अनुभव आपके सामाजिक दायरे को विस्तार भी देता है और संकीर्ण भी करता है
शुक्रवार, 26 जून 2015
साल 1996 या 1998 रहा होगा, याद नहीं क्यूंकि मेरी शादी का साल नहीं है tongue emoticon .......
मेरे स्कूल के जमाने का मित्र जो कि मेरा अत्यंत करीबी था और है भी उसकी शादी थी, उस जमाने में हम अपने लिए भी और घर के लिए भी बौआ ही थे सो जाहिर है मित्र की शादी में अति उत्साहित थे. दीपक को हमारे घर में और मुझे दीइपक के घर में कभी अपरिचित वातावरण नहीं मिला मगर वो विवाह भी सामाजिक दायरे के लिए मेरे लिए एक सीख और अनुभव ही रहा.......
मैं ब्राहमण परिवार से और मेरा दीपक दुसाध (ब्राहमणों के लिए अछूत) जाहिर है मेरे लिए वो जितना ही करीब था और है सामाजिक दायरे में पारिवारिक प्रश्नचिन्ह के बीच ही हमारे रिश्ते आते थे, बरात की तैयारी मैं कर चुका था जब घर में फरमान सूना दिया गया कि बरात नहीं जाना है. और फरमान लगभग तानाशाही ही था, उस वखत सामाजिक सोच का अल्पविकसित होना कि हमने भी घर की बात मान ली चलो नहीं जायेंगे smile emoticon
शाम को घर से आम दिनों की तरह ही निकला, बरात वाले कपडे घर में ही रह गए और रोजाना की तरह जींस, सफ़ेद शर्ट और पैरों में बाटा का हवाई चप्पल और पहुँच गया दीपक के घर........
बरात का घर शोर शराबा और दीपक के उत्साह के बीच लगभग हमारे सभी निकटस्थ मित्र उपस्थित थे सो हाँ ना के झंझावत के बीच घर में बिना बताये मैं भी बारातियों में शामिल हो ही गया.
शादी भोजन भात और फिर जैम कर मस्ती के बाद सुबह जब वापसी हुई तो दरभंगा में हमने सबको छोड़ते हुए कहा कि जाओ मैं शाम को आ जाऊँगा, तो मेरा एक और करीबी मित्र मुन्ना (ग़ालिब-उल-इस्लाम) मेरे साथ हो लिया और ये अनुभव भी अल्प तजुर्बे के बिच सरोकारी साबित हुआ.......
नाना का घर घोर ब्राहमणवादी और पंडिताई वाल जहाँ मुसलमान अछूत tongue emoticon मैंने मुन्ना से कहा तू अपना नाम मत बोलना बाकी सब ठीक, नाना के यहाँ पहुंचा स्नान ध्यान और फिर ठेठ पंडित के अंदाज में लकड़ी के पीढ़ी पर बैठ कर भोजन नाना से बहुत साड़ी बातें और शाम को नाना के यहाँ से रवाना........
इन सबके बीच ग़ालिब को ब्राहमण संस्कृति समझने का समय मिला और साथ ही ब्राहमणों के भोजन के अंदाज ने उसको वाकाई खासा प्रभावित भी किया गरचे मुझे यह अनुभव पहले से प्राप्त रहा (अछूत या मुसलमानों के यहाँ भोजन का) घर आया तो सब पहले से जानते थे कि मैं बरात से वापिस आया हूँ तो मेरा शुद्धिकरण भी हुआ, जिसमें गंगा मैया का योगदान भी रहा (लोग कब समझेंगे कि गंगा में स्नान जाति के आधार पर नहीं होता है और गंगा फिर भी पवित्र की पवित्र)
इन दोनों घटनाचक्र में सामाजिक सरोकार, भेदभाव और बहुरूपिये चरित्र से रूबरू करवाया जिसके बाद मेरे मन में जाति और धर्म के प्रति निष्ठां समाप्त हो गई और मैं पूजा पाठ करने वालागायत्री जपी महादेव भक्त खालिस शुद्र में परिवर्तित होकर अछूत बन गया...........
अनुभव आपके सामाजिक दायरे को विस्तार भी देता है और संकीर्ण भी करता है, मेरे लिए इंसान से बड़ा ना कोई जाति ना कोई धर्म !!
निजी कथा !!!
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें