकर स्पष्ट हो जाएगा. ऐसे संक्षिप्त आलेख में क्षमता होते हुए भी अधिक विस्तार करना संभव नहीं.
चिकित्सा की पढाई में सब से कठिन ही नहीं, पर कठिनतम Anatomy के शब्द माने जाते हैं।
आप किसी डॉ. से पूछिए, कि शरीर शास्त्र (Anatomy )एक कठिन(तम) विषय माना जाता है या नहीं? मैं ने छात्रो से पूछकर इसे चुना है. Anatomy के रावण के कपाल पर ही गदा प्रहार कर, सिद्ध कर देंगे तो, अन्य विषयों की शब्दावली सहज स्वीकार होने में कठिनाई नहीं होगी. बस, इसी दृष्टि से मैं ने Anatomy चुना है।
शरीर शास्त्र (Anatomy) उदाहरण:
मुख पेशियों के नाम (अभिनवं शारीरम् से )
(१) भ्रूसंकोचनी या अंग्रेज़ी Corrugator supercilli, क्या सरल है?
पहले Corrugator supercilli को देखिए, मैं एक प्रोफेसर भी, इसका अर्थ भाँप नहीं पाता. आप उस के स्पेलिंग के कूटव्यूह को देखिए, रटना तो पडेगा ही, उसे रटिए, डिक्षनरी में उसका अर्थ देखिए, उसे रटिए, और पाठ्य पुस्तक से व्याख्या रटिए.
पर उसीके लिए प्रयुक्त भ्रूसंकोचनी की व्याख्या, और अर्थ देखते हैं. भ्रू का अर्थ होता हैं भौंह या भौं, और संकोचन का अर्थ है , सिकुडना,अब भौंह सिकुडने में जो पेशियां काम करती है, उन पेशियों को भ्रूसंकोचनी कहा जाता है. बन गया शब्द "भ्रूसंकोचनी संक्षिप्त और अर्थ सूचक. {इस प्रक्रिया में प्रत्यय का और संधि का उपयोग किया गया मानता हूँ.)
इसी का अंग्रेज़ी प्रति शब्द लीजिए. "Corrugator supercilli" मेरा अनुमान है, कि यह लातिनी शब्द है, जो अंग्रेज़ी ने उधार लिया है. इस लिए जब तक लातिनी नहीं समझी जाएगी,(जो भाषा हमारी नहीं है ) तब तक उस का शब्दार्थ भारतीय को पता नहीं होगा. वैसे ऐसा शब्दार्थ अंग्रेज़ी भाषी अमरिकन छात्रों को भी पता नहीं है. इंग्लण्ड में भी उनके मेडिकल के छात्र इस विषय को कठिन ही मानते हैं. सुना है, कि उनका लातिनी-युनानी भाषाओं से संबंध तो उतना भी नहीं बचा है, जितनी हमारी भाषाएं संस्कृत से जुडी हुयी है.
तो, (१) स्पेलिंग रटो ही रटो, (२) उस शब्द का अर्थ ढूंढो और रटो (३)और, उसकी व्याख्या रटो; ऐसा तिगुना प्रयास हमें करना पडेगा.
युवा छात्र तो Corrugator supercilli का स्पेलिंग रटते रटते, फिर उसका अर्थ डिक्षनरी में देखते देखते, और अंत में उसकी व्याख्या को कंठस्थ करने में हताश हो सकता है. और फिर उस पेशी का रेखाचित्र भी बनाना पडता है, जो हिन्दी या अंग्रेज़ी दोनों के लिए समान है.
(२) नेत्र निमीलनी: या Orbicularis Oculi
नेत्र का अर्थ है आंखे, और निमीलन का अर्थ बंद करना या होना. तो नेत्र निमीलनी का अर्थ हुआ आंखे बंद करने वाली पेशियां. नेत्र निमीलनी बोलते ही आप उसका हिन्दी स्पेलींग,(वर्तनी) जान गये, उसका अर्थ ही उसकी व्याख्या है, उसे भी जान गए. कितना समय बचा आपका? पर Orbicularis Oculi बोलने पर क्या आप स्पेलिंग शब्द सुनकर बना लेंगे? नहीं. अर्थ जानेंगे? नहीं. और व्याख्या? वह भी नहीं.
संस्कृत शब्द मुझे आयुर्वेद के "शरीर-शास्त्र" से मिले. शरीर शास्त्र, एलॉपथी और आयुर्वेद, दोनों में समान है. क्यों कि शरीर ही जब मनुष्य का है, तो शास्त्र में भी कोई अंतर कैसे होगा.
एलॉपथी भी हिन्दी में पढाई जाए तो क्या छात्रों के लिए, सरल नहीं होगी?
क्या देशका लाभ नहीं होगा ?
और Orbicularis Oculi के लिए वही, अनावश्यक परिश्रम करना पडेगा जैसा "Corrugator supercilli का हुआ था।
(१) ले स्पेलिंग रटो (२) रा डिक्षनरी में अर्थ ढूंढो और रटो,(३) फिर व्याख्या रटो।
