MODI'S RAIL DERAILED IN UTTARAKHAND

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

मोदी का रेल बजट : झुनझुना थमा दिया उत्तराखण्ड को 
 जयसिंह रावत ( प्रभात )

मोदी सरकार के पहले रेल बजट पर उत्तराखण्ड के भाजपाई भले ही फूले समा रहे हों, मगर सच्चाई यह है कि पिछली एक सदी से नयी रेल लाइनों की प्रतीक्षा कर रही प्रदे  की जनता को इस बजट से घोर निराशा  ही हाथ लगी है, क्योंकि रेल मंत्री द्वारा सामरिक और धार्मिक दृश्टि से अति महत्वपूर्ण इस राज्य के लिये नयी परियोजनाओं की घोशणा करना तो रहा दूर, पिछली सरकार द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं को ही भुला दिया।

रेल बजटमें उत्तराखण्ड के चारधामों को रेल नेटवर्क से जोड़ने की घोणा से बौराये भाजपाइयों ने इस बजट को उत्तराखण्ड के लिये आजादी के बाद का सबसे बेहतरीन बजट घोशित कर दिया। जबकि वास्तवकिता यह है कि पिछले लगभग सौ सालों से रेल नेटवर्क के विस्तार की प्रतीक्षा कर रही उत्तराखण्ड की जनता को इस बजट से निराषा ही हाथ लगी है। पिछली एक सदी से उत्तराखण्ड में रेल सेवाओं का एक इंच भी विस्तार नहीं हुआ है, और पिछली सरकारों ने जिन नयी परियोजनाओं के लिये सर्वेक्षण कराया था और जिन पर अब काम शुरू होना था उनका जिक्र तक सदानंद गोढ़ा ने अपने बजट में नहीं किया।

गत रेल बजट में रामनगर-चैखुटिया रेल मार्ग हेतु स्वीकृति प्रदान की गयी थी। टनकपुर-बागेष्वर रेल लाइन के निर्माण के संदर्भ में राश्ट्रीय परियोजनान्तर्गत स्वीकृति प्रदान की  गयी थी। किच्छा-खटीमा (57.7 किमी) रेल लाइन के लिए भूमि अधिग्रहण होना था। लेकिन रेल मंत्री ने  पिछली सरकार की इन परियोजनाओं की सुध तक नहीं ली। सहारनपुर -देहरादून मार्ग का सर्वेक्षण कार्य भी पूर्ण हो चुका है। इस नए मार्ग का निर्माण हरबर्टपुर (विकासनगर) होते हुए देहरादून होना है। वर्तमान में देहरादून जाने वाली समस्त गाड़ियों को सहारनपुर होते हुए गोलाकार घूमकर रूड़की लक्सर हरिद्वार होते हुए आना-जाना पड़ता है। लेकिन इस परियोजना का भी बजट में कहीं नामोनिशा  नहीं है। षिके से देहरादून हेतु नए रेल मार्ग निर्माण का गत वर्श के बजट में अनुमोदन किया गया था, जिसका सर्वे पूर्व में हो चुका है। गत रेल बजट में हरिद्वार-कोटद्वार-रामनगर डाईरेक्ट लिंक बनाए जाने की घोशणा की गयी थी। काषीपुर नजीबाबाद वाया धामपुर रेल लाइन का सर्वे भी रेलवे द्वारा पूर्व में किया जा चुका था। ऋशिकेष-डोईवाला डाइरेक्ट लिंक एवं हल्द्वानी-चोरगलिया, हल्द्वानी रीठा साहेब, पीरान कलियर-रूड़की एवं हरिद्वार, देहरादून-पुरोला (यमुना किनारे-2), देहरादून-कालसी एवं टनकपुर-जौलजीवी नई रेल लाइनों के सर्वे की घोशणा गत वर्श के रेल बजट में की गयी थी, लेकिन मोदी सरकार ने इन तमाम पिछली घोणाओं पर एक तरह से पानी ही फेर दिया।


उत्तराखण्ड राज्य एक अंतराष्ट्रीय  पर्यटन तीर्थ स्थली है। यहां प्रति  वर्ष  तीर्थ यात्री और पर्यटक करोड़ों की संख्या में यहां दे-विदे से पर्यटक, तीर्थयात्री, भ्रमण करते हैं। भारत सरकार का पर्यटन  मंत्रालय भी यहां हर साल आने वाले आगंतुको की संख्या को लगभग 3 करोड़ मानता है। सामरिक दृश्टिकोण से उत्तराखंड राज्य चीन-तिब्बत नेपाल की विi अंतराष्ट्रीय  सीमा क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। पड़ोसी देचीन ने उत्तराखण्ड की सीमा तक रेल, सड़क एवं हवाई मार्गों का विस्तारण कर लिया है, इसलिये इस सीमांत राज्य में आने वाले राष्ट्रीय अन्तर्राट्रीय पर्यटकों तीर्थ यात्रियों की सुविधाओं एवं सामरिक दृष्टि  के संदर्भ में रेल सेवाओं के विस्तार किया जाना जरूरी है, लेकिन इस बजट ये राष्ट्रीय  चिन्तायें भी गायब हैं।

इस बजट में उत्तराखण्ड के चारों धामों को रेल नेटवर्क से जोड़ने की बात कही गयी है। इसी को लेकर उत्तराखण्ड के भाजपाई फुले नहीं समा रहे हैं। लेकिन इस घोणा से साफ लगता है कि बजट बनाने वालों को उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान नहीं है। इन चार धामों में से यमुनोत्री और केदारनाथ तक बस या जीप तक नहीं जातीं।  वैसे भी गत वर्ष  की आपदा के बाद केदारनाथ जेसे अति संवेदनशी  क्षेत्र में रेल ले जाना तो रहा दूर वहां विकास गतिविधियां चलाने में भी सरकार संकोच कर रही है। कर्णप्रयाग के लिये रेल लाइन का सर्वेक्षण का काम 1996 से चल रहा है। इस पर सन् 1918 से लेकर अब तक कई बार सर्वे हो चुका है मगर रेल लाइन ऋशिकेष से आगे एक इंच भी नहीं बढ़ पायी। पिछली सरकार पहले ही कर्णप्रयाग से चमोली तक सर्वे कराने की घोणा कर चुकी है और तत्कालीन रेल मंत्री त्रिवेदी पहले ही बदरीनाथ तक रेल ले जाने की भारत सरकार की मंशा  को जाहिर कर चुके थे।  कुल मिला कर देखा जाय तो सदानंद गोढ़़ा उत्तराखंडवासियों को झुनझुना थमा गये। ऐसे अच्छे दिनों का इंतज़ार तो उत्तराखंड के लोग नहीं कर रहे थे


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