यूँ ही नहीं वामपंथ सन्नाटे की और बढ़ रहा है, गोलियों के धमाके से ध्यान आकृष्ट होता है तो आवाम के बजाय वहां आतंकी दिखता है.
रविवार, 2 जून 2013
स्कूल में था जब पहली बार लगातार बनने वाले सांसद को देखा था, स्कूली समय में ही सांसद से मिलने का मौका मिला और स्कूल के समय ही व्यक्तित्व ने प्रभावित किया जिसने एक विशेष विचारधारा की राह दिखाई। जी हाँ वो सांसद थे मधुबनी बिहार से आठ बार निर्वाचित होने वाले सांसद कामरेड भोगेन्द्र झा !!!
एक सांसद जिसके पास अपना घर नहीं था, आज भी बरहा में भोगेन्द्र झा का घर देखा जा सकता है, गाडी नहीं थी कपडे साधारण सा धोती साधारण कुरता और और पाँव में चप्पल हवाई। पार्टी कार्यालय में सांसद को देख कर एक अदने से कामरेड का भान होता था और पूछने पर भोगेन्द्र जी ने कहा भी था कि मैं एक अदना सा कामरेड ही तो हूँ।
कालांतर कामरेड बदला, कामरेड का स्वरुप बदला और बदल गई वामपंथ की परिभाषा। गरीबों मजलूमों मजदूरों किसानो और पिछड़ों की आवाज बनने वाला कामरेड अर्थव्यापी हो गया, नेता आम आदमी के नुमाइन्दे नहीं हवा से टपकने लगे। कार्यकर्त्ता गरीबों मजलूमों मजदूरों किसानो और पिछड़ों की बजाय गुंडे मवाली दबंग माफिया बनने लगे, कार्यकर्त्ता की मीटिंग गाँव में किसी पेड़ के नीचे खटिया डाल कर होने के बजाय वातानुकूलित रेस्टोरेंट में शराब के पैग के साथ होने लगे और आम आवाम का ग्रामीण वामपंथी दक्षिण के चकाचोंघ में अपने काडर के बजाय माफिया के लिए व्यवस्था और उगाही का श्रोत बन गया।
यूँ ही नहीं वामपंथ सन्नाटे की और बढ़ रहा है, गोलियों के धमाके से ध्यान आकृष्ट होता है तो आवाम के बजाय वहां आतंकी दिखता है.
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