बाबा रामदेव और विवादों को चोली दामन का साथ

सोमवार, 31 मई 2021

 

एक और विवाद- बाबा रामदेव बनाम ऐलोपैथी

-जयसिंह रावत

बाबा रामदेव और विवादों को चोली दामन का साथ हो गया है। कभी दवाओं में मानव खोपड़ी का चूर्ण तो कभी कोरोनिल दवा से कोरोना का शर्तिया इलाज को लेकर विवाद में रहने वाले बाबा रामदेव इस बार ऐलोपैथी को विफल बताने को लेकर सुर्खियों में गये हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ हो रहे इस मुकाबले में बाबा ने अपनी पूरी ताकत झौंक दी है। इससे पहले बाबा की दिव्य फार्मेसी शर्तियां पुत्र प्राप्ति की औषधि को लेकर भी विवाद में फंस गयी थी।

अनादि काल से दुनियां की हजारों मानव संस्कृतियों ने अपने क्षेत्र विशेष की परिस्थितियांे और संसाधनों के अनुरूप अपने जीवन की रक्षा और स्वस्थ रहने के तौर तरीकों की खोज की है। विश्व में आज भी ऐसे सेकड़ों समाज हैं जो कि तो ऐलोपैथी पर और ना ही आयुर्वेद पर अपने जीवन की रक्षा के लिये निर्भर हैं। इसी देश में रह रहे तिब्बतियों की अपनी चिकित्सा पद्धति है। जनजातियांे के भी अनुभव जनित अपने-अपने इलाज के तरीके हैं। जहां तक सवाल आयुर्वेद का है तो यह सचमुच विश्व की प्राचीनतम् चिकित्सा पद्धतियों में से एक जरूर है मगर जब आदमी के सामने जान का संकट खड़ा होता है तो वह आधुनिक ऐलोपैथी की ही शरण में जाता है। स्वयं रामदेव और बालकृष्ण को जान बचाने के लिये एलोपैथ की शरण में जाना पड़ा।

यह सही है कि आधुनिक ऐलोपैथी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के मुकाबले नयी है। इसका विकास यूरोप और अमेरिका में 18 वीं सदी में आर्थिक गतिविधियों के तेजी से विकास के साथ ही नये-नये आविष्कारों के फलस्वरूप हुआ है। उन्नीसवीं सदी में भी औद्यागिक क्रांति ने चिकित्सा के क्षेत्र में नयी खोजों और आविष्कारों को जन्म दिया। इन आविष्कारों में लुइस पास्चर जैसे अनेकों अनेक वैज्ञानिक थे जिन्होंने जीवाणुओं और विषाणुओं की खोज कर उनके निदान के लिये टीकों की खोज की। आज मानवता के सबसे बड़े दुष्मन कोरोना से बचने के लिये भी दुनियां ऐलोपैथी पर ही निर्भर है। ऐलोपैथी विज्ञान के साथ कदमताल करते हुये अनुसंधान और विकास के नये आयाम स्थापित करती गयी और हमारा अपना आयुर्वेद चरक संहिता से आगे नहीं बढ़ पाया। रामदेव इन दिनों डाक्टरों का मुकाबला करने के लिये विज्ञापनों और सोशियल मीडिया में अपने पक्ष में जनमत तैयार करने पर भारी खर्च कर रहे हैं उतना आयुर्वेदिक अनुसंधान पर खर्च करें तो मानवता की बहुत बड़ी सेवा होगी। अब तो उन्हाने आयुर्वेद को हिन्दू धर्म से भी जोड़ कर आधुनिक चिकित्सा को हिन्दू विरोधी घोषित करने के साथ ही ऐलोपैथिक डाक्टरों का आयुर्वेदिक धर्मान्तरण भी शुरू कर दिया।

पिछले साल 23 जून को पतंजलि हरिद्वार में रामदेव ने कोराना के उपचार के लिये कोरोनिल लांच करते समय दावा किया था कि इस दवा से मरीज 3 से लेकर 7 दिन के भीतर स्वस्थ हो जाता है। जबकि विवाद होने पर उत्तराखण्ड सरकार को कहना पड़ा कि पतंजलि ने कोरोनिल निर्माण का लाइसेंस इम्यूनिटी बूस्टर के लिये लिया था कि कोरोना के इलाज के लिये। इस विवाद में भी केन्द्र सरकार ने बाबा का ही साथ दिया। पिछले ही साल चेन्नई की अरुद्रा इंजिनीयर्स प्रा0 लि0 कम्पनी द्वारा दायर मुकदमें में मद्रास हाइकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद पर 10 लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया था। कंपनी ने पतंजलि पर कोरोनिल नाम चुराने का आरोप लगाते हुये कहा था कि उनके द्वारा कोरोनिल नाम से तैयार दो कैमिकल लगभग 3 दशक से मार्केट में हैं। इससे पहले भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआइ) ने भी वर्ष 2016 की अपनी रिपोर्ट में पतंजलि के विज्ञापनों में किये गये दावों को उपभोक्ताओं को गुमराह करने वाला बताया था।

