OVER BURDENED BUREAUCRAY OF UTTARAKHAND

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

उत्तराखण्ड की नौकरशाही: चोदह कुली और पन्द्रह मेट

जयसिंह रावत,
चौदह कुली और पन्द्रह मेट वाली कहावत उत्तराखण्ड सरकार के मानव संसाधन कुप्रबन्धन के मामले में एकदम फिट बैठ रही है, क्योंकि राज्य में भले ही ग्रास रूट स्तर पर 62 हजार से अधिक कार्मिकों के पद खाली हों मगर शीर्ष स्तर पर मुख्य सचिव जैसे एक ही स्तर के पदों पर नौकरशाही का बोझ इस राज्य पर भारी बोझ साबित हो रहा है।
उत्तराखण्ड में भले ही गांव स्तर पर काम करने वाले विकासकर्मी, ग्राम पंचायत अधिकारी के 211 पद खाली पड़े हों मगर मुख्य सचिव स्तर के पद पर तीन-तीन और अपर मुख्य सचिव के पद भी तीन-तीन अफसरों को तैनात रखने की परम्परा शुरू हो गयी है। निचले स्तर पर कार्मिकों की भारी कमी और ऊपर अफसरों की भीड़ के बोझ ने नौकरशाही के ढांचे को बेडोल बना कर रख दिया है। विभिन्न विभागों से जुटाये गये आंकड़ों के अनुसार इस समय प्रदेश के विभिन्न विभागों और संस्थानों में 62 हजार से अधिक पद खाली हैं। बड़ी संख्या में विभिन्न श्रेणियों के पद रिक्त होने के कारण सरकारी मशीनरी का काम गति नहीं पकड़ पा रहा है।
सरकार द्वारा राज्य विधानसभा में पेश किये गये आंकड़ों के अनुसार राज्य में खंड विकास अधिकारियों के जहां 38 पद रिक्त हैं वहीं, ग्राम पंचायत विकास अधिकारियों के 211 पद रिक्त पड़े हुए हैं। बीडीओ की कमी से जहां विकासखंडों में विकास योजनाओं की मानीटरिंग नहीं हो पा रही है वहीं, वीडीओ की कमी के चलते ग्राम पंचायतों में विकास और अन्य कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
उत्तराखण्ड में प्रमुख वन संरक्षक के अन्य दो पद स्वीकृत हैं, मगर उन पदों पर 4 अफसर तैनात किये गये हैं। इसी प्रकार वन विभाग में ही अपर प्रुमुख वन संरक्षकों के कुल 4 पद हैं जिन पर 8 अफसर बिठाये गये हैं। मुख्य वन संरक्षकों के कुल 12 पदों पर 18 अफसर बिठा रखे हैं, मगर जिन फारेस्ट गार्डों ने वनों की रखवाली करनी है उनके 3650 स्वीकृत पदों में से केवल 2730 पर फारेस्ट गार्ड उपलब्ध हैं। इसी प्रकार रेंजरों के आवश्यक 308 में से मात्र 91 और  वन दारोगाओं के 1729 पदों में से केवल 1425  पदों पर ही कार्मिक उपलब्ध हैं।
उत्तराखण्ड में समूह ,, के कुल 257863 पद सृजित हैं। इनमें 130432 स्थाई 127431 पद अस्थाई प्रकृति के हैं। कुल सृजित पदों के सापेक्ष 195078 भरें हैं, जबकि 62785 पद रिक्त हैं। इतनी बड़ी संख्या में पदों के खाली होने का सीधा असर सेवा क्षेत्र के साथ-साथ विकास पर भी पड़ रहा है। विगत वर्षों में यह देखा गया है कि सरकार वाहवाही लूटने और प्रचार पाने के लिए हर वर्ष वार्षिक योजना का आकार तो बढ़ाती रही, लेकिन योजना राशि को संबंधित वित्तीय वर्ष में शत-प्रतिशत खर्च करने के लिए आवश्यक मानव संसाधन जुटाने पर ध्यान नहीं दिया गया। जानकारी के अनुसार कुल रिक्त पदों में लगभग 18 हजार पदोन्नति के तथा शेष सीधी भर्ती के हैं। पदोन्नति के पद भर दिए जाएं तो सीधी भर्ती के पदों की संख्या और बढ़ जाएगी। 

संघीय सेवाओं और राज्य सेवाओं के लिये लगभग हर महीने दिल्ली से लेकर देहरादून में डीपीसी होती रहती है। नौकरशाही की इन्ही अभिजात्य बिरादरियों में सचिवालय काडर भी शामिल हो गया है। सरकार में कहीं कोई पद खाली हो या हो मगर इन सेवाओं के अधिकारी एक ही पद पर बेचैन होने लगते हैं। जो मांगने वाला है, वही देने वाला भी है, इसलिये दरियदिली में कमी की कोई गुंजाइश नहीं रहती। इसी मानव संसाधन कुप्रबन्धन का नतीजा है कि आज प्रभावशाली काडरों के कार्मिक पदोन्नत हो कर ऊपर तो चले जाते हैं मगर उनके स्थान पर निचले पद खाली ही रह जाते हैं। अस्थिर तथा अदूरदर्शी सरकारों के नकारेपन का फायदा उठा कर आज राज्य के हितों से महत्वपूर्ण नौकरशाही के हित हो गये हैं। राज्य के एक करोड़ लोगों के विकास पर 4 हजार करोड़ भी खर्च नहीं हो पा रहे हैं और नौकरशाही तथा राजनीतिक बिरादरी पर 20 हजार करोड़ का बजट भी कम पड़ रहा है।

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