आपको प्रामाणिकता (इमानदारी ) से मानना होगा, कि नेत्र निमीलनी दो चार बार के रटने से ही, तुरंत, पल्ले पड सकता है। और मैं तो मेडिकल का जानकार भी नहीं हूँ। न शरीर शास्त्र मैं ने पढा है।
अब बिना विवेचन दो चार और उदाहरण ही देता हूँ।
नासा संकोचनी: Compressor naris
नासा=नाक को सिकुडने वाली पेशियां।
नासा विस्फारणी: Dilator naris
नाक को विस्फारित करने वाली पेशियां।
नासा सेतु: Dorsum of the nose
नासावनमनी: Dopressor septi
आप बताइए कि भ्रू संकोचनी, नेत्र निमीलनी, नासा संकोचनी, नासा विस्फारणी, नासा सेतु, नासावनमनी इत्यादि से शरीर शास्त्र आप शीघ्रता से पढेंगे? या नहीं?
{संस्कृत शब्द अर्थवाही, बिना स्पेलिंग, व्याख्या को अपने में समाए हुए प्रतीत होते हैं, या नहीं?, कितना समय बचता? या आप अंग्रेजी में शीघ्रता से पढ पाएंगे, स्पेलिंग याद करते करते बरसों व्यर्थ गवांएंगे?}
(पाँच)
संस्कृत छन्द का विशेष गुण:
संस्कृत छन्द का विशेष गुण, उपयोग और लाभ यह भी है, कि सरलता से, व्याख्याएं और सिद्धान्त इत्यादि संस्कृत छंद में रचे जा सकते है।यह गुण छात्र को रटने में सरलता प्रदान करेगा। प्रादेशिक भाषाएं, ऐसी संस्कृत की छन्दोबद्ध व्याख्या का तमिल से लेकर नेपाली तक अपनी अपनी भाषा में अर्थ विस्तार करें। ऐसा अर्थ विस्तार विषय को आकलन करने में सहायक होगा। सभी प्रादेशिक भाषाओं में ऐसे व्याख्याकारी श्लोकों का संग्रह समान ही होगा।
केवल उनके अर्थ अलग अलग भाषाओं में प्रत्येक प्रदेश में सिखाए जाएंगे। इस में भी मैं भारत की एकता को दृढ करने का साधन देखता हूँ। संस्कृत परम्परा को टिकाने का अलग लाभ। जैसे, "योगः कर्मसु कौशलम्‍" — कर्म को कुशलता से करना कर्म योग है.संक्षेप में कर्म योग की व्याख्या कर देता है। "योगश्चित्तवृत्ति निरोधः" ध्यान योग चित्त में चलने वाले विचारों का निरोध है.
सोचिए, हमारे पुरखें कितनी दूरदृष्टि वाले होंगे? सारी भगवद गीता ७१५ श्लोकों में दे दी। यह परम्परा टिकाने में बडी सहायता है। पाठ करने में कितनी सरलता है। सारे जीवन का तत्त्व ज्ञान केवल ७१५ श्लोकों में होने से पठन पाठन में सहायक है। और फिर छन्द में है। आज तक भ. गीता के श्लोक मैं ने गुजराती, मराठी, तेलुगु, हिन्दी, अंग्रेज़ी इत्यादि भाषाओं में प्रत्यक्ष देखे हैं। कुछ विषय से भटक गया पर? ठीक है।
इस पद्धति से एक ओर संस्कृत भाषा से छात्र न्यूनाधिक मात्रा में परिचित भी होंगे, और व्याख्या का श्लोक रटने की सरलता होगी, साथ संस्कृत ज्ञान निधि को अनायास सहज प्रोत्साहन प्राप्त होगा। पंथ एक होगा, लाभ अनेक होंगे। सिद्धान्तों और व्याख्याओं के छंदो-बद्ध श्लोक छोटी छोटी गुटकाओं में समस्त भारत के लिए समान ही छापे जाएं। फिर प्रादेशिक भाषाओं में उसपर भाष्य छापे जा सकते हैं।
संस्कृत के पुरस्कर्ता भी हर्षित होंगे, संस्कृत के पण्डितों का विद्वानों का रक्षण होगा। संस्कृति-परम्परा का पालन पोषण निर्वहन होगा। स्वतंत्र भारत में यह अतीव आवश्यक है। जीवन्त परम्परा टिक जाएगी। पाणिनि कोई आर्थिक लोभ के कारण पैदा नहीं होता.
कुछ दो सौ वर्षों से उसे ग्रहण लगा है। जीवन्त परम्पराएं कडियां होती है , जो हमें हमारे पूर्वजों से और वंशजो से जोडनी होती है। "परदादा -हम-और-प्रपौत्र" जुडे तो परम्परा का अर्थ सार्थक होता है।
शब्द रचना की झलक
मॉनियर विलियम्स उनके शब्द कोष की प्रस्तावना में कहते हैं, कि संस्कृत के पास १९०० धातु हैं, प्रत्येक धातु पर ५ प्रकार की प्रक्रियाओं से असंख्य शब्द रचे जा सकते हैं।{ वास्तव में, हमारे धातु २०१२ हैलेखक}
