“हिमालयी राज्य संदर्भ कोश " का दूसरा संस्करण

रविवार, 30 अगस्त 2015

हिमालयी राज्य संदर्भ कोश " का दूसरा संस्करण
महोदय,
पत्रकारिता और उत्तराखंड की जनजातियों के बाद मेरी पुस्तकहिमालयी राज्य संदर्भ कोश  का दूसरा संस्करण हमारी युवा पीढ़ी और सुधी पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है। इस पुस्तक में खास कर संघ लोक सेवा आयोग सहित विभिन्न राज्यों के लोक सेवा आयोगों तथा अन्य संस्थानों की प्रतियोगी परीक्षाओं  को ध्यान में रखते हुये परीक्षाथियों के लिये कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक जानकारियां उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है। ये जानकारियों जनगणना रिपोर्ट 2011, विभिन्न राज्यों के अर्थ एवं सांख्यकी  निदेशालयों के प्रकाशनों तथा वेब पोर्टलोंहिमालयी राज्यों के वेब पोर्टलों, इतिहास की पुस्तकों, भारत सरकार के प्रकाशनों, कुछ उपलब्ध प्राचीन ग्रन्थों के इधर-उधर छपे अंशों आदि से जुटाई हैं और ऐसे ही दूसरे श्रोतों से उनकी पुष्टि की गयी   है। इस कार्य में उत्तराखण्ड के अर्थ एवं संख्या निदेशालय का विशेष सहयोग  मिला है। पुस्तक के इस संस्करण का लेआउट बदलने के साथ ही इसे और अधिक पाठकोपयोगी तथा परीक्षोपयोगी बनाने के उद्देश्य से इसमें नये अध्याय जोड़ने के साथ ही सभी हिमालयी राज्यों के बारे में काफी अतिरिक्त जानकारियां समाहित की गई हैं।
प्रथम संस्करण का विमोचन उत्तरखंड के मुख्यमंत्री माननीय हरीश रावत जी ने देहरादून में तथा मणिपुर के मुख्यमंत्री माननीय ओकराम इबोबी सिंह जी ने इम्फाल में  2014 में  किया था। मेरी अगली पुस्तक  “राष्ट्रीय आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता का योगदान” नाम की पुस्तक का लोकार्पण शीघ्र ही अपेक्षित है।   वह भी युवा पीढ़ी के लिए समर्पित है।  
हालांकि हिमालय से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, तिब्बत जुड़े हुए हैं, लेकिन यहां केवल भारतीय हिमालय का उल्लेख हो रहा है। सच्चाई यह है कि पूरे हिमालय और उसके निवासियों का सम्पूर्ण संदर्भ कोश तैयार करना किसी एक व्यक्ति के बूते की बात नहीं है। इसलिये मैंने केवल भारतीय हिमालय की गोद में बसे राज्यों में से जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा और नागालैंड राज्यों के अलावा असम के हिमालयी क्षेत्र कार्बी एन्लौंग और दिमा हसाओ तथा पश्चिम बंगाल के हिमालयी जिले दार्जिंलिंग के बारे में जानकारियां जुटा कर पाठकों के लिये परोसी हैं। मेरा प्रयास है कि इस पुस्तक के माध्यम से हिमालयी क्षेत्र के युवा पूरे क्षेत्र के बारे में अधिक से अधिक जानकारियां हासिल कर अपना उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित कर सकंे। मेरा यह भी प्रयास है कि इस पुस्तक के माध्यम से देश के अन्य हिस्सों के लोग भी हिमालय और हिमालयी राज्यों तथा यहां के लोगों के बारे में अधिक से अधिक वाकिफ हो सकें।
विदित ही है कि नगाधिराज हिमालय आकार में जितना विराट है, अपनी विशेषताओं के कारण उतना ही अद्भुत भी है। कल्पना कीजिये अगर हिमालय होता तो दुनिया और खासकर एशिया का राजनीतिक भूगोल क्या होता? एषिया का ऋतुचक्र क्या होता? किस तरह की जनसांख्यकी होती और किस तरह के शासनतंत्रों में बंधे कितने देश होते? विश्वविजय के जुनून में दुनिया के आक्रान्ता भारत को किस कदर रौंदते? गंगा होती, सिन्धु होती और ना ही ब्रह्मपुत्र जैसी महानदियां होतीं। अगर ये नदियां ही होती तो गंगा-जमुनी महान संस्कृतियां कहां से पैदा होती? फिर तो संसार की महानतम् संस्कृतियों में से एक सिन्धु घाटी की सभ्यता भी होती। उस हाल में गंगा-यमुना के मैदान का क्या हाल होता? दरअसल हिमालय हमारे भारत का भाल ही नहीं, अपितु हमारी ढाल भी है और यह केवल एशिया के मौसम का नियंत्रक है, बल्कि एक जल स्तम्भ भी है। यह रत्नों की खान भी है तो गंगा के मैदान की आर्थिकी को जीवन देने वाली उपजाऊ मिट्टी का श्रोत भी है। सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र या कराकोरम से लेकर अरुणाचल की पटकाइ पहाड़ियों तक की लगभग 2400 किúमीú लम्बी यह पर्वतमाला विलक्षण विविधताओं से भरपूर है। इस उच्च भूभाग में जितनी भौगोलिक विविधताएं हैं, उतनी ही जैविक और सांस्कृतिक विविधताएं भी हैं। देखा जाए तो यही वास्तविक भारत भाग्य विधाता है। हिमालयी राज्यों में सैकड़ों की संख्या में जनजातियां और उनकी उपजातियां मौजूद हैं और इनमें से सभी का अपना अलग-अलग जीने का तरीका है। संविधान में इनके हितों, रिवाजों और पहचान को संरक्षण की गारण्टी दी गयी है।
पुस्तक के प्रकाशक श्री कीर्ति नवानी, “विन्सर पब्लिशिंग कंपनीके.सी सेंटर, डिस्पेंसरी रोड, देहरादून हैं। उनका फोन नंबर-- 07055585559 है।

-जयसिंह रावत
09412324999

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