जनता दल यूनाइटेड के सांसद के.सी. त्यागी ने भी 23 अप्रैल 2015 को राज्यसभा में रामदेव की फार्मेसी कीपुत्र जीवक बीजनाम की औषधि का मामला उठाते हुये आरोप लगाया था कि बाबा की फार्मेसी शर्तिया बेटा होने के नाम पर यह दवा बेच कर गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (पीसीपीएनडीटी) का खुला उल्लंघन कर रही है। इस पर रामदेव ने सफाई दी थी कि दवा पर कहीं भी केवल पुत्र पैदा होने का कोई उल्लेख नहीं है। बाबा की सफाई के बावजूद कम शिक्षितों और भक्तों ने पुत्र प्राप्ति के लिये यह दवा खूब खरीदी। इसी प्रकार कोरानिल की बिक्री भी आसमान छू गयी। इससे पहले 2009 तक यही दवापुत्रवतीके नाम से बिकी थी। उस समय भी विवाद होने पर उसका नाम बदल करपुत्र जीवक बीजरख दिया गया। मामला संसद में उठने पर मोदी सरकार ने जांच के लिये मामला उत्तराखण्ड सरकार को भेज दिया था। उस समय राज्य में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने इसकी जांच स्वाथ्य महानिदेशक से कराई।  तो जांच में दिव्य फार्मेसी द्वारा प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम का उल्लंघन पाया गया। चूंकि केन्द्र से जांच के निर्देश आये थे, इसलिये जांच रिपोर्ट केन्द्र को ही भेजी गयी जिस पर आज तक कार्यवाही नहीं हुयी। इससे पहले 16 मई 2015 को कराई गयी जांच में भी लाइसंेस की शर्तों का उल्लंघन पाया गया था।

रामदेव की आयुर्वेदिक औषधियों में मानव हड्डियों का चूर्ण मिलाने की शिकायत को लेकर माकपा की वरिष्ठ नेत्री बृन्दा करात ने 2005 में रामदेव की औषधियों के दो सैम्पल जांच के लिये केन्द्रीय आयुष मंत्रालय को सौंपे थे। लेकिन किसी निजी व्यक्ति द्वारा लिये गये नमूनों का कानूनी महत्व होने के कारण उन नमूनों की जांच रिपोर्ट पर भी कार्यवाही नहीं हुयी। रामदेव ने एक बार उत्तराखण्ड की तत्कालीन भुवनचन्द्र खण्डूड़ी सरकार के एक मंत्री पर 2 करोड़ की रिश्वत मांगने का अरोप तो लगाया मगर उस मंत्री का नाम कभी नहीं बताया। बाबा ने यहां तक दावा किया था कि रिश्वत मांगने की शिकायत उन्होंने जब मुख्यमंत्री से की तो उन्होंने वह दो करोड़ की राशि पार्टी कोश में जमा करने को कहा था। जबकि स्वयं खण्डूड़ी ने प्रेस कान्फ्रेंस कर बाबा के दावे को बोगस बता कर मंत्री का नाम बताने की चुनौती दी थी।

रामदेव की कांग्रेस से तनातनी की शुरुआत केन्द्र में यूपीए सरकार के कार्यकाल में तब हुयी जब आयकर विभाग ने रामदेव की 3 दर्जन से अधिक कंपनियों को नोटिस जारी किये थे। वर्ष 2011 में तो उन्होंने भ्रष्टाचार और कालेधन को लेकर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ आन्दोलन ही छेड़ दिया था। इसी दौरान 4 और 5 जून की रात्रि को दिल्ली पुलिस ने रामलीला मैदान में डटे रामदेव एवं उनके अनुयायियों पर धावा बोल दिया था। इस कार्यवाही में रामदेव को स्त्रियों के वस्त्र पहन कर पुलिस से बचना पड़ा। उसके बाद 2012 में उत्तराखण्ड में विजय बहुगुणा (जो अब भाजपा में हैं) सरकार ने स्टाम्प ड्यूटी चोरी के तथा भूउपयोग में हेराफेरी को लेकर रामदेव के खिलाफ हरिद्वार में 81 मुकदमें दर्ज कर दिये थे। तत्कालीन प्रतिपक्ष के नेता, हरक सिंह रावत (अब भाजपा में ) ने रामदेव के खिलाफ सीबीआइ जांच की मांग की थी।

बाबा के सहयोगी बालकृष्ण पर भी सम्पूर्णनन्द संस्कृत विश्व विद्यालय की फर्जी शैक्षिक प्रमाणपत्र से पासपोर्ट हासिल करने का मुकदमा सीबीआइ चला चुकी है। वह इस मामले में 10 जुलाइ 2012 को गिरफ्तार भी हुये लेकिन 26 मई 2014 को नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार आयी तो उसी सीबीआइ ने बालकृष्ण को क्लीन चिट दे दी। यही नहीं विजय बहुगुणा सरकार ने 11 अक्टूबर 2013 को रामदेव के गुरू स्वामी शंकरदेव की जुलाइ 2007 में रहस्यमय गुमशुदगी की जांच की संस्तुति भी सीबीआइ से कर दी थी। केन्द्र में नयी सरकार बनने के 4 महीने बाद ही सीबीआइ ने शंकरदेव गुमशुदगी मामले में देहरादून की विशेष अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दे दी।

जयसिंह रावत

-11, फ्रेंड्स एन्कलेव

शाहनगर, डिफेंस कालोनी रोड,

देहरादून।

 

 

 

 

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