अकेली संस्कृत की अनुपम और गौरवदायी विशेषता है, यह "शब्द रचना क्षमता". उसे एक शास्त्र ही मानता हूँ, मैं. ऐसी परिपूर्ण क्षमता बंधु ओं मेरी जानकारी में किसी और भाषा की नहीं है. कोई मुझे दिखा दे, तब मान जाऊंगा.
देशी भाषाओं में, (जैसे हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला, उडीया, तेलगु, तमिलइ.) नये नये शब्द, और पारिभाषित शब्द संस्कृत के आधार पर गढे जाते हैं।
भारत की प्राय: सारी प्रादेशिक भाषाएं संस्कृतजन्य संज्ञाओं का प्रयोग करती हैं। वैज्ञानिक, औद्योगिक, शास्त्रीय इत्यादि क्षेत्रों में पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग सरलता से हो इसलिये और अधिकाधिक शोधकर्ता इस क्षेत्र को जानकर कुछ योगदान देने में समर्थ हो, इसलिये शब्द सिद्धि की प्रक्रिया की विधि इस लेख में संक्षेप में इंगित की जाती है।
यह लेख उदाहरणसहित उपसर्गोंकाऔर प्रत्ययों के द्वारा मूल धातुओं पर, संस्कार करते हुये किस विधि नये शब्द रचे जाते हैं इस विषय को स्पष्ट करने का प्रयत्न करेगा।
हिन्दी/ संस्कृत में २२ उपसर्ग हैं। शाला में एक श्लोक सीखा था।
प्रहार, आहार, संहार, प्रतिहार, विहार वत्
उपसर्गेण धात्वर्था: बलात् अन्यत्र नीयते।।
अर्थ: प्रहार, आहार, संहार, प्रतिहार, विहार की भांति उपसर्गो के उपयोग से धातुओं के अर्थ बलपूर्वक अन्यत्र ले जाये जाते हैं।
उपसर्ग: प्र, परा, अप, सम, अनु, अव. नि: या निऱ्, दु:, या दुर, वि, आ. नि, अधि, अपि, अति, सु, उद. अभि, प्रति, परि और उप- इनके उपयोग से शब्द नीचे की भांति रचे जाते हैं। कुछ उदाहरण: हृ हरति इस धातु से, प्र+हर = प्रहार, सं+हर = संहार, उप+हर = उपहार, वि+हर =विहार, आ+हर = आहार, उद+हर =उद्धार, प्रति+हर =प्रतिहार इत्यादि शब्द सिद्ध होते हैं।
प्रत्यय: प्रत्ययों का उपयोग, कुछ उदाहरण
(क) योग प्र+योग प्रयोग, प्रयोग+इक प्रायोगिक, प्रयोग+शील प्रयोगशील, प्रयोग+वादी प्रयोगवादी,
उप+योग उपयोग+इता उपयोगिता
उद+योग उद्योग+इता औद्योगिकता
(ख) उसी प्रकार रघु से राघव, पाण्डु पाण्डव, मनु मानव, कुरु कौरव, इसी प्रकार और भी प्रत्यय हमें विदेह वैदेहि, जनक जानकी, द्रुपद द्रौपदी द्रौपदेय, गंगा गांगेय, भगीरथ भागीरथी, इतिहास ऐतिहासिक, उपनिषद औपनिषदिक, वेद वैदिक, शाला शालेय,
(ग) संस्कृत के पारिभाषिक शब्द, विशेषण का ही रूप है, इसलिये अर्थ को ध्यान में रखकर रचे जाते हैं। इसलिये शब्दकोष से ही उस अर्थ का शब्द प्राप्त करना पर्याप्त नहीं। हरेक संज्ञा का विशेष अर्थ होने से, परिभाषा को रचने के काम में उन्हीं व्यावसायिकों का योगदान हो, जो एक क्षेत्र के विशेषज्ञ है, साथ में पर्याप्त संस्कृत का भी ज्ञान रखते हैं।
संस्कृत भाषा में २२ उपसर्ग, ८० प्रत्यय और २००० धातु हैं। इनकी ही शब्द रचने की क्षमता २२x८०x२०००=३,५२०,००० अर्थात ३५ लाख शब्द केवल इसी प्रक्रिया से बनाये जा सकते हैं।
इसके उपरान्त सामासिक शब्द, और सन्धि शब्द को जोडे तो शब्द संख्या अगणित होती है।
कुछ दो सौ वर्षों से उसे ग्रहण लगा है। जीवन्त परम्पराएं कडियां होती है , जो हमें हमारे पूर्वजों से और वंशजो से जोडनी होती है। परदादा -हम-और प्रपौत्र जुडे तो परम्परा का अर्थ सार्थक होता है।
कवि दुष्यंत कुमार कहते हैं:
मेले में खोए होते, तो, कोई घर पहुंचा देता,
हम तो अपने ही घर में खोए हैं, कैसे, ठौर ठिकाने आएंगे ?
                                                                                     
हीन ग्रन्थि से पीडित व्यक्ति सर्वदा जिसके प्रति उसे आदर होता है, जिसे वह ऊंचा मानता है, उसीका अंधानुकरण करता है। जब तक इस हीन ग्रन्थिपर ही प्रहार कर, उसे समूल उखाड़ कर फेंका नहीं जाता, तब तक भारत स्वतन्त्र नहीं हो पाएगा।
भोजन में चटनी का जो प्रमाण है, उस प्रमाण में भारत को परदेशी अर्थात सभी परदेशी -रूसी, जपानी, चीनी, और अंग्रेज़ी इत्यादि सभी उन्नत भाषाएं, आवश्यक है।
क्यों कि "आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वत:"पर एक ही परदेशी भाषा पर, प्रत्येक अंग्रेज़ी पढने वाला  छात १०  से १५ वर्ष लगा देता है। बहुत बडी भ्रान्ति के कारण मानता भी है, कि अंग्रेज़ी जानना ही, प्रतिभा है। घोर भ्रान्ति !
और अंग्रेज़ी एक अभिव्यक्ति का माध्यम ही सीखने में जीवनका अतीव ऊर्जा वाला काल व्यर्थ हो जाता है। मैं स्वयं इसी हीन ग्रन्थि से विचार किया करता था। १० वर्ष पूर्व एक बिजली सा चमत्कार ही कहूंगा, हुआ, और तब मुझे पता चला कि, भारत कैसी महा भयंकर गलती कर रहा है।
संसार का कोई भी देश जो परदेशी माध्यम में पढता-पढाता है, आगे नहीं बढ पाया है। जिनकी अपनी भाषा ही अंग्रेज़ी है, उनकी बात नहीं। दूसरा संस्कृत का ही इन्डो-युरोपियन भाषा परिवार में स्थान, सारे परिवार को १८ भाषा परिवारों में सबसे उन्नत स्थान दिला पाया है। तो अंग्रेज़ी का कुछ ऋण संस्कृत के प्रति ही है। लम्बी हो गयी टिप्पणीकृपांकित
"हिंदी-अंग्रेज़ी टक्कर?" - 1

डॉ. मधुसूदन

साभार : अंतरजाल                                                     

2 टिप्पणियाँ:

Alok Mohan ने कहा…

aapne to english pr bhadas nikal di...
bahut hi badiya

Satyajeetprakash ने कहा…

सत्य, सहज और सटीक व्याख्या। संस्कृतनिष्ट हिंदी के पक्ष को मजबूत करता यह आलेख अत्यंत सारगर्भित है। इस लेख को पढ़ने के बाद विरोधियों और अंग्रेजी के अंधभक्तों की आंखें खुल जानी चाहिए।

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