पत्रकारिता का दुर्गन्धयुक्त मवाद

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

पत्रकारिता में सम्पादक को लुटियन जोन का प्रेमी बनना प्रभाष जोशी ने सिखाया....झक सफ़ेद कुरता और धोती के साथ संसद और लुटियन जोन में पहचान करना मुश्किल था कि नेता कौन पत्रकार कौन ??? मगर जोशी जी ने पत्रकारिता को राजनीतिक सीढी कभी नहीं बनाया यही वजह रही कि संसद के गलियारे में टहलने वाले तो रहे सांसद नहीं बने......

राजनीति में पत्रकारिता को हथियार बना कर लुटियन जोन में प्रवेश करना नरेंद्र मोहन ने सिखाया..... एक अखबार का मालिक जो अपने आप को सम्पादक भी कहलवाता था अपने अखबार के बूते संसद के गलियारे से निकल कर संसद में अपने लिए कुर्सी की व्यवस्था करता है...

समय बीतता है और हिंदी पत्रकारिता में प्रतिष्ठा हासिल करने के बाद अपने प्रतिष्ठा को धूसरित करते हुए एक सम्पादक संसद में पहुँचता है जी हाँ हरिवंश....... अखबार झारखण्ड का और राज्यसभा की सदस्यता बिहार से मामला पत्रकारिता के उपयोग से कहीं अधिक नज़र आने लगता है.........

मीडिया अगर राजनीति की मंडी बन गई है तो कारण स्पष्ट है......हर सम्पादक अपने कुर्सी के उपयोग प्रयोग और दुरूपयोग से संसद की कुर्सी को लालायित है जाहिर है पत्रकारिता की कुर्सी खिसक कर संसद में चली गई है और लुटियन जोन लोकतंत्र का चौथा खम्भा......

कहीं दूर दोष तलाशने निकला नहीं मिला मगर प्रभाष जी आपका प्रेम ही पत्रकारिता का नासूर बना जिसमें से अब दुर्गन्धयुक्त मवाद आने लगा है !!